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'हम संप्रभुता और अखंडता को लेकर प्रतिबद्ध हैं' भारत कब तक कहता रहेगा ? - Sabguru News
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‘हम संप्रभुता और अखंडता को लेकर प्रतिबद्ध हैं’ भारत कब तक कहता रहेगा ?

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‘हम संप्रभुता और अखंडता को लेकर प्रतिबद्ध हैं’ भारत कब तक कहता रहेगा ?
India politeness is the reason of attacks by other countries
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सबगुरु न्यूज। पिछले कुछ समय से पड़ोसी देश पाकिस्तान, चीन, नेपाल और बांग्लादेश भारत की संप्रभुता पर शिकंजा कसते हुए चले जा रहे हैं, वह भी ऐसे समय पर जब केंद्र की मोदी सरकार कूटनीति के मामले को लेकर आए दिन भारत का ‘डंका’ पीटती रहती है। आजादी के बाद से ही भारत पाकिस्तान को लेकर परेशान रहा है। उसके बाद चीन वर्ष 1962 से भारत को धोखा देता आया है। इसी कड़ी में नेपाल भी आ खड़ा हुआ है, वह भी भारत के भू-भाग को अपना बताकर आंखें दिखाने में लगा हुआ है। लेकिन आज हम बात करेंगे दगाबाज चीन की। चीन ने सोमवार रात को लद्दाख स्थित गालवन घाटी भारतीय सीमा पर एक बार फिर धोखा देते हुए भारी नुकसान पहुंचाया और भारत को एक बार फिर से पस्त कर दिया ।चीन ने फिर से हमारे जमीन पर कब्जा कर लिया है।

चीनी सैनिकों के हमले से हमारे 20 से अधिक जवान शहीद हो गए हैं। दोनों देशों की सेनाओं की हिंसक झड़प में चीन के सैनिकों के भी मारे जाने की सूचना है, हालांकि चीन ने अपने सैनिकों के मारे जाने की पुष्टि नहीं की है। सही मायने में चीन भारत की कूटनीति को ध्वस्त करते हुए पूरी तरह आक्रमण करने के लिए तैयार बैठा है। उस पर विदेश मंत्रालय का एक बार फिर बयान आया है कि ‘हम देश की संप्रभुता और अखंडता के लिए प्रतिबद्ध हैं’, पड़ोसी देश भारत को भारी क्षति पहुंचाकर चले जाते हैं भारत शुरू से ही यही डायलॉग जारी करता रहता है।‌

आखिर केंद्र सरकार संप्रभुता-अखंडता साथ खिलवाड़ नहीं किया जाएगा, कब तक कहती रहेगी। भारत की चीन के साथ टकराहट ऐसे समय में देखने को मिल रही है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और शी जिनपिंग की 6 वर्षों में 18 बार मुलाकात हो चुकी है। 2014 से अभी तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीन की 5 बार यात्रा की है। यही नहीं पिछले साल अक्टूबर में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग भी भारत के महाबलीपरम आए थे। गालवन घाटी में चीनी सैनिकों साथ हमारे जांबाज सैनिकों के शहीद होने पर आज देश फिर गुस्से में हैं।

हमारे सैनिकों के शहीद होने की सूचना भारत पहले छुपाता रहा

चीनी सैनिकों के साथ हुई हिंसक झड़प को केंद्र सरकार विदेश मंत्रालय और रक्षा मंत्रालय हल्के में लेता रहा। सोमवार रात हुई घटना को मंगलवार शाम तक तीन भारतीय सैनिकों के शहीद होने की सूचना आती रही लेकिन रात होते-होते भारतीय सेना ने अपने 20 से अधिक सैनिकों के शहीद होने की सूचना दी। मंगलवार को केंद्र सरकार और विदेश और रक्षा मंत्रालय के साथ सेना के आला अधिकारियों के साथ मोदी सरकार का बैठकों का दौर जारी रहा उसके बावजूद भी चीन को लेकर आक्रामक रवैया नहीं निकल कर आया।

आखिरकार रात 9 बजे भारतीय विदेश मंत्रालय का बयान आया और कहा गया कि हम भारत की संप्रभुता और अखंडता को लेकर प्रतिबद्ध हैं। सीमा विवाद को आपसी बातचीत के जरिए सुलझाया जा सकता है। इसके उलट चीन ने दोनों देशों के सैनिकों के बीच हुई हिंसक झड़प को काफी आक्रामक अंदाज में बयान दिया।‌ यही नहीं चीन के विदेश मंत्रालय की ओर से इस हिंसा और सैनिकों के बीच हुई झड़प को भारत को ही दोषी करार दिया और भारत को धमकी भी दे डाली कि भारत बॉर्डर लाइन पार न करें नहीं तो उसको अंजाम भुगतने होंगे।

