नई दिल्ली। भारत ने आतंकवाद को लगातार बढ़ावा देने को लेकर पाकिस्तान पर इस बार ‘वाटर स्ट्राइक’ करने का फैसला किया है और उसके साथ 1960 की सिंधु जल संधि को ताक पर रख कर पश्चिमी सीमा के पार जाने वाली सभी नदियों का पानी रोकने की तैयारी कर ली है।
केन्द्रीय जलसंसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्री नितिन गडकरी ने गुरूवार को कहा कि 1960 में प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने सिंधु जल संधि पर हस्ताक्षर करके पाकिस्तान को तीन नदियों का पानी देने का करार किया था। इसमें भारत को बड़ा भाई और पाकिस्तान को छोटा भाई बताया गया था।
गडकरी ने कहा कि पाकिस्तान ने भारत से तीन युद्ध लड़े लेकिन तीनों में पराजित होने के बाद उसके विरुद्ध प्रॉक्सी युद्ध शुरू किया और आतंकवाद को बढ़ावा दिया। पाकिस्तान निरपराध लोगों की हत्या करता रहे और संधि में भाईचारा, सदभाव, मैत्री की भावनाओं को नहीं माने तो हम पर भी पानी देने का कोई दबाव नहीं रह जाता है।
उन्होंने कहा कि अगर पाकिस्तान आतंकवाद काे बंद नहीं करता है तो सिंधु जल संधि को मानने को बाध्य नहीं हैं। हम सीमा के पार जाने वाला सारा पानी बंद कर देंगे। उन्होंने कहा कि सरकार ने इस पानी को मोड़कर पंजाब एवं हरियाणा को देने की योजना बना ली है।
उल्लेखनीय है कि सिंधु नदी प्रणाली में तीन पश्चिमी नदियां सिंधु, झेलम और चिनाब और तीन पूर्वी नदियां सतलुज, ब्यास और रावी शामिल हैं। संधि के अनुसार तीन पूर्वी नदियों ब्यास, रावी और सतलुज का नियंत्रण भारत को, तथा तीन पश्चिमी नदियों सिंधु, चिनाब और झेलम, का नियंत्रण पाकिस्तान को दिया गया।
समय समय पर इस संधि की समीक्षा करने की मांग उठती रही है। 2003 में जम्मू कश्मीर विधानसभा में इस आशय का प्रस्ताव भी पारित हुआ था। पर 2016 में उड़ी में सेना के शिविर पर हमले के बाद इस संधि को समाप्त करने को लेकर विचार विमर्श शुरू हो गया था। गडकरी ने आज इस पर फैसले की घोषणा कर दी।
पर्यवेक्षकों का मानना है कि सिंधु जल संधि को समाप्त करना पाकिस्तान पर परमाणु बम गिराने के समान होगा क्योंकि अगर संधि तोड़ने पर भारत से बहने वाली नदियों के पानी को सीमापार जाने से रोका जा सकेगा जिससे पाकिस्तान में पानी के लिए हाहाकार मच जाएगा। हालांकि इसके बाद दोनों देशों के बीच यह मसला अंतरराष्ट्रीय अदालत एवं विश्व बैंक में जाएगा जहां लंबी सुनवाई चलेगी।