अजमेर। महिलाओं का सशक्त होना वर्तमान समय की आवश्यकता है, लेकिन इस सशक्तीकरण में पुरुषों की भागीदारी भी अहम है। ये बात राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की अध्यक्ष संगीता बेनीवाल ने शनिवार को महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय में जनसंख्या अध्ययन विभाग के तत्वावधान में स्वराज सभागार में महिला दिवस के मौके पर आयोजित एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में बतौर मुख्य अतिथि संबोधित करते हुए कही।
बेनीवाल ने कहा है कि पुरुष जब तक महिलाओं के कार्य में साझेदारी नहीं करेंगे, तब तक महिला अधूरी ही रहेगी। महिलाओं की अनेक सामाजिक जिम्मेदारियों को पूरा करने में पुरुषों की भागीदारी जरूरी है। परिवार संचालन हो या फिर बच्चों का लालन-पालन हो। कामकाजी व नौकरी पेशा महिलाओं को अगर सहयोगी के रूप में पति, भाई, पिता जो भी रिश्ते में हैं, उनके अनुकूल जिम्मेदारी निभाने से ही महिला व समाज में बदलाव आ सकता है।
सत्र की अध्यक्षता करते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो आरपी सिंह ने अपने संबोधन में कहा कि कर्तव्य बोध व्यक्ति को प्रगति की ओर ले जाता है। महिलाओं में भी यह दायित्व बोध होना जरूरी है। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति व पाश्चात्य संस्कृति में काफी समानता है। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति में महिला को आजीवन दायित्व बोध होता है और यह समाज के लिए जरूरी है।
संगोष्ठी संयोजक प्रोफ़ेसर लक्ष्मी ठाकुर ने संगोष्ठी की रूपरेखा प्रस्तुत करते हुए कहा कि महिला सशक्तिकरण बहुत बड़ा शब्द है। इसका महिलाओं को संज्ञान करवाना आवश्यक है। महिलाएं सृजनात्मक होती हैं और यह सृजन का भाव उनसे आजीवन जुड़ा हुआ रहता है। उन्होंने कहा कि उच्च पदों पर आसीन महिलाओं को सशक्त महिलाओं के लिए हर रूप में सहयोग प्रदान करना चाहिए चाहे वह स्वयं के प्रयास हों या कोई सरकारी योजनाएं हो।
उन्होंने कहा कि पुरुष प्रत्येक जिम्मेदारी के लिए महिलाओं के नाम का उल्लेख करते हैं, लेकिन यह यह एक भावनात्मक लगाव हैं, जिससे महिला जिम्मेदारी के साथ पूरा कर लेती हैं। एडवोकेट कुणाल दत्ता ने मुख्य अतिथि का परिचय प्रस्तुत किया। कार्यक्रम के आरंभ में अतिथियों द्वारा मां सरस्वती के चित्र के समक्ष दीप प्रज्वलन व पुष्प अर्पित किए गए। विश्वविद्यालय के कुलगीत के बाद सत्र का प्रारंभ हुआ। संचालन डॉ राजू शर्मा ने किया।
संगोष्ठी में दो तकनीकी सत्र आयोजित किए गए। प्रथम तकनीकी सत्र महिला एवं शिक्षा पर आधारित था। इस सत्र की की मुख्य वक्ता वाणिज्य कर अधिकारी श्रुति गौतम ने अपने संबोधन में कहा कि पैसा कमाना ही आर्थिक स्वतंत्रता नहीं है। महिलाएं भावुक होती हैं तथा निर्णय क्षमता पर यह निर्भर करता है उन्हें किस प्रकार के निर्णय लेने होते हैं।
अध्यक्षता करते हुए प्रोफेसर टीके माथुर पूर्व विभागाध्यक्ष इतिहास विभाग महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय अजमेर ने कहा कि महिला सशक्तीकरण के लिए हमें अन्य देशों के बारे में बताने की बजाय भारत को ही एक मिसाल के रूप में सामने रखना होगा। प्राचीन भारतीय महिलाओं की मिसाल देकर हम वर्तमान परिवेश में महिलाओं को अभी प्रेरित कर सकते हैं।
द्वितीय सत्र नारी में शक्ति सारी विषय आधारित रहा। इस सत्र मुख्य वक्ता अभिलाषा यादव थीं। यादव ने अपने उद्बोधन महिला सशक्तीकरण की आवाज है। जो हर साल महिला दिवस उठती है लेकिन महिलाओं पर दुराचार, शोषण, छेड़खानी जैसी घटनाएं आए दिन होती रहती हैं। इसमें सुधार के लिए सख्त कानून की महती आवश्यकता है।
अध्यक्षता करते हुए प्रोफेसर सुब्रतो दत्ता ने कहा कि वर्तमान में महिलाएं समाज में दोहरी भूमिका में अपने कर्तव्य का निर्वहन कर रही हैं जो समाज के लिए एक प्रेरक कार्य हैं। इस सत्र में पूर्व पार्षद भारतीय श्रीवास्तव ने अपने उद्बोधन में कहा कि महिलाओं को सशक्त बनाने हेतु सामाजिक आर्थिक राजनीतिक क्षेत्रों में भी उन्हें अवसर प्रदान किया जाना चाहिए।