चेन्नई। आध्यात्मिक साधना करने से व्यक्ति पर सर्व प्रकार से परिणाम होता है तथा फलस्वरूप संसार में सकारात्मक परिवर्तन होता है।
यद्यपि आधुनिक संसार ने भौतिक दृष्टि से बहुत प्रगति की है, तथापि मनुष्य के जीवन का स्तर सुधारने के स्थान पर बिगडता जा रहा है, यह संसारभर की बढती उदासीनता, तनाव और चिंता से ध्यान में आता है।
संसार यदि सनातन धर्म के समय की परीक्षा के तत्त्व और परंपराएं अपनाए, तो संसार की सकारात्मकता में वृद्धि होगी। सकारात्मकता में हुई इस वृद्धि का व्यक्ति की वृत्ति, आचरण और कृत्यों पर सर्व प्रकार से सकारात्मक परिणाम होता है। फलस्वरूप संसार में सकारात्मक परिवर्तन होता है, ऐसा प्रतिपादन ‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ की क्षिप्रा जुवेकर ने किया।
वे 21 सितंबर 2019 को चेन्नई में आयोजित ‘युवकों के लिए हिन्दू धर्म’ इस राष्ट्रीय परिषद में बोल रही थीं । इस परिषद का आयोजन ‘श्री रामकृष्ण मठ’, चेन्नई ने किया था। महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के संस्थापक परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी इस शोध प्रबंध के लेखक तथा विश्वविद्यालय के शॉन क्लार्क और क्षिप्रा जुवेकर इसके सहलेखक हैं।
विश्वविद्यालय द्वारा वैज्ञानिक परिषदों में प्रस्तुत यह 55वां शोधप्रबंध था। अभी तक 13 राष्ट्रीय और 41 अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक परिषदों में शोधनिबंध प्रस्तुत किए गए हैं। इनमें से अंतरराष्ट्रीय परिषदों में प्रस्तुत 3 शोधप्रबंधों को उन परिषदों में सर्वोत्कृष्ट शोधप्रबंध पुरस्कार प्राप्त हुआ है।
जुवेकर ने कहा कि नकारात्मक स्पंदन प्रक्षेपित करनेवाले कृत्यों में सम्मिलित होने से व्यक्ति में नकारात्मकता बढती है। व्यक्ति निरंतर नकारात्मक स्पंदनों के संपर्क में रहे, तो उसपर अनिष्ट परिणाम होता है तथा परिणामस्वरूप समाज की हानि होने के साथ ही आध्यात्मिक दृष्टि से वातावरण प्रदूषित होता है। हम प्रतिक्षण आहार, पहरावा, संगीत और संगत जैसे दैनिक जीवन के घटकों के संबंध में निर्णय लेते हैं, तब हमें उपरोल्लेखित मूलभूत सूत्रों का भान नहीं होता।
जुवेकर ने ‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ की ओर से ‘यूनिवर्सल ऑरा स्कैनर’ का उपयोग कर किए गए विपुल शोधों में से 2 प्रयोगों की जानकारी दी। ‘यूनिवर्सल ऑरा स्कैनर’ (यूएएस) नामक वैज्ञानिक उपकरण भूतपूर्व अणु वैज्ञानिक डॉ. मन्नम मूर्ति ने विकसित किया है।
‘भारतीय परंपराएं अधिक सकारात्मकता उत्पन्न करती हैं, यह इस माध्यम से किए हुए 25 से अधिक प्रयोगों में दिखाई दिया है। इसका कारण है कि भारतीय परंपराओं की रचना इस प्रकार की गई है, जिसका व्यक्ति और वातावरण पर सकारात्मक परिणाम हो। अधिकतर यह स्पष्ट हुआ है आधुनिक संसार की पद्धतियां नकारात्मकता उत्पन्न करने वाली हैं। अंत में जुवेकर ने संसार की बढती नकारात्मकता रोकने के लिए किए जाने वाले प्रयत्नों का सारांश निम्नांकित शब्दों में प्रस्तुत किया :
1. आध्यात्मिक स्पंदन और उनका स्वयं के जीवन पर परिणाम के संबंध में स्वयं का उद्बोधन करना।
2. नियमित साधना करने से व्यक्ति की ओर सकारात्मकता आकर्षित होती है। परिणामस्वरूप वह अपने आप अधिकाधिक सात्त्विक विकल्प चुनता है तथा उसकी आध्यात्मिक उन्नति होती है।