नयी दिल्ली । भारत ने अमेरिकी प्रतिबंधों की परवाह किये बिना आज रूस से लगभग 400 किलोमीटर तक हवा से हवा में मार करने वाली अत्याधुनिक हवाई रक्षा प्रणाली एस-400 मिसाइल की खरीद के सौदे पर हस्ताक्षर कर दिये।
भारत की यात्रा पर आये रूस के राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बीच शुक्रवार को यहां हुई शिष्टमंडल स्तर की बैठक में इस सौदे पर हस्ताक्षर किये गये। भारत 5.43 अरब डालर यानी लगभग 40 हजार करोड रूपये में हवा से हवा में मार करने वाली इन असाधारण मिसाइलों के पांच स्क्वैड्रन खरीदेगा। मिसाइलों की आपूर्ति हस्ताक्षर होने के दो वर्ष के भीतर यानी 2020 तक शुरू हो जायेगी।
यह सौदा अमेरिका की उस चेतावनी के बावजूद किया गया है जिसमें रूस से हथियार खरीदने पर आर्थिक प्रतिबंध लगाने की बात कही गयी है। भारत ने रक्षा और विदेश मंत्री के स्तर पर अमेरिका से पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि वह रूस से एस-400 मिसाइल के सौदे पर पीछे नहीं हटेगा। उसने कहा है कि रूस के साथ उसके दशकों पुराने रक्षा संबंध हैं और उससे लंबे समय से रक्षा उत्पाद खरीद रहा है तथा एस-400 मिसाइल सौदे पर भी लंबे समय से बात चल रही थी।
अमेरिका ने कहा था कि वह भारत पर ‘काट्सा’ यानी ‘काउंटरिंग अमेरिका एडवसरिज थ्रू सेंक्शंस एक्ट ’ के तहत आर्थिक प्रतिबंध लगा सकता है। इस कानून में प्रावधान है कि यदि कोई भी देश रूस , ईरान या उत्तर कोरिया से हथियारों की खरीद करता है तो उसे अमेरिकी प्रतिबंधों का सामना करना पडेगा।
बैठक के बाद जारी संयुक्त वक्तव्य में कहा गया है कि दोनों पक्षा एस-400 मिसाइल खरीद सौदे का स्वागत करते हैं। एस-400 मिसाइल हवा से हवा में मार करने वाली अत्याधुनिक हवाई रक्षा प्रणाली है जो रूस की सरकारी कंपनी अलमाज एंटे ने बनायी है और यह हवा में 380 किलोमीटर तक किसी भी लक्ष्य को निशाना बना सकती है। यह ड्रोन, विमान या मिसाइल किसी भी हमले को पहले ही भांप उसे हवा में ही नेस्तनाबूद करने में सक्षम है।
वायु सेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल बी एस धनोआ ने दो दिन पहले ही कहा था कि एस-400 मिसाइल प्रणाली वायु सेना के लिए ‘बूस्टर डोज’ की तरह से है और इससे भारत की हवाई ताकत कई गुना बढ जायेगी। चीन और पाकिस्तान के पास अत्याधुनिक लड़ाकू विमानों को देखते हुए भारत के लिए यह मिसाइल प्रणाली बेहद जरूरी है। सूत्रों के अनुसार भारत के यह सौदा करने से यह संदेश भी जायेगा कि वह सामरिक मामलों को लेकर किसी के दबाव में नहीं आने वाला।
रूस अमेरिकी प्रतिबंधों की काट में यह मिसाइल केवल भारत ही नहीं बल्कि कुछ अन्य देशों को भी बेचने के बारे में बात कर रहा है। इनमें नाटो का प्रमुख देश तुर्की भी शामिल है। चीन इस मिसाइल को पहले ही खरीद चुका है।