नई दिल्ली। सुप्रीमकोर्ट ने केंद्रीय जांच ब्यूरो के न्यायाधीश बीएच लोया मौत मामले की स्वतंत्र जांच कराने संबंधी सभी याचिकाएं गुरुवार को खारिज कर दी।
मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायाधीश एएम खानविलकर और न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने याचिकाएं यह कहते हुए खारिज कर दी कि लोया मौत मामले की स्वतंत्र जांच की मांग करने वाली इन याचिकाओं में कोई ‘मेरिट’ नहीं है।
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि बीएच लोया की मौत के मामले में संदेह का कोई आधार नजर नहीं आता। इसलिए मामले की स्वतंत्र जांच के आदेश का कोई आधार नहीं दिखता। न्यायालय ने गत 16 मार्च को इस मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था।
शीर्ष अदालत ने कहा कि सीबीआई जज बीएच लोया की मौत से जुड़े घटनाक्रमों के बारे में चार न्यायिक अधिकारियों श्रीकांत कुलकर्णी, श्रीराम मोदक, आर राठी और विजय कुमार बर्डे तथा बॉम्बे उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों भूषण गवई एवं न्यायमूर्ति सुनील शुक्रे के बयान पर अविश्वास करने का कोई कारण नजर नहीं आता।
न्यायालय ने याचिकाकर्ताओं में से एक बम्बई लॉयर्स एसोसिएशन की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे की कुछ दलीलों पर नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि दवे ने मामले से जुड़े न्यायाधीशों के खिलाफ आक्षेप लगाने से भी परहेज नहीं किया।
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि मामले की स्वतंत्र जांच की मांग की आड़ में न्यायपालिका की छवि को भी तार-तार करने का प्रयास किया। न्यायालय ने कहा कि कारोबारी और राजनीतिक लड़ाई जनहित याचिकाओं के जरिये नहीं लड़ी जा सकती और संबंधित याचिकाओं में ‘मेरिट’ का अभाव नजर आता है। न्यायालय ने इस मामले में 16 मार्च को फैसला सुरक्षित रखने से पहले 10 दिन सुनवाई की थी।
गौरतलब है कि सबसे पहले यह मामला न्यायमूर्ति अरुण कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति मोहन एम. शांतनागौदर की पीठ को सौंपा गया था, लेकिन बाद में इसे मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया था।
न्यायमूर्ति मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने बाद में बॉम्बे उच्च न्यायालय में लंबित याचिकाओं को भी अपने पास स्थानांतरित कर लिया था, साथ ही न्यायालय ने सभी उच्च न्यायालयों को इस मामले से जुड़ी किसी भी याचिका की सुनवाई न करने का आदेश दिया था।
श्री दवे ने जहां बॉम्बे लॉयर्स एसोसिएशन की ओर से और वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह और वी गिरि ने क्रमश: पूर्व नौसेना प्रमुख एल रामदास (वादकालीन याचिकाकर्ता) और सामाजिक कार्यकर्ता तहसीन पूनावाला की ओर से जिरह की थी।
वरिष्ठ अधिवक्ता पल्लवी सिसोदिया ने महाराष्ट्र के पत्रकार बंधुराज साम्भाजी लोन की ओर से, वरिष्ठ अधिवक्ता पी वी सुरेन्द्रनाथ ने वादकालीन याचिकाकर्ता ऑल इंडिया लॉयर्स यूनियन की ओर से शीर्ष अदालत में पेश हुए थे। जाने-माने वकील प्रशांत भूषण ने गैर-सरकारी संगठन सेंटर फॉर पब्लिक इंटेरेस्ट लिटिगेशन की ओर से मामले की पैरवी की थी।
महाराष्ट्र सरकार की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के अलावा वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी एवं हरीश साल्वे पेश हुए थे। सोहराबुद्दीन शेख कथित फर्जी मुठभेड़ कांड की सुनवाई कर रहे सीबीआई के विशेष न्यायाधीश बीएच लोया की मौत नागपुर में एक दिसम्बर 2014 को दिल का दौरा पड़ने से हो गई थी। उनकी मौत की किसी स्वतंत्र जांच एजेंसी से जांच कराए जाने की मांग याचिकाकर्ताओं ने की थी।