नई दिल्ली। सरकार ने दस जांच एजेन्सियों को राष्ट्रीय सुरक्षा के संदर्भ में किसी भी व्यक्ति के टेलीफोन और कंप्यूटर डाटा की जांच के लिए अधिकृत किया है, लेकिन इसके लिए पहले की तरह गृह मंत्रालय से अनुमति लेना जरूरी होगा।
गृह मंत्रालय द्वारा इस आशय की अधिसूचना जारी किए जाने के बाद देश भर में खलबली मच गई और विपक्षी दलों ने संसद में इसको लेकर हंगामा किया। विपक्षी दलों ने आरोप लगाया कि सरकार जांच एजेन्सियों को दुरूपयोग कर अब किसी भी व्यक्ति के डाटा की जांच करवा लेगी क्योंकि इसके लिए सक्षम अधिकारी से अनुमति लेने की जरूरत नहीं होगी।
सरकार ने इस पर संसद में और बाहर भी स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा कि आदेश से संबंधित अधिसूचना में जांच एजेन्सियों को कोई नया अधिकार नहीं दिया गया है और गृह मंत्रालय ने जांच की अनुमति देने का अधिकार अपने पास ही रखा है।
गृह मंत्रालय ने एक वक्तव्य जारी कर कहा कि गुरूवार को जारी आदेश वर्ष 2009 में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार द्वारा बनाए गए और तब से प्रचलित नियमों पर ही आधारित है। इस आदेश में किसी भी जांच एजेन्सी को नए अधिकार नहीं दिए गए हैं। आदेश से संबंधी अधिसूचना सेवा प्रदाताओं और मध्यवर्ती संस्था आदि को सूचित करने और मौजूदा आदेशों को संहिताबद्ध करने के लिए जारी की गई थी।
वित्त मंत्री अरूण जेटली ने राज्यसभा में कहा कि यह आदेश हर व्यक्ति और हर कंप्यूटर के लिए नहीं है बल्कि केवल राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित मामलों में ही लागू होगा। यह आदेश वर्ष 2009 में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के समय में बनाए गए कानून पर ही आधारित है और 20 दिसम्बर को इसे फिर से लागू किया गया है। उन्होंने कहा कि इसमें उन्हीं एजेन्सियों के नाम शामिल किए गए हैं जिन्हें 2009 के कानून में भी इस तरह की जांच का अधिकार दिया गया था।
गृह मंत्रालय के वक्तवय में कहा गया है कि सूचना प्रौद्योगिकी (सूचना पर रोक, निगरानी और विकोडन की प्रक्रिया और संरक्षण) नियम 2009 के नियम चार में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि सक्षम अधिकारी अधिनियम की धारा 69 की उप धारा (1) में निर्दिष्ट उद्देश्य के लिए सरकारी एजेन्सी को किसी भी कंप्यूटर में सूचना पर रोक लगाने, उसकी निगरानी करने, उसे संरक्षित रखने और एकत्र करने की अनुमति दे सकता है। यह अनुमति देने के लिए केन्द्रीय गृह सचिव को अधिकृत किया गया है। राज्यों में भी इसके लिए सक्षम अधिकारी से अनुमति लेना जरूरी होगा।
मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि जांच की अनुमति से संबंधित सभी मामलों केबिनेट सचिव की अध्यक्षता वाली समीक्षा समिति के समक्ष भी रखा जाएगा। समिति दो महीने में कम से कम एक बार बैठक कर इन मामलों की समीक्षा करेगी। सूचना प्रौद्योगिकी नियम 2009 के नियम 22 में कहा गया है कि राज्य सरकारों के मामले में मुख्य सचिव की अध्यक्षता वाली समिति इन मामलों की समीक्षा करेगी।
वक्तव्य में कहा गया है कि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000 में पर्याप्त सुरक्षा उपाय किए गए हैं। टेलीग्राफ अधिनियम में भी इसी तरह के उपायों के साथ इसी तरह के प्रावधान किए गए हैं। यह अधिसूचना टेलीग्राफ अधिनियम में दिए गए अधिकारों के अनुरूप ही है और इसी अधिनियम के तहत समीक्षा का भी प्रावधान है।
मंत्रालय ने कहा है कि इस अधिसूचना से यह सुनिश्चित होगा कि किसी भी कंप्यूटर से सूचना पर रोक लगाने, उसकी निगरानी करने और उसे संरक्षित करने के लिए कानूनी प्रक्रिया का पालन करना होगा। इससे कोई भी गैर अधिकृत एजेन्सी या व्यक्ति या संस्था डाटा की जांच नहीं कर सकेगी।
उल्लेखनीय है कि गृह मंत्रालय ने गुरूवार को जारी अधिसूचना में कहा था कि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000 की धारा 69 की उप धारा (1) में निर्दिष्ट उद्देश्य के लिए दस एजेन्सी कंप्यूटर डाटा की जांच कर सकती हैं।
इन एजेन्सियों में राष्ट्रीय जांच एजेन्सी एनआईए, गुप्तचर ब्यूरो ‘आईबी’, केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई), नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो, प्रवर्तन निदेशालय, केन्द्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड, केबिनेट सचिवालय, डायरेक्टोरेट ऑफ सिग्नल इंटेलिजेंस, राजस्व खूफिया निदेशालय और दिल्ली पुलिस कमिश्नर शामिल हैं।