नई दिल्ली। क्षेत्रीय समग्र आर्थिक साझेदारी (आरसेप) समझौते से हटने के भारत के फैसले को चीन के विश्लेषकों ने एक ऐतिहासिक चूक करार दिया है और कहा है कि भारत ऐसा करके वैश्विक स्तर पर औद्योगिक ताकत बनने के बड़े मौके को गंवा रहा है।
बैंकाॅक में तीसरे आरसेप शिखर सम्मेलन के संपन्न होने के करीब एक पखवाड़े बाद चीनी विश्लेषकों ने बीते सप्ताह भारत की यात्रा के दौरान यहां मीडिया से संवाद के दौरान यह राय व्यक्त की। चीनी दूतावास द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में उन्होंने विश्व के इस सबसे बड़े मुक्त व्यापार समझौते में भारत को शामिल होने का आह्वान करते हुए कहा कि आरसेप में शामिल होने के लिए भारत को ‘सशक्त नेतृत्व’ एवं अधिक सुधारों की आवश्यकता होगी।
भारत ने आरसेप में शामिल होने से इसलिए इन्कार कर दिया कि उसे लगता है कि चीन जैसे देशों ने आयात की बाढ़ से उसके घरेलू उद्योग एवं व्यापार तबाह हो सकते हैं, समझौते में इसके लिए कोई प्रावधान नहीं किया गया है। भारत ने चार बिन्दुओं के समाधान पर जोर दिया था लेकिन अंतत: उनका कोई हल नहीं निकला तो प्रधानमंत्री ने करार की वार्ता में शामिल अन्य 15 देशों के समक्ष दो टूक शब्दों में समझौते में शामिल होने से इन्कार कर दिया।
चीन के फुदान विश्वविद्यालय में चाइना इंस्टीट्यूट के निदेशक प्रोफेसर झांग वेईवेई ने कहा, “हमें लगता है कि भारत ने एक ऐतिहासिक चूक की है। भारत का आरसेप में शामिल होना चाहिए।” उन्होंने कहा कि इस करार से तमाम फायदों में से एक यह होगा कि भारत का विनिर्माण क्षेत्र अधिक प्रतिस्पर्धी बन सकेगा। चीन भी अपने उच्च उत्पादन लागत वाले और अधिक मानवश्रम वाले उद्यमों को अन्य देशों में स्थानांतरित कर रहा है और यह भारत के लिए भी एक अवसर साबित हो सकता है।
प्रतिनिधिमंडल की एक अन्य सदस्य चाइना एकेडमी ऑफ इंटरनेशनल ट्रेड एंड इकॉनोमिक कोऑपरेशन में इंस्टीट्यूट में उपनिदेशक झू काइहुआ ने भी कहा कि भारत का निर्णय आर्थिक कारणों की वजह से नहीं बल्कि घरेलू राजनीतिक बाध्यताओं की वजह से लिया गया है। उन्होंने कहा, “मुझे लगता है कि आरसेप में शामिल होने या नहीं होने का फैसला किसी आर्थिक आकलन या समीकरण के कारण नहीं लिया गया बल्कि यह घरेलू राजनीति का मामला था। भारत को अगर आरसेप का फायदा उठाना है तो उसे सशक्त नेतृत्व, सुशासन एवं देश में और सुधार करने की जरूरत है। केवल इसी रास्ते से भारत औद्योगीकरण के लक्ष्य को पा सकता है और एक सभ्य राष्ट्र के रूप में पुनर्निर्माण कर सकता है।”