बेंगलुरु। ‘जननी अम्मा’ के नाम विख्यात कर्नाटक की कृषि मजदूर तथा परंपरागत तरीके से मुफ्त में बच्चे पैदा करने में दाई का काम करने वाली पद्मश्री सुलगत्ती नरसम्मा का मंगलवार को यहां बीजेएस अस्पताल में निधन हो गया। वह 98 वर्ष की थीं। नरसम्मा के परिवार में चार बेटे, तीन बेटियां और 36 पौत्र और प्रपौत्र हैं।
नरसम्मा सांस की लंबी बीमारी के चलते 29 नवंबर से यहां के बीजीएस अस्पाल में भर्ती थीं और पिछले पांच दिनों से वेंटिलेटर पर थीं। अस्पताल प्रशासन के मुताबिक उन्होंने मंगलवार को तीन बजे अंतिम सांस ली। पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येद्दियुरप्पा ने अस्पताल पहुंचकर उन्हें श्रद्धांजलि दी।
इससे पहले दिन में मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी ने अस्पताल में जाकर नरसम्मा का कुशलक्षेम पूछा और आश्वासन दिया था कि राज्य सरकार उनके इलाज का खर्च वहन करेगी। कुमारस्वामी ने नरसम्मा के निधन पर अपनी गहरी शोक एवं संवेदना व्यक्त की है।
उप मुख्यमंत्री जी परमेश्वर ने शोक व्यक्त करते हुए कहा कि वह मेरे जिले की रहने वाली थीं। वह समर्पण वाली महिला थीं और उन्हें सुलगिटि नरसम्मा (कन्नड़ में सुलगिट्टी का मतलब दाई होता है) के रूप में जाना जाता था।
नरसम्मा ने बिना चिकित्सकीय सुविधा के आंध्र प्रदेश की सीमा पर स्थित पवागडा तालुक में 15000 से ज्यादा प्रसव कराए। उन्हें इस उल्लेखनीय कार्य के लिए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से नवाजा। कहा जाता है कि गर्भवती महिलाओं का पेट छूकर वह गर्भस्थ शिशु का स्वास्थ्य जान लेती थीं।
तुमाकुरु जिले के पवागडा तालुक के सुदूर कृष्णापुरा गांव में उनका पैतृक निवास है। उन्होंने बगैर किसी मेडिकल सुविधा के कर्नाटक के पिछड़े क्षेत्रों में प्रसव सहायिका के तौर पर 65 वर्षाें तक अपनी सेवाएं दी और 15000 से ज्यादा निशुल्क प्रसव कराए। समाज में उनके योगदान के लिए टुमकुर विश्वविद्यालय ने उन्हें डॉक्टरेट की मानद उपाधि दी थी। उन्हें उनकी उल्लेखनीय कार्याें के लिए कन्नड राज्योत्सव पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।