सबगुरु न्यूज। उसके इरादे सदैव अटल रहे। उसका मिलन सदैव अटल था। वह कब कहां और किन हालातों में मिलेगी यह एक अनसुलझा सवाल ही था। इस सृष्टि की रचना का वह ही केवल एकमात्र सत्य था जिस पर मानव विजय प्राप्त नहीं कर पाया।
सृष्टि निर्माण से आज तक वो सभ्यता और संस्कृति के मानव व जीवों को सदा सदा के लिए अपने साथ ही ले गई और छोड़ गई उनके करतब की कहानियों को। आखिर वह ऐसा क्यों करती कोई भी समझ नहीं पाया।
मृत्यु अटल है और मृत्यु से ही मिलन इस जगत का अटल सत्य है। जन्म लेते ही बच्चा रोता है तो वो खामोशी से अदृश्य हो उसे निहारती है और कहती है कि हे मानव मैं हूं ना। यह जीवन तूझे बहुत कुछ सीखाएगा बतायेगा और करवाएगा।
तू अति प्रसन्न हो कर या दुखी हो कर कभी अपनों के लिए और कभी परायों के लिए सब कुछ करेगा या नहीं करेगा तो भी मैं तुझसे कोई शिकायत नहीं करूंगा क्योंकि यह मेरी संस्कृति नहीं है, यह तो जीवन में जीने का मूल्य है जो तुझे प्रसिद्धि के कगार पर ले जाएगा या फिर गुमनामी के अंधेरे में डाल देगा।
इस जगत का तू राजा है या रंक, अमीर है या गरीब, सुखी है या दुखी इन सब की कोई रियायत नहीं है मेरे पास। तू जो भी है मेरा अपना है। हर हाल में सदा सदा के लिए मैं तुझे मेरे पास रखूंगी। क्योंकि तू जन्म और जीवन का नहीं केवल मेरा अपना है। मैं मृत्यु हूं और अटल हूं ओर हे जगत के प्राणी तेरा मेरा मिलन अटल हैं। बस यहीं एक मात्र सत्य है।
संत जन कहते हैं कि हे मानव यह जगत एक अस्थायी विश्राम गृह की तरह होता है जिसमें रहने के दिन इस सृष्टिकर्ता ने निर्धारित कर दिए हैं और स्थायी विश्राम गृह तो केवल मृत्यु के पास ही होता है वहां ही शांति के साथ विश्राम सदा के लिए किया जाता है।
इसलिए हे मानव तू अपनी समझ के पहले दिन से ही मृत्यु के अटल सत्य और इससे अटल मिलन को सहर्ष ढंग से स्वीकार कर औरर जब तक इस दुनिया में तेरा बसेरा है तब तक तू तहेदिल से इस जीवन का मूल्य जीव व जगत की सेवा व कल्याण के रूप में चुका। ऐसे कर्म की ओर बढ कि तेरी मृत्य पर जमाना तहेदिल से आंसू बहाए और तू हंसता हुआ अपनी मोत रूपी महबूबा के गले लग जाए।
सौजन्य : भंवरलाल