नई दिल्ली। मुस्लिम उलेमा संगठन ‘जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने तबलीगी ज़मात और मरकज मामले में मीडिया रिपोर्टिंग के जरिए साम्प्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने का मामला उच्चतम न्यायालय के समक्ष उठाया है।
संगठन ने जनहित याचिका दायर करके मीडिया रिपोर्टिंग पर सवाल खड़ा किया है और कहा है कि मीडिया गैर-जिम्मेदारी से काम कर रहा है और कोरोना वायरस की आड़ में मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाई जा रही है।
याचिका में केंद्र सरकार से फर्जी खबरों के प्रकाशन एवं प्रसारण पर रोक लगाने और कट्टरपंथ तथा सांप्रदायिकता फैलाने वाले मीडियाकर्मियों और संगठनों के विरुद्ध सख्त कार्रवाई करने की मांग की गई है।
वकील एजाज मकबूल के माध्यम से दायर की गई याचिका में कहा गया है कि इस मुद्दे को सांप्रदायिक रंग देने और पूरे मुस्लिम समुदाय को बदनाम करने की मीडिया की कार्रवाई देश भर में मुसलमानों के जीवन और स्वतंत्रता के लिए एक गंभीर खतरा पैदा करती है। यह संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गरिमा के साथ जीने के अधिकार का भी उल्लंघन है।
याचिकाकर्ता की शिकायत है कि मीडिया ने इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना की जिम्मेदार रिपोर्टिंग नहीं की। रिपोर्टिंग में कोरोना जेहाद, आतंकवाद, कोरोना बम जैसे जुमलों का बार-बार इस्तेमाल किया गया। मीडिया के एक तबके ने इस घटना को मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाने का हथियार बना लिया।