जयपुर। पांच दिवसीय जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल-2023 (JLF) के 16वें संस्करण का आज सुबह यहां आगाज़ हुआ और इसके पहले दिन साहित्य, कला और सुरो का बेमिसाल संगम नजर आया।
कर्नाटिक संगीत की पुरस्कृत गायिका सुषमा सोमा के सुमधुर स्वरों से इसका शुभारंभ हुआ। इस दौरान सुषमा सोमा ने कन्नड़, तमिल और बांग्ला कवियों की कुछ यादगार कविताओं को अपने सुरों में पिरोकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। इस दौरान नाथूलाल ने अपने नगाड़े की थाप से श्रोताओं को अपनी ओर आकर्षित किया।
इस अवसर पर वर्ष 2021 में साहित्य के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित लेखक अब्दुलरज़ाक गुरनाह ने उद्घाटन सत्र को संबोधित किया और कहा कि अपनी सादगी से श्रोताओं के दिलों को छू लिया। उन्होंने लेखन को निरंतर चलने वाली प्रकिया का नाम बताते हुए कहा कि यह दैनिक दिनचर्या का हिस्सा होना चाहिए।
लिखते वक्त आप ये मत सोचो कि आपको किसी की प्रेरणा बनना है, या आपको कोई अवार्ड मिलेगा, या आपको कभी नोटिस भी किया जाएगा। आपको बस भटकाव से दूर रहते हुए लिखना है और यही सच है, इस प्रक्रिया में आप उन विचारों और विश्वासों को सहज पाएंगे जो आपके लिये महत्वपूर्ण है और मायने रखते हैं।
फेस्टिवल के प्रोडूसर संजॉय के रॉय ने कहा कि आज से 16 साल पहले, जब डिग्गी पैलेस के दरबार हॉल में हमने इस सपने की शुरुआत की थी, तब सोचा भी नहीं था कि एक दिन यह फेस्टिवल दुनिया का सबसे बड़ा साहित्यिक शो बन जाएगा। वास्तव में हम चाहते थे कि एक ऐसे माहौल को गढ़ा जाए, जहाँ युवा और छात्र खुद साहित्यकारों से संवाद कर सकें।
फेस्टिवल की को-डायरेक्टर और साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित लेखिका, नमिता गोखले ने इस अवसर पर कहा कि माघ का महीना है, रंगों और पतंगों का मौसम है… और आपका चहेता, जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल, अपनी पूरी सजधज के साथ फिर से हाज़िर है। साहित्य का ये महाकुम्भ, कथा सरित्सागर निरंतर आपके प्रेम के साथ बढ़ता जा रहा है।
फेस्टिवल के को-डायरेक्टर और लेखक व इतिहासकार, विलियम डेलरिम्पल ने कहा कि इस ओपनिंग सेरेमनी को देखकर यकीन होता है कि दूसरे फेस्टिवल चाहे जो मर्ज़ी कर लें, पर यह नहीं कर सकते। हमारे पास दुनिया के सरे प्रमुख पुरस्कारों से सम्मानित लेखक हैं, फिर वो चाहे नोबेल प्राइज हो, बुकर हो, इंटरनेशनल बुकर हो, साहित्य अकादमी हो, पुलित्ज़र, डीएससी… हमारे इस साहित्य के कुम्भ में आपको सब मिलेंगे।
फेस्टिवल ने सही मायनों में साहित्य का जश्न मनाते हुए, अनुवाद और अनसुनी आवाजों को भी विश्व पटल पर मुखर किया है। इससे पहले उत्सव की शुरुआत होते ही लोगों का मेला लग गया और इस दौरान लेखक, साहित्यकार एवं अन्य कई जाने माने लोग, विद्यार्थी सहित विभिन्न वर्ग के लोग इस उत्सव का हिस्सा बने।