श्रीहरिकोटा। भारत ने चंद्रमा पर अपने दूसरे महत्वाकांक्षी मिशन चंद्रयान-2 का देश के सबसे वजनी 43.43 मीटर लंबे जीएसएलवी-एमके3 एम1 रॉकेट की मदद से सोमवार को सफल प्रक्षेपण कर इतिहास रच दिया।
चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर, लैंडर (विक्रम) और रोवर (प्रज्ञान) प्रक्षेपण के 16 मिनट बाद प्रक्षेपण यान से अलग हो गया और पृथ्वी की पार्किंग कक्षा में प्रवेश कर गया। इसके बाद उसने सात सितंबर को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग करने के लिए अपनी 30844 लाख किलोमीटर की 48 दिन तक चलने वाली यात्रा शुरू कर दी।
देश के करोड़ों लोगों के सपनों के साथ 3850 किलोग्राम वजनी चंद्रयान-2 ने अपराह्न 14:43 बजे शानदार उड़ान भरी। इसके प्रक्षेपण के लिए उलटी गिनती 20 घंटे पहले रविवार शाम 18:43 बजे शुरू हुई थी।
चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर, लैंडर (विक्रम) और रोवर (प्रज्ञान) प्रक्षेपण के 16 मिनट बाद प्रक्षेपण यान से अलग हो जाएगा और पृथ्वी की पार्किंग कक्षा में प्रवेश कर जाएगा। इसके बाद वह सात सितंबर को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग करने के लिए अपनी 30844 लाख किलोमीटर की 48 दिन तक चलने वाली यात्रा शुरू करेगा।
इससे पहले चंद्रयान-2 का प्रक्षेपण 15 जुलाई को किया जाना था लेकिन तकनीकी खराबी आने के कारण इसे टाल दिया गया। इसरो ने 18 जुलाई को घोषणा की थी कि विशेषज्ञ समिति ने तकनीकी खराबी के कारण का पता लगा लिया है और उसे ठीक भी कर लिया गया है।
भारत का पहला चंद्र मिशन चंद्रयान-1 का प्रक्षेपण 22 अक्टूबर 2008 में किया गया था। इससे चांद की सतह पर पानी की मौजूदगी का पता लगाया गया है। यह मिशन इसरो के इतिहास के सबसे कठिन मिशनों में से एक है। आज तक दुनिया के किसी अन्य देश ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर अपना मिशन नहीं भेजा है।
चंद्रयान-2 प्रक्षेपण के बाद पहले 23 दिन पृथ्वी की कक्षा में ही रहेगा जहां से अगले पांच दिन में इसे चाँद की कक्षा में स्थानांतरित किया जायेगा। चंद्रयान-2 का लैंडर चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर मैनजिनस सी और सम्पेलस एन क्रेटरों के बीच उतरेगा।
इसरो के अनुसार पहले 23 दिन पृथ्वी की कक्षा में रहने के बाद चंद्रयान को चंद्रमा की कक्षा में स्थानांतरित करने वाले वक्र पथ पर डाला जायेगा। तीसवें दिन यह चंद्रमा की कक्षा में पहुंच जायेगा। वहाँ अगले 13 दिन तक चंद्रयान चंद्रमा की सतह से 100 किलोमीटर की ऊँचाई वाली कक्षा में चक्कर लगाएगा।
तैंतालिसवें दिन लैंडर चंद्रमा की सतह पर उतरने के लिए ऑर्बिटर से अलग हो जाएगा जबकि ऑर्बिटर उसी कक्षा में चक्कर लगता रहेगा। चौवालिसवें दिन से लैंडर की गति कम की जाएगी और 48वें दिन वह चंद्रमा पर उतरेगा। चंद्रयान का लैंडर सात सितंबर के आसपास चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर मैनजिनस सी और सिम्पेलियस एन क्रेटरों के बीच उतरेगा।
ऑर्बिटर का वजन 2379 किलोग्राम है। इसमें 1000 वाट बिजली उत्पन्न करने की क्षमता है। इसमें आठ वैज्ञानिक उपकरण यानी पेलोड हैं जो विभिन्न आँकड़े जुटायेंगे। यह एक साल तक चंद्रमा की कक्षा में रहेगा।
