सबगुरु न्यूज। वर्षा ऋतु को विदा करतीं शरद ऋतु धरती पर वर्षा के पानी को निहारती है कि इस वर्षा ऋतु ने अपने गुणों के अनुसार कैसा कार्य किया है। कहीं पर धरती को वर्षा के पानी से तृप्त देखती है तो कहीं पर भारी बाढ तबाही को देखती है तो कहीं पर सूखा ही सूखा नजर आता है।
शरद ऋतु चूंकि अपने गुणों के अनुसार धरती पर अमृत रूपी जल का छिडकाव करती है और सावन मास की हरियाली को विस्तार देती है। शरद ऋतु अपने गुणों में शीतलता प्रस्तुत करती हुईं चन्द्रमा की रश्मियों को अमृत तुल्य बना देती है और सावन में बरसे जल की हरियाली ओर भादवे में अंकुरित हुए वनस्पति, खाद्यान्न उत्पादन और प्रकृति दत्त औषधियों को ओस की बूंदों से सींचती हुई उन्हें विस्तार तो देती है तथा साथ साथ उनके गुण धर्म को निखारती है।
शरद ऋतु का यह काल मानो ऐसा लगता है कि वर्षा के जल के रूप में आए जगत के ठाकुर और उसकी धरती की हर उपज या खाली स्थानों को वह अमृत रूपी ओस की बूंदों से स्नान करा रही है और उसकी उपज को परमात्मा के चरणों का अमृत पिला रही है साथ ही अपने गुण धर्मों का पालन कर शनै: शनै: ठंड को बढ़ाने की ओर बढ रही है।
सूर्य की सायन कन्या संक्रांति के साथ ही 23 अगस्त से शरद ऋतु शनैः शनैः अपने गुणों का प्रभाव बढाना शुरू कर देती है और पलट कर आई बारिश के माध्यम से हल्की सी ठंड बढाने लग जाती है। वह इस बात का इंतजार करती है कि चन्द्रमा कब सूर्य से एकदम विपरीत दिशा में आए ओर अपनी कला को पूर्ण करता हुआ पूर्णिमा बनाए ताकि मैं ऊस चन्द्रमा की हर रश्मियों को अमृत तुल्य बना कर शरद पूर्णिमा बन जाऊं।
संत जन कहते हैं कि हे मानव, धार्मिक मान्यताओं में भगवान देवशयन के बाद करवट बदलते हैं तो उसके बाद उन्हें नगर भ्रमण कराकर सरोवर तालाब के जल से अभिषेक कराते हैं और पंचामृत का भोग लगाकर वापस दूसरी करवट सुला देते हैं। देवों के इस तरह जल में स्नान कराने को ही जलझूलनी एकादशी कहा जाता है।
यह भी मान्यता है कि इस दिन श्री कृष्ण जी के जन्म के बाद माता यशोदा कुआं पूजन करती है। देवों को नगर भ्रमण इसलिए भी कराया जाता है कि देव यह देख सके कि वर्षा ऋतु ने अपनी भूमिका का निर्वाह किस प्रकार से किया है तथा प्रकृति के खाद्यान्न व वनस्पति उपजाने वाली शक्तियों ने किस तरह से काम किया है। अदृश्य शक्ति के अदृश्य देव की जो साकार प्रतिमाएं हैं उन्हें ही देव मानकर नगर भ्रमण करवाया जाता है और उन्ही के सम्मान जलझूलनी एकादशी का पर्व मनाया जाता है।
इसलिए हे मानव, अब वर्षा ऋतु विदा ले चुकी है और शरद ऋतु अपने पांव जमा रही है तथा सूर्य के दक्षिणायन होने व कन्या राशि में प्रवेश करेने से सूर्य की परिक्रमा का पथ बदलने की ओर बढ रहा है। इस कारण खान पान, रहन सहन तथा शरीर को सुरक्षित रखने के प्रयत्न कर अन्यथा शरीर में बैठी ठाकुर रुपी आत्मा बिना शरीर ओर मन के शरीर से बाहर भ्रमण की ओर ना चलीं जाए।
सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर