अली न्गारी | तिब्बत प्रशासन ने कहा है कि भारत सरकार को लिपुलेख दर्रे तक अच्छी सड़क का निर्माण करना चाहिए जिससे कैलास मानसरोवर की यात्रा पर आने वाले श्रद्धालुओं को शारीरिक कष्ट न हो और यात्रा समय कम लगे। ऐसा होने से अधिक यात्री पवित्र तीर्थाटन पर आ सकेंगे।
तिब्बत में कैलास मानसरोवर क्षेत्र अली प्रीफैक्चर क्षेत्र में आता है और इसी क्षेत्र में यात्रा के प्रबंध देखने वाले शीर्ष अधिकारी उपायुक्त जी चिंगमिन ने भारतीय पत्रकारों के एक दल से बातचीत में यह बात कही। चिंगमिन ने कहा कि कैलास मानसरोवर क्षेत्र में विगत कुछ वर्षों में चीन सरकार ने करोड़ों युआन का निवेश करके यात्रियों के लिए ढांचागत सुविधाओं का विकास किया है। चार अतिथि गृहों के अलावा लिपुलेख दर्रे तक सड़क का निर्माण हो रहा है। चिकित्सीय सुविधाओं में विस्तार करने के साथ ऑक्सीजन बार भी लगाये लाने की तैयारी हाे रही है। क्योंकि यात्री 15 से 16 हजार फुट की ऊँचाई पर सांस लेने में दिक्कत का अनुभव करते हैं।
उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र में पानी, बिजली सहित अनेक ऐसी चुनौतियां हैं कि सालभर में काम करने के लिए तीन चार महीने ही मिलते हैं और उनमें भी बरसात होती है। यात्रियों को शौचालय की बेहतर सुविधा उपलब्ध कराने का प्रयास किया गया है। बिजली एवं पानी के कनेक्शन का काम पूरा नहीं हो पाया है। इसे जल्द कराने का प्रयास किया जा रहा है।
भारतीय यात्रियों की दिक्कतों के प्रति सहानुभूति व्यक्त करते हुए चिंगमिन ने कहा कि चीन सरकार अपनी तरफ से सभी सुविधाएं देने का प्रयास कर रही है। वह अपेक्षा करते हैं कि भारत सरकार भी लिपुलेख दर्रे या चाम दर्रे तक अच्छी सड़क जल्द से जल्द बनवाये । यात्रियों को करीब तीन से चार दिन दुर्गम पहाड़ों में पैदल चल कर आना पड़ता है जिससे उन्हें कठाेर शारीरिक कष्ट सहना पड़ता है। इससे कैलास की यात्रा अधिक श्रमसाध्य हो जाती है।
बीजिंग में विदेश मंत्री एस जयशंकर और चीन के विदेश मंत्री वांग यी के बीच बैठक में यात्रियों की संख्या बढ़ाने के बारे में सहमति कायम होने संबंधी रिपोर्टों का जिक्र किये जाने पर उन्होंनें कहा कि भारत की ओर सड़क बनने से यात्रा की अवधि में कमी आयेगी और उससे अधिक जत्थे आ सकेंगे।
उन्होंने भारतीय यात्रियों से अपेक्षा की कि वे कैलास मानसरोवर क्षेत्र में चीन के नियमों एवं कानूनों का पालन करें। चीन की सरकार ने इस क्षेत्र को नैसर्गिक संरक्षित क्षेत्र घोषित किया है ताकि इसका पर्यावरण सुरक्षित रखा जा सके। यात्रियों को इस बारे में सहयोग करना चाहिए। उन्हें यात्रा के पहले स्वास्थ्य संबंधी सभी तैयारियां कर लेनी चाहिए।
उल्लेखनीय है कि हर साल जून से सितंबर के बीच कैलाश मानसरोवर यात्रा का आयोजन किया जाता है। भारतीय विदेश मंत्रालय द्वारा आयोजित यात्रा में 28 जत्थों में कुल 1580 तीर्थ यात्री जाते हैं। इनमें 18 जत्थे लिपुलेख दर्रे वाले मार्ग से और 10 जत्थे नाथू-ला वाले मार्ग से जाते हैं। लिपुलेख दर्रे वाले मार्ग से जाने वाले प्रत्येक जत्थे में 60 तीर्थ यात्री जबकि सिक्किम स्थित नाथू ला दर्रे वाले मार्ग से जाने प्रत्येक जत्थे में 50 तीर्थ यात्री होते हैं।
उत्तराखंड के लिपुलेख दर्रे वाले मार्ग पर यात्रियों काे पहले करीब 80 किलोमीटर की दूरी पैदल तय करनी पड़ती थी लेकिन इस साल गाला से सिर्खा तक सड़क मार्ग बन जाने के कारण दो पड़ाव कम हो गये हैं और 24 किलोमीटर पैदल दूरी घट गयी है। इस बार से यात्रियों को इस बार करीब 56 किलोमीटर ही पैदल चलना पड़ रहा है। पहले यात्रियों का पैदल चलने में आठ दिन लगते थे लेकिन अब छह दिन लग रहे हैं। लिपुलेख दर्रा पार करने के बाद चीन की सीमा के अंदर भी पहले करीब तीन किलोमीटर पैदल चलना पड़ता था लेकिन अब चीन ने दर्रे के नज़दीक तक सड़क बना दी है और अब एक किलोमीटर से कम पैदल चलना पड़ता है और इसमें 10 से 15 मिनट का समय लगता है।