बीजिंग । अमेरिका के साथ जारी विवाद को देखते हुये भारत सहित कई एशियाई देशों ने दुनिया के सबसे बड़े कृषि बाजार चीन में अपनी पैठ बनाने के लिये उसके साथ बातचीत का दौर शुरू कर दिया है।
पशुओं को खिलाने वाले चारे को बनाने में इस्तेमाल किये जाने वाले सोयाबीन सहित कई अमेरिकी उत्पादों पर चीन ने भारी टैरिफ लगा दिया है, जिससे इसकी आपूर्ति का संकट मंडराने लगा है। चीन ने गत साल अमेरिका से 12.7 अरब डॉलर का सोयाबीन आयात किया था। चीन ने इसके बाद पशुओं के चारे में इस्तेमाल किये जाने वाले अन्य विकल्पों की तलाश शुरू कर दी है। इसका एक विकल्प सरसों भी है। चीन ने इसी क्रम में गत जुलाई में भारत सहित पांच एशियाई देशों से आयातित सोयाबीन, सोया खली और काली सरसों पर से टैरिफ हटा दिया था।
टैरिफ हटाये जाने के बावजूद भारत के लिये चीन के कृषि बाजार में पैठ बनाने में सबसे बड़ी बाधा वर्ष 2011 में उसके काली सरसों निर्यात पर चीन द्वारा लगाया गया प्रतिबंध है। चीन ने दरअसल भारत से आयातित काली सरसों में मैलेसाइट ग्रीन डाई पाये जाने पर यह प्रतिबंध लगाया था। भारत में अनाज की बोरियों पर निशान बनाने के लिये आमतौर पर यह रंग लगाया जाता है। चीन ने वर्ष 2011 में भारत से 16 करोड़ डॉलर से अधिक कीमत की काली सरसों आयातित की थी।
भारत ने मौजूदा स्थिति को देखते हुये एक बार फिर चीन के बाजार में अपनी जगह बनाने के लिये बातचीत शुरू कर दी है। उसने चीन से आग्रह किया है कि वह उसके काली सरसों पर लगाया गया प्रतिबंध हटा ले। इस संबंध में बुधवार को बीजिंग स्थित भारतीय दूतावास में बैठक हुई। इस बैठक में भारत के राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन महासंघ (नैफेड) के प्रबंध निदेशक संजीव कुमार चड्ढा और चीन के चैंबर ऑफ कॉमर्स ऑफ फूडस्टफ एंड नैटिव प्रोड्यूस के उपाध्यक्ष रोंग वेडोंग शामिल हुये। एक भारतीय अधिकारी ने बताया कि इस बैठक में कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया लेकिन आगे भी नयी दिल्ली और चीन में इस संबंध में बातचीत जारी रहेगी।