Warning: Constant WP_MEMORY_LIMIT already defined in /www/wwwroot/sabguru/sabguru.com/18-22/wp-config.php on line 46
Jab Samudra naraz hue toh Vetravati ne apna apradh pucha - Sabguru News
होम Religion नम्रता का प्रयोजन, जब समुद्र नाराज हुये तो वेत्रवत्ती ने अपना अपराध पुछा

नम्रता का प्रयोजन, जब समुद्र नाराज हुये तो वेत्रवत्ती ने अपना अपराध पुछा

0
नम्रता का प्रयोजन, जब समुद्र नाराज हुये तो वेत्रवत्ती ने अपना अपराध पुछा
saritpati
saritpati
saritpati

कथा | सरितपति समुद्र अपनी सभी पत्नीयो से बहुत प्रेम करते थे। किन्तु वेत्रवत्ती से हमेशा असंतुष्ट रहा करते थे। एक बार जब समुद्र नाराज हुये तो वेत्रवत्ती ने अपना अपराध पुछा। नाथ आखिर आप मुझसे इतने रूष्ट क्यों रहते हैं। इस पर समुद्र ने बताया कि तेरे किनारे बेतं के बहूत से झाड़ हैं। मगर तु आज तक एक टुकड़ा भी नहीं ला कर दिया जबकि अन्य नदियों ने सभी वस्तुएं लाकर देती हैं।

वेत्रवती ने उत्तर दिया – – – नाथ इसमें मेरा कोई भी अपराध नहीं। बात बस इतनी है कि जब मैं जोश के साथ तेज गति से आती हूं तो सारे बेतं के झाड़ नीचे झुककर पृथ्वी से मिल जाते हैं। किन्तु मेरे जाने के बाद ज्यो के त्यों सिर उठा कर खडे़ हो जाते हैं। यहां कारण है कि मुझे आज तक एक भी बेत नहीं मिल पाता।

कथा का सार है कि जब निर्बल हो तो नम्रता का सहारा लेना चाहिए। नम्रता ऐसागुण हैं जिससे बड़ी से बड़ी कठिनाई का सामना बड़ी आसानी से हो जाता है। और कोई आक्रमण करने आता है तो भी उसकी भी दृष्टि या बल कम हो जाता है। नम्रता हमेशा साथ देने वाला गुण होता है।