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Is congress leaders hasitate to follow gandhism - Sabguru News
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जो काम गांधीजी करते थे, सिरोही के प्रभारी मंत्री और कांग्रेस नेता क्यों करेंगे?

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जो काम गांधीजी करते थे, सिरोही के प्रभारी मंत्री और कांग्रेस नेता क्यों करेंगे?
सिरोही में अम्बेडकर भवन में महात्मा गांधी पर आयोजित सेमिनार में मंच पर छोड़ी गई खाली पानी को बोतलें।
सिरोही में अम्बेडकर भवन में महात्मा गांधी पर आयोजित सेमिनार में मंच पर छोड़ी गई खाली पानी को बोतलें।
सिरोही में अम्बेडकर भवन में महात्मा गांधी पर आयोजित सेमिनार में मंच पर छोड़ी गई खाली पानी को बोतलें।

सबगुरु न्यूज-सिरोही। गांधी टोपी लगाने से यदि गांधी आत्मसात हो जाते तो उनके निधन के 70 साल बाद भी हत्यारे गोडसे के समर्थक गांधीवाद पर हावी होने की कोशिश नहीं करते।

गांधी को अमरत्व मिला है उनके महान विचारों और श्रेष्ठ कार्यों से। इनमें एक था देश के सबसे बड़े जननेता होने के बाद भी अपना काम खुद करना। ये काम शायद गांधी के कार्यो के अपनी विरासत बताने वाले कोंग्रेसी नहीं करना चाहते।

वहीं कैमरे के सामने ही सही लेकिन गोडसे को विचारधारा के समर्थक होने का आरोप झेलने वाले नेता अमेरिका में भी ये गांधीवाद पर चलते नजर आ गए। अम्बेडकर भवन में शनिवार को गांधी की 150 वी जयंती महोत्सव के मौके पर आयोजित सेमिनार में देखने को मिला।

यहां पर आयोजित कार्यक्रम में मुख्य अतिथि से रूप में उच्च शिक्षा राज्यमंत्री भंवरसिंह भाटी उपस्थित थे। गांधी जयंती कार्यक्रम के समन्वयक राजेन्द्र सांखला और जिलाध्यक्ष जीवाराम आर्य के साथ कांग्रेस के कई अन्य पदाधिकारी भी मंच पर थे।

कार्यक्रम में अपने उदबोधन में मंत्री शेखावत ने कहा कि महात्मा गांधी अपना काम खुद करते थे। जब सेमिनार खत्म हुआ तो मंच के हाल ने बता दिया कि गांधी ने जो किया होगा वो किया होगा, लेकिन उनके नाम पर राजनीति करने वाले नेता वो नहीं करेंगे। मंच पर मंत्री भाटी समेत उतरने वाले कई कांग्रेसी नेता खुद उठ गए, लेकिन अपने द्वारा वहां पीकर छोड़ी गई पानी की खाली बोतल उठाकर कूड़ेदान में फेंकने की जहमत नहीं उठाई।

ये बात अलग है नाश्ता करने वालो के लिए अपनी प्लेट कूड़ादान में फेंकने का अनाउंसमेंट मंच आए किया गया था। लेकिन, शायद मंचासीन कि कांग्रेसी नेता उसके हिस्सा नहीं थे। ये बात अलग है कि प्रभारी मंत्री भाटी अपनी निष्कपट छवि नके लिए जाने जाते हैं, लेकिन यहाँ बात गांधी उन छोटे छोटे सूत्रों को आत्मसात करने की है जिससे समाज, राज्य और देश में नैतिक परिवर्तन लाया जा सकता है।

-मंच से उतरते ही हिंसा!

प्रभारी मंत्री के मंच से उतरते ही गांधीवाद भी सिसकता दिखाई दिया। अहिंसा के पुजारी की जीवनी पर सेमिनार के बाद कांग्रेसी ही मौखिक हिंसा पर उतारू हो गए। ये बात अलग है कि ये हिंसा शारीरिक नहीं जुबानी थी। वैसे ये नजारा भाजपा और कॉंग्रेस दोनों में सामान्य है। लेकिन, यहां बात मौके की है।

जैसे ही मंत्री मंच से उतरे कांग्रेस के एक गुट के लोग दूसरे के लिए और दूसरे गुट के तीसरे के लिए मंत्री के कान भरते नजर आए। परनिंदा को भी गुनाह मानने वाले गांधी की जीवनी पर आधारित सेमिनार के बाद कांग्रेसी गांधीवाद को तिलांजलि देते दिखे।

ये बात अलग है कि यहीं सामान्य जन में जरूर गांधीवाद नजर आया और ये लोग अपनी समस्याओं के लिए लोकतांत्रिक तरीके से सरकार यानी मंत्री को ज्ञापन देते दिखे। जिनके निस्तारण के लिए उन्होंने आश्वस्त भी किया।