लैंडर, जिसे भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के पितामह विक्रम साराभाई के नाम पर विक्रम नाम दिया गया है, चंद्रमा की सतह पर उतरेगा। यह एक चंद्र दिवस यानी करीब 14 दिन तक आंकड़े जुटाने का काम करेगा। इस पर चार पेलोड हैं। इसका वजन 1471 किलोग्राम है और यह 650 वाट बिजली उत्पन्न कर सकता है।
रोवर को प्रज्ञान नाम दिया गया है। इसका वजन 27 किलोग्राम है और इसमें छह पहिये लगे हैं। यह लैंडर से 500 मीटर के दायरे में चक्कर लगा सकता है। इस दौरान इसकी गति एक सेंटीमीटर प्रति सेकेंड होगी। इस पर दो पेलोड हैं।
ऑर्बिटर और लैंडर बेंगलूरु के पास ब्यालालू स्थित इंडियन डीप सी नेटवर्क नामक इसरो के नियंत्रण कक्ष से सीधे संपर्क में रहेंगे। ये आपस में भी संवाद कर सकेंगे। रोवर लैंडर के साथ संवाद करेगा।
इस मिशन के मुख्य उद्देश्यों में चंद्रमा पर पानी की मात्रा का अनुमान लगाना, उसके जमीन, उसमें मौजूद खनिजों एवं रसायनों तथा उनके वितरण का अध्ययन करना, उसकी भूकंपीय गतिविधियों का अध्ययन, और चंद्रमा के बाहरी वातावरण की ताप-भौतिकी गुणों का विश्लेषण है। उल्लेखनीय है चंद्रमा पर भारत के पहले मिशन चंद्रयान-1 ने वहां पानी की मौजूदगी की पुष्टि की थी।
इस मिशन में तरह-तरह के कैमरा, स्पेक्ट्रोमीटर, रडार, प्रोब और सिस्मोमीटर शामिल हैं। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा का एक पैसिव पेलोड भी इस मिशन का हिस्सा है जिसका उद्देश्य पृथ्वी और चंद्रमा की सटीक दूरी पता लगाना है।
पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसान लैंडर (विक्रम) और रोवर (प्रज्ञान) को छह सितंबर को चांद पर उतरना था जिसे अब एक दिन बढ़ाकर सात सितंबर कर दिया गया है। पहले विक्रम और प्रज्ञान को प्रक्षेपण के 54वें दिन चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करनी थी लेकिन प्रक्षेपण टलने के कारण इस समय सीमा काे कम कर दिया गया और अब ये 48वें दिन चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग करेगा।
चंद्रयान-2 प्रक्षेपण के बाद पहले 23 दिन पृथ्वी की कक्षा में ही रहेगा जहां से अगले पांच दिन में इसे चाँद की कक्षा में स्थानांतरित किया जायेगा। पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के मुताबिक इसे 17 दिन पृथ्वी की कक्षा में रहना था। चंद्रयान-2 का लैंडर चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर मैनजिनस सी और सम्पेलस एन क्रेटरों के बीच उतरेगा।
इसरो के अनुसार, पहले 23 दिन पृथ्वी की कक्षा में रहने के बाद चंद्रयान को चंद्रमा की कक्षा में स्थानांतरित करने वाले वक्र पथ पर डाला जाएगा। पहले इसे 22वें दिन इसे चंद्रमा की कक्षा में पहुंचना था जो अब 30वें दिन होगा। वहाँ अगले 28 दिन तक चंद्रयान को चंद्रमा की सतह से 100 किलोमीटर की ऊंचाई वाली कक्षा में चक्कर लगाना था लेकिन समय की कमी के कारण इस अवधि को घटाकर 13 दिन कर दिया गया।
तैंतालिसवें दिन लैंडर चंद्रमा की सतह पर उतरने के लिए ऑर्बिटर से अलग हो जायेगा जबकि ऑर्बिटर उसी कक्षा में चक्कर लगाता रहेगा। चौवालिसवें दिन से लैंडर की गति कम की जाएगी और 48वें दिन वह चंद्रमा पर उतरेगा।
इसरो का इस मिशन के जरिये अंतरिक्ष में भारत की पहुंच बढ़ाने और वैज्ञानिकों, इंजीनियरों तथा खोजी लोगों की भावी पीढ़ी को प्रेरित करने का लक्ष्य है। इसरो ने कहा कि हम चांद की अपनी समझ को विकसित करना चाहते हैं ताकि भारत और मानवता का फायदा पहुंचाने वाली खोज को बढ़ावा मिले।