भारत अपनी ‘कूटनीति का डंका’ बजाता रहा

भारत चीन सीमा विवाद की पहली खबर मई के प्रथम सप्ताह में आई थी। लद्दाख स्थित पैंगोंग झील पर भरत और चीन की सेनाओं के बीच झड़प हुई थी। उसके कुछ दिनों बाद ही दोनोंं देशों की सेनाओं के बीच फिर धक्का-मुक्की हुई थी। उसके बाद लद्दाख स्थित गालवन घाटी में भारत और चीन केेे बीच युद्ध जैसे हालात बनते जा रहे थे। हालांकि भारत की ओर सीमा पर तनाव कम करने केे लिए चीन के सैनिकों के साथ चार बैठकें भी की लेकिन फिर भी तनाव बना रहा।

इन बैठकोंं के बाद भारत चीन को लेकर जैसे निश्चिंत हो गया था। धीरे-धीरे करते-करते दोनोंं देशों के बीच डेढ़ माह का समय हो गया था। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक बार भी कुछ नहीं बोले हैं। यही नहीं, विदेश मंत्री एस जयशंकर भी अब तक इस पूरे मुद्दे पर खामोश रहे। इस पूरे मामले में लेकर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने एक बार सिर्फ चीन को धमकी देते हुए कहा था कि हमारे सेनाएं बॉर्डर पर मुस्तैद हैं।

मोदी सरकार चीन की तिलमिलाहट न समझ सकी

चीन का भारत से सबसे बड़ी तिलमिलाहट केंद्र सरकार के द्वारा पिछले वर्ष जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 का हटाना है। चीन सरकार ने केंद्र सरकार के इस फैसले का विरोध जताया था। इसका सबसेे बड़ा या है कि चीन कश्मीर और लद्दाख में भारत के इंफ्रास्ट्रक्चर बिल्डिंग पर आपत्ति जता रहा है। भारत ने जब से दौलत बेग ओल्डी में सड़क बनाई है, तब से चीन ज्यादा ही खफा है। यही नहीं कोरोना महामारी फैलने को लेकर चीन को डर है कि कहीं भारत उसके लिए मुसीबत ना बन जाए, उसी को लेकर चीन भारत पर दबाव भी डाल रहा है।

चीन को मौजूदा समय में भारत की विदेश नीति भी पसंद नहीं आ रही है इस महामारी को लेकर केंद्र सरकार की पश्चिमी देशों खासतौर पर अमेरिका के साथ मेलजोल से चीन बेहद खफा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले दिनों अपने देश की आर्थिक व्यवस्था को लेकर कई कड़े कदम उठाए थे। चीन की कंपनियों पर केंद्र सरकार कड़ी नजर रख रही है। प्रधानमंत्री मोदी आत्मनिर्भरता की बात कर रहे हैं। इन बातों से भी चीन को लग रहा है कि भारत उससे आर्थिक निर्भरता को कम करना चाह रहा है।

भारत के साथ समझौते की चीन ने कभी परवाह नहीं की

चीन की भारत के प्रति सोच काफी खतरनाक रही है। उसने भारत के साथ हुए समझौते की कभी परवाह नहीं की। चीन को भारत के साथ किसी एग्रीमेंट की परवाह नहीं है, नहीं तो वह सिक्किम एग्रीमेंट को भी मानता, जिसे उसने बाद में तोड़ दिया। उसे समझौतों का कोई फर्क नहीं पड़ता। 1993 के शांति समझौते बस फंडामेंटल राइट्स बनकर रह गए हैं। मोदी सरकार के कार्यकाल में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग अब तक दो बार भारत की यात्रा कर चुके हैं लेकिन उस दौरान भी दोनों देशों की सीमा पर हिंसक झड़पें जारी थी। ऐसा नहीं है शी जिनपिंग की भारत यात्रा के दौरान सीमा को लेकर बातचीत नहीं हुई है दोनों देशों के बीच। लेकिन चीन भारत के साथ हुए समझौतों की कभी परवाह नहीं करता है।

यहां हम आपको बता दें कि चीन को जब भारत को कोई कड़ा मैसेज देना होता है तो वह बॉर्डर पर देता है। सही मायने में चीन की सोच पाकिस्तान से भी बात को लेकर आक्रामक रही है। चीनी सैनिकों के हमले के बाद केंद्र सरकार की किरकिरी पर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने मोदी सरकार पर हमला बोला है। राहुल ने कहा है प्रधानमंत्री कहां हैं? वे छिपे हुए क्यों हैं? अब बहुत हुआ।

हम जानना चाहते हैं कि आखिर क्या हुआ। हमारे सैनिकों को मारने की चीन की हिम्मत कैसे हुई। वह हमारी जमीन पर कब्जा करने की हिम्मत कैसे कर सकता है? वहीं दिग्विजय ने ट्वीट किया कि मोदी की विदेश यात्राएं कितनी सफल रहीं, इसका प्रमाण दें। प्रधानमंत्री जुमलेबाजी छोड़कर हर क्षेत्र में असफल रहे।भारत को अब चीन से बात करते समय बहुत ही फूंक-फूंक कर कदम रखने की जरूरत है।

शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार