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लता हमारी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी का हिस्सा बन गई : जावेद अख्तर - Sabguru News
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लता हमारी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी का हिस्सा बन गई : जावेद अख्तर

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लता हमारी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी का हिस्सा बन गई : जावेद अख्तर

जयपुर। प्रसिद्ध गीतकार जावेद अख्तर ने महान गायिका लता मंगेशकर की प्रशंसा करते हुए कहा है कि वह हमारी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी का हिस्सा बन गई हैं।

जावेद ने जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल (जेएलएफ) के तीसरे दिन लता सुर गाथा सत्र में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि लताजी का जीवन से जुड़ी हर अह्म रस्म पर उनका गाना है और बिना जाने ही सुबह से शाम तक किसी न किसी माध्यम से उनकी ही आवाज़ सुनते हैं। उन्होंने कहा कि पूजा, पर्व, शादी-ब्याह सहित अन्य कई अवसरों पर लताजी के ही गाने सुनते हैं।

उन्होंने कहा कि एक बार मैंने उनसे कहा था कि मुझे अफ़सोस उन पीढ़ियों का है, जो आपकी आवाज़ सुने बिना ही गुज़र गईं। उन्होंने कहा कि मैंने लताजी के लिए मेरी आवाज ही पहचान है गाना लिखा, यह उनके ऑटोग्राम देने के स्टाइल के लिए लिखा गया था ताकि वह जब भी कहीं ऑटोग्राम दे तो लिखे कि मेरी आवाज ही पहचान है, आज यह गाना उनका ऑटोग्राम ही बन गया है। फिल्म इंडस्ट्री में गाने वाले तो बहुत आये लेकिन लताजी जैसा न कोई था न कोई होगा। सत्र में लता दीदी के लिए सदाबहार लिखने वाले गुलज़ार साहब को सुनने के लिए काफी भीड़ जमा थी।

इससे पहले जेएलएफ के तीसरे दिन की शुरुआत अनिरुद्ध वर्मा कलेक्टिव ने राग बसंती से की। आज का दिन जावेद अख्तर के अलावा अनामिका, नंदभारद्वाज, शेहान करुनातिलक, दीप्ति कपूर, यतीन्द्र मिश्र, खालिद जावेद, बारां फारुकी जैसे लेखकों के नाम रहा। ‘एक हिंदी अनेक हिंदी सत्र’ में प्रतिष्ठित लेखकों अनामिका, नंदभारद्वाज, पुष्पेश पंत, गीतांजलि और यतीन्द्र मिश्र ने हिंदी के माध्यम से भाषा और साहित्य के समकालीन और शास्त्रीय स्वरुप की बात की।

अनामिका ने अपने लेखन में भाषा वैविध्य के विषय में बताया, जब लिखने चलो तो चेतन बार-बार स्मृतियों की ओर लौटता है। उन्हीं स्मृतियों से भिन्न आवाजें और बोलियाँ आपके लेखन को विविधता प्रदान करती हैं।” फेस्टिवल में एक दिन पहले नोबेल पुरस्कार विजेता, अब्दुल रज़ाकगुरनाह ने भी लेखन के संदर्भ में अच्छी स्मृति को बड़ी उपलब्धि माना था।

राजस्थानी भाषा के वरिष्ठ साहित्यकार नंद भारद्वाज ने भाषा के संदर्भ में कहा कि हिंदी जिस क्षेत्र में जाती है वहां ढल जाती है और उस क्षेत्र के बहुत सारे भावों और शब्दों को अपने में समाहित कर अपना विस्तार बढ़ाती है। पुष्पेश पंत ने गीतांजलि श्री की भाषा के सन्दर्भ में बताया कि गीतांजलि जो भाषा के साथ करती हैं, वो भाषा के आयाम को विस्तार देना है।

गीतांजलि ने कहा कि भाषा में कोई सरहद नहीं होनी चाहिए… भाषा और संस्कृति का लगातार आदान-प्रदान होना चाहिए। भाषा में लोच, रवानी और वैविध्य इसी आदान-प्रदान से आते हैं। अच्छी बात यह है कि लेखक और पाठक व्याकरण के पीछे नहीं, बल्कि अभिव्यक्ति के पीछे भागते हैं।

सेवेन मून्स ऑफ़ माली अल्मेडा सत्र में बुकर प्राइज विजेता श्रीलंकाई लेखक शेहान करुनातिलक से लेखिका नंदिनी नायर ने चर्चा की। शेहान का उपन्यास, सेवेन मून्स ऑफ़ माली अल्मेडा दानव, प्रेत और पुनर्जन्म जैसे विषयों को प्रेरणा बनाकर लिखा गया है। इस पर उन्होंने कहा कि …और फिर मैंने सोचा… अगर मैं भूत के नजरिये से लिखूं तो, श्रीलंका के मृत लोग मुझसे बात करने लगें तो, और ये एक भूतिया कहानी के लिए बढ़िया प्लाट लगा… बुकर प्राइज मिलना किस्मत की बात थी। यह ऐसे ही था जैसे लूडो के डाइस में तुक्के से छह नम्बर आ जाता है.. लॉटरी लगने पर आप खुश होते हो और नहीं लगने पर कोशिश करते हो कि ज्यादा दुखी न नज़र आओ।

ऐज ऑफ़ वाईस सत्र में उपन्यासकार दीप्ति कपूर से जमैकाई लेखक मार्लोन जेम्स ने संवाद किया। ऐज ऑफ़ वाईस पत्रकार और लेखिका दीप्ति का यह दूसरा उपन्यास है। अपराध कथा पर आधारित यह उपन्यास ग्रे शेड की बात करते हुए, अपराध जगत की कई परतें खोलता है। मार्लोन ने उनसे पूछा कि आखिर उन्होंने ‘क्राइम फिक्शन’ को ही अपने लेखन का आधार क्यों बनाया, इस पर दीप्ति ने कहा “थ्रिलर ने उन्हें हमेशा से रोमांचित किया, तेजी से बदलते घटनाक्रम को दर्ज करना उन्हें एक संतुष्टि का एहसास करवाता है।

पैराडाइस ऑफ़ फ़ूड के नाम से आयोजित सत्र में जावेद खालिद, बारां फारुखी और प्रज्ञा तिवारी ने बात की। जावेद खालिद की उर्दू किताब नेमतखाना का अनुवाद बारां ने पैराडाइस ऑफ़ फ़ूड नाम से किया है। जावेद की ये किताब गुड्डू मियां नामक किरदार के माध्यम से भारतीय समाज की खानपान और चबाने से जुडी अजीब आदतों पर व्यंग्य कसती है।

उर्दू के महान विद्वान् शम्सुर्रहमान फारुखी ने जावेद खालिद को मास्टर्स ऑफ़ एस्थेटिक डिस्गस्ट कहा था। इस पर जावेद खालिद ने कहा कि एक कलाकार समाज की गंदी चीजों को भी ख़ूबसूरती से प्रस्तुत कर सकता है। किताब के अनुवाद पर बारां ने कहा कि जावेद उर्दू में मेरे पसंदीदा लेखक हैं। मैं इनका उपन्यास पढ़ती रही हूं.. यह उपन्यास बहुत ही दिलचस्प है।