सबगुरु न्यूज। पौराणिक कथाओं में बताया गया है कि श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी की रात बारह बजे हुआ था। उस दिंन आकाश में चन्द्र रोहिणी नक्षत्र में भ्रमण कर रहा था। ज्योतिष शास्त्र की मान्यताओं में चन्द्रमा को इस नक्षत्र में बलवान माना जाता है।
श्रीकृष्ण को विष्णु भगवान का अवतार माना गया था। इस अवतार का मुख्य उद्देश्य धरती पर पाप के बढते साम्राज्य का अंत कर एक नए युग का शुभारंभ करना था, जहां धर्म की हानि ना हो अर्थात मानव धर्म के सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों का पतन ना हो और एक मानव के साथ मानवीय व्यवहार किया जा सके।
कृष्ण के जन्म से पूर्व कुछ ऐसी सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक झांकी के दर्शन मिलते हैं जहा समाज नैतिक मूल्यों से हीन बनता जा रहा था। समाज में सामाजिक स्तरीकरण के कारण जो भेद उत्पन्न हो गए थे। बलवान धनबल वालों ने नैतिकता छोड़ कमजोर और दुर्बल को पतन के कगार पर छोड़ दिया और मनमाना व्यवहार करने लगे।
जाति ओर वर्ग व पेशे में समाज बंट गया था और उस कारण ऊंच नीच की भावना उत्पन्न हो गई थी। इस का प्रत्यक्ष उदाहरण हमें कर्ण के जीवन से मिलता है। जन्म लेते ही उसे बाहर छोड़ दिया गया। उसका पालन जिसके घर में हुआ उसे सूद पुत्र के नाम से जाना गया। उसी सूद पुत्र कहे जाने वाले कर्ण को अपनी धनुर्विद्या भी झूठ के सहारे लेनी पडी ओर बाद में इसका श्राप भी भुगतना पडा। द्रोपदी के स्वयंवर में भी सूद पुत्र होने के कारण द्रोपदी ने कर्ण को अयोग्य घोषित कर दिया था। दुर्योधन ने भी केवल अपने स्वार्थ के लिए ही उसकी वीरता के कारण दोस्ती की और उसे राज्य दिया।
श्रीकृष्ण के जन्म से पूर्व नैतिक मूल्यों का पतन हो चुका था और धर्म का आदर्शवाद खत्म हो चुका था। समाज नैतिक पतन की ओर बढ चुका था। बाहुबल और धन-बल हर हथकंडे करके येन केन प्रकारेण सभी पर राज करने लगे। न्यायिक धर्म असहाय होकर आंसू बहाता रहा। गुरू, वीर, बुद्धिमान, अनैतिक बल के सामने एक असहाय हो कर सर झुका रहा था। ऐसी विकट सामाजिक स्थितियों में श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। उम्र बढने के साथ ही कृष्ण समाज और सियासत के खेल को समझ गए थे।
छोटी सी उम्र में अपने मामा कहे जाने वाले मथुरा के राजा कंस का वध करके उसके कारागार से अपने माता-पिता को मुक्त कराया और सुख शांति के लिए उन्होंने अपने कूनबे सहित मथुरा नगरी को छोड़ द्वारका नगरी में अपने कूनबे को बसाया।
श्रीकृष्ण ने महाभारत का युद्ध कराकर भविष्य के कलयुग को आगाह कर दिया था कि हे मानव कलयुग में विजय के लिए काल के बल के अनुसार ही बहना जरूरी होगा भले ही सिद्धांतों से समझौता करना पडे।
संतजन कहते हैं कि हे मानव यह कोरोना अपनी उडान में मस्त हो रहा है और मानव जाति को संदेश दे रहा है कि हे मानव अब संभल कर रह अन्यथा मेरी चपेट में आकर तू रोग ग्रस्त हो जाएगा। तेरे अपने बनाए हुए रीतिरिवाज, रहन सहन, खान पान, व्यवहार और मान्यताएं यह सब तेरे सिद्धांत है। अभी काल का बल इन सब पर भारी है। इस समय काल के बल अनुसार ही सब कामो को को कर।
इसके बीच कृष्ण जन्माष्टमी यही संदेश दे रही है कि हे मानव अब काल के बल के अनुसार ही काम कर क्योंकि श्रीकृष्ण का जन्म व्यवस्थाओं में परिवर्तन के लिए ही हुआ था। कोरोना के संक्रमण के कारण अब समाज में महापरिवर्तन का नया दौर चल रहा है जो भविष्य की आधार शिला रख रहा है अत हर क्षेत्र में परिवर्तन कर उसी अनुरूप रहना सीख।
हे मानव तू जायज़ के लिए हर कर्म कर और उन सब को अपना शत्रु मान जो तेरे सामने या पीठ पीछे तेरे सत्य के खिलाफ है और झूठ के गले लगे हुए हैं। मीठा बोलकर अपने दिलों में बैर पाले बैठे हैं और तेरी हौसला अफजाई कर अंदर ही अंदर तेरे पतन के बीज बोते हैं या तुझसे लाभ उठा कर भी तेरे आंतरिक शत्रु बने बैठे हैं।
आस्तीन के उन सापों को आस्तीन से बाहर निकाल क्योंकि जो तेरा होकर भी तेरा नहीं है केवल तुझसे अपना हित ही साधने में लगे हुए हैं और तुझे हर तरह से खत्म करने के लिए लगे हुए है तब ही कृष्ण जन्माष्टमी के महा परिवर्तन का मूल्य समझ पाएगा।
ज्योतिषाचार्य, भंवरलाल
जोगणियाधाम पुष्कर