नई दिल्ली। सुप्रीमकोर्ट ने उम्रकैद की सजा काट रहे मुंबई विस्फोट के दोषी अबू सलेम की सजा अवधि के संबंध में बुधवार को केंद्र सरकार से कहा कि वह चार सप्ताह में हलफनामे के जरिए बताए कि इस गैंगस्टर के प्रत्यर्पण के समय भारत द्वारा पुर्तगाल को दिए गए आश्वासन का उल्लंघन तो नहीं हुआ।
न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति एमएम सुंदरेश की पीठ ने अबू सलेम की इस दलील पर केंद्र सरकार से विचार करने के लिए कहा कि उसके प्रत्यर्पण के दौरान भारत द्वारा पुर्तगाल को दिए गए आश्वासन के अनुरूप उसकी कारावास 25 साल से अधिक नहीं हो सकती।
पीठ के समक्ष दलील देते हुए सलेम के वकील ऋषि मल्होत्रा ने कहा कि आतंकवादी और विघटनकारी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (टाडा) अदालत उसके मुवक्किल को आजीवन कारावास की सजा देने का फैसला उसके प्रत्यर्पण के समय पुर्तगाल को भारत द्वारा दिए गए आश्वासन के विपरीत है।
टाडा अदालत ने हालांकि अपना फैसला सुनाते समय यह स्पष्ट कर दिया था कि वह सरकार के आश्वासनों को मानने के लिए बाध्य नहीं है। टाडा अदालत के इस फैसले के संदर्भ में मल्होत्रा ने पीठ के समक्ष दलील दी कि शीर्ष अदालत के पास अतिरिक्त शक्तियां हैं तथा याचिकाकर्ता की अर्जी पर विचार कर सकती है।
शीर्ष न्यायालय के समक्ष मल्होत्रा ने दलील देते हुए कहा कि सलेम को 2002 में पुर्तगाल में हिरासत में लिया गया था। उसकी सजा उस तारीख से मानी जानी चाहिए, न कि 2005 में उसे भारतीय अधिकारियों को सौंपने के समय से।
पीठ ने मल्होत्रा की दलीलों पर केंद्र से पूछा कि क्या सलेम के सुझाव उचित है, केंद्र सरकार इस संबंध में चार सप्ताह में एक हलफनामा दाखिल कर अपना पक्ष रखे।
अबू सलेम उर्फ अब्दुल कय्यूम अंसारी और मोनिका बेदी को 18 सितंबर 2002 को पुर्तगाल द्वारा गिरफ्तार किया गया था। उन्हें भारत द्वारा 2005 में प्रत्यर्पित कर देश में लाया गया था। सलेम को बॉम्बे में सिलसिलेवार बम विस्फोटों के अलावा प्रदीप जैन हत्या और अजीत दीवानी हत्या मामले के संबंध में प्रत्यर्पण की अनुमति दी गई थी।