अजमेर। संत हजरत ख्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती के वंशज सज्जादानशीन दरगाह दीवान सैयद जैनुअल आबेदीन ने 808वें सालाना उर्स के छठी के कुल की पूर्व संध्या पर कहा कि हिंसा से किसी भी समस्या का समाधान नामुमकिन है।
दरगाह दीवान आबेदीन आज दरगाह स्थित खानकाह शरीफ में देशभर की प्रमुख दरगाहों के सज्जादानशीनों, सूफियों एवं धर्म प्रमुखों की वार्षिक सभा में बोल रहे थे। उन्होंने देश के मौजूदा हालात पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि देश में हिंसा, युद्ध एवं आक्रामकता का बोलबाला है। जब इस तरह की अमानवीय एवं क्रूर स्थितियां बनती हैं तो अहिंसा का मूल्य स्वयं बढ़ जाता है।
उन्होंने कहा कि समाज को समृद्ध करने वाले शिक्षा संस्थान वर्तमान में राजनीतिक टकराव और अशांति का केंद्र बन रहे हैं जबकि इस्लाम में अमन को सबसे बड़ी अच्छाई बताया गया है।
आबेदन ने कहा कि इस्लाम की शिक्षाओं का सार यही है कि जब समाज में अशांति होगी, वहां के लोग सामान्य गतिविधियों से दूर होकर राष्ट्र की मुख्यधारा से दूर रहते पिछड़ जाएंगे।
उन्होंने कहा कि पैगंबर मोहम्मद साहब ने दुनिया में इस्लाम के शांति और भाईचारे के पैगाम को चहुंओर फैलाया। इसलिए सूफी परंपरा का सांप्रदायिककरण करना गलत है। सूफीवाद ने बड़ी ही कोमलता और प्रेम से स्वयं को पूरे विश्व में स्थापित कर लिया है।
भारत में इसे लाने का श्रेय ख्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती को जाता है जिन्होंने अंतिम दिनों से पहले की पूरी जिंदगी अजमेर में बिताई और आज भी अजमेर शरीफ को धर्म-संप्रदाय के भेदभाव से परे रखे हुए है। पवित्र दरगाह उसी प्रतीक स्वरुप है।
वार्षिक सभा के इस पारंपरिक आयोजन में देश की प्रमुख दरगाहों के सज्जादानशीन व धर्मगुरु जिनमें शाह हसनी मियां नियाजी बरेली, मोहम्मद गलबर्गा शरीफ कर्नाटक, अहम निजामी दिल्ली, सैयद तुराब अली हलकट्टा आंध्रप्रदेश, सैयद जियायुद्दीन अमेटा गुजरात, बादशाह मियां जियायी जयपुर, सैयद बदरुद्दीन दरबारे बारिया चटगांव बांग्लादेश के अलावा भागलपुर बिहार फुलवारी शरीफ, यूपी उत्तरांचल से गंगोह शरीफ दरबार के अलावा नागौर शरीफ के पीर अब्दुल बाकी, दिल्ली दरगाह निजामुद्दीन सैयद मोहम्मद निजामी सहित अनेक मुस्लिम धर्मगुरु उपस्थित रहे। कमोबेश सभी भाईचारे, मोहब्बत, कौमी एकता के पक्षधर व एकमत नजर आए।