अजमेर। महारानी लक्ष्मीबाई की प्रिय सहेली और दुर्गा दल की सेनानायक झलकारीबाई की 189वीं जयंती पर पंचशील नगर स्थित वीरांगना झलकारी बाई स्मारक पर पुष्पांजलि अर्पित कर लोगों ने उनकी अद्वितीय वीरता को नमन किया।
महिला शौर्य की अमिट गाथा लिखने वाली झलकारी बाई की प्रतिमा पर सुबह से ही पुष्पांजलि देने और माल्यार्पण करने वालों का तांता लगा रहा। विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ साथ कोली समाज के लोग भी अपने समाज में पैदा हुई ऐसी वीरांगना को नमन करने उनकी प्रतिमा पर पहुंचे।
बतादेंकि वीरांगना झलकारी बाई ने अंग्रेजों के खिलाफ महारानी लक्ष्मीबाई के साथ कंधे से कंधा मिलाकर मोर्चा लिया और नारी शौर्य की एक अमिट गाथा लिखी। झलकारी बाई झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की सेना में महिला शाखा दुर्गा दल की वे रानी की हमशक्ल होने के कारण शत्रुओं को धोखा देती हुई युद्ध करती थीं।
झलकारी बाई का जन्म बुन्देलखंड के झांसी जिले के एक छोटे से गांव भोजला में 22 नवम्बर 1830 को कोली परिवार में हुआ था। इनके पिता मूलचंद घर में ही कपड़ा बुनाई का काम करते थे। पिछडे परिवार में जन्म लेने वाली झलकारी बाई को शिक्षा से वंचित रहना पड़ा।
इनकी बहादुरी उस समय सामने आई जब एक दिन झलकारी बाई घर में इस्तेमाल करने के लिए जंगल लकड़ी काटने गई थी। वहां एक बाघ ने झलकारी बाई पर हमला कर दिया पर वह डरी नहीं और बाघ से भिड़ गई। उन्होंने अपनी कुल्हाड़ी से बाघ को मार गिराया जिसकी चर्चा झांसी के राज दरबार में पहुंची।
झलकारी बाई का विवाह कम उम्र के युवा एक सैनिक पूरन कोली से हुआ था। विवाह के बाद जब झलकारी बाई महारानी से आशीर्वाद के लिए आई तो उसका शस्त्राभ्यास रानी ने उसे तब रानी ने दुर्गा दल नामक महिला सेना का प्रमुख बना दिया। महारानी लक्ष्मीबाई की सबसे विश्वसनीय साथी वीरांगना झलकारी बाई हमेशा परछाई बनकर उनके साथ रहीं। उनके जीवन के अंतिम युद्ध ग्वालियर के मैदान में रानी की रक्षा में अप्रेल 1858 को वीरांगना झलकारी बाई ने रणभूमि में वीरगति को प्राप्त की।