सबगुरु न्यूज। वर्तमान विश्व के हालात की ओर हम नजर करते हैं तो हमें सर्वत्र किसी भी किसी रूप में अहंकारी और तानाशाही शक्तियों का बोलबाला तथा कमजोर दुर्बल व मध्यम शक्तियों पर प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से दंड देकर या प्रलोभन में डाल कर अपनी नीति और हुकुमत को कठोरता से लागू करती दिखाई पडती है।
इस कारण आज विश्व में सर्वत्र मानवीय अत्याचारों में वृद्धि होतीं जा रही है। स्त्री, पुरुष, बालक, वृद्ध आदि सभी अपने संरक्षण के लिए चिंतित हैं लेकिन शासक शक्तियों के नगाडों में यह सब आवाजें छिप सी गई।
मानव हितों के लम्बे चौडे दस्तावेज केवल अपनी शोभा बढा रहे हैं। शक्तियां अपने ही हितों को साधने में लगी हुई हैं। विश्व स्तर पर बढती अराजकता, हिंसा, आतंकवाद, बेरोजगारी, भूखमरी और रोटी, कपड़ा, मकान के लिए तरसते लोग इनके हालातों को किनारे कर अपना वजूद जमाने में लगी हैं।
कुदरत ने भी प्रलय मचा रखी है। प्रलयंकारी वर्षा, बाढ़, तूफान की तरह बहती नदियां, भूकंप, भूस्खलन, ज्वालामुखी और भयानक अग्निकांड आदि सृष्टि का अंत करने पर ऊतारू हो रही है। ये सब हालात द्वापर युग के कृष्ण अवतार की याद दिला रहे हैं। ऐसे लगता है कि परमात्मा के नए अवतार का ऐलान कुदरत कर चुकी है।
जिसमें कष्टों के काटने की क्षमता हो और दास्य भाव देने के गुण हों उसे ही कृष्ण कहा जाता है। इन्हीं भावना के तहत महर्षि गर्ग ने वासुदेव और देवकी के पुत्र का नाम कृष्ण रखा। महर्षि गर्ग यदुवंश के कुल गुरू थे और श्रीकृष्ण का नामकरण संस्कार उन्होंने ही किया।
महर्षि गर्ग खगोल शास्त्र और ज्योतिष शास्त्र के मूर्धन्य विद्वान थे। श्रीकृष्ण के जन्म समय में आकशीय ग्रह नक्षत्रों के आधार पर भविष्यवाणी की थी कि यह बालक चमत्कारी होगा और पृथ्वी पर आए हर संकट को अपनी सुझबूझ से दूर कर देगा। हर विनाशकारी व्यवस्था को समाप्त कर देगा और सर्वत्र मची त्राहि त्राहि का अंत कर देगा तथा ऐसी व्यवस्था को शुरू कर देगा जहां मानव सुखी और समृद्ध रह कर मानवीय मूल्य स्थापित हो सके।
श्रीकृष्ण का जन्म उस परिवेश में हुआ जब राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक व्यवस्थाएं अपना नंगा नाच कर रही थीं। अहंकारी राजा अपने हितों को साधने के लिए समाज़ की हर व्यवस्था का जर्जर अंत कर रहा था। सामाजिक विषमता की खाईं बढ़ती जा रही थी। जाति, वर्ग, धर्म के आधार पर मानव को अयोग्य घोषित कर रखा था तथा उनमें से कुछ विद्वान बलिष्ठ लोगों को अपना सेवाधारी बना कर रखा ताकि ये अपने अयोग्य लोगों के साथ राजा के शासन का अंत ना कर दे।
नीति, धर्म, सत्य, गुरू और संरक्षक ये सब हाथ बांधे हुए पाप और अहंकार के मेहमान बने हुए थे। सुरक्षित हुए अयोग्य बलवान और विद्वान अपनी निष्ठा बनाए रखने के लिए अपनों का ही अपमान देख रहे थे। जन्मते ही बालक मौत के घाट उतार दिए गए। अबला नारी का राजा की सभा में चीर हरण किया जिसे धर्म, सत्य, नीति, गुरु, संरक्षक, अपने व पराये तथा शूरवीर बलवान एव अयोग्य जन के मसीहा और राजा सभी बैठे हुए थे पर सभी राजा के इस दुष्कर्म में सम्मिलित थे।
इस अहंकारी शक्तियों के शासन व समाज की जर्जर स्थिति के बीच श्रीकृष्ण का जन्म हुआ और गर्ग ऋषि की भविष्यवाणियां सत्य हुई। श्रीकृष्ण ने अत्याचारी कंस को मौत के घाट उतार दिया। नारी के सम्मान की रक्षा में श्रीकृष्ण ने अंधे हुए राजा, गुरू, धर्म, नीति, बल, निष्ठा और संरक्षक बने इन सब मिथ्यावादियों का अंत कर मानव मूल्यों को पुनः स्थापित करने का दुर्लभ कार्य किया।
संत जन कहते हैं कि हे मानव श्रीकृष्ण का जन्म जेल में हुआ था और कहा जाता है कि उनके जन्मते ही जेल के सारे ताले खुल गए तथा वासुदेव नवजात बालक कृष्ण को गोकुल गांव नंद में यशोदा के पास छोड़ आए।
इसलिए हे मानव ये ताले केवल जेल के ही नहीं खुले वरन अहंकारी राजा कंस ने हर व्यवस्था को कैद कर दिया था ओर जन मानस अत्याचार से दुखी थे। ऐसे ही दुर्योधन की अहंकारी व अंधी नीति ने समाज की दुर्दशा कर दी थी। धर्म, सत्य, नीति, गुरु, संरक्षक को अपना मोहताज बना दिया और खुद ही मनमाना शासन चलाने लगा। इन दोनों को मारकर कृष्ण ने सभी व्यवस्थाओं के ताले खोल दिए और जनमानस को अत्याचार से मुक्त किया।
सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर