अहमदाबाद। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि संविधान के मूल्यों को जीवंत रखने के लिए न्याय तंत्र ने अपनी जिम्मेदारियों को भलीभांति निभाया है।
गुजरात उच्च न्यायालय के यहां आयोजित हीरक जयंती (डायमंड जुबली) समारोह को नयी दिल्ली वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए संबोधित करते हुए मोदी ने यह बात कही। उन्होंने उच्च न्यायालय की स्थापना के 60 वर्ष पूरे होने पर एक स्मारक डाक टिकट जारी किया।
केंद्रीय कानून और न्याय मंत्री रविशंकर प्रसाद, सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीश तथा गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी सहित विधि क्षेत्र की कई जानी-मानी हस्तियां इस मौके पर मौजूद थीं।
प्रधानमंत्री ने कहा न्यायपालिका ने सकारात्मक और रचनात्मक तरीके से भारतीय संविधान की व्याख्या कर उसे हमेशा मजबूती दी है। न्यायपालिका ने नागरिकों के अधिकार और स्वतंत्रता के क्षेत्र में अपनी भूमिका निभाकर कानून के शासन को स्थापित करने और उसे कायम रखने का
कार्य भी किया है।
भारतीय समाज में कानून का शासन हमारी सभ्यता और सामाजिक ताने-बाने का आधार रहा है। सुशासन या सुराज के मूल में कानून का शासन है। इसी मंत्र ने हमारे स्वतंत्रता संग्राम में देशवासियों को नैतिक ताकत दी थी। इसी विचार को हमारे संविधान के निर्माताओं ने भी संविधान बनाते समय सर्वाधिक महत्व दिया था। हमारे संविधान की प्रस्तावना में कानून का शासन स्थापित करने का संकल्प ही व्यक्त किया गया है। इन महत्वपूर्ण सिद्धांतों को न्यायपालिका ने हमेशा ऊर्जा और दिशा दी है।
प्रधानमंत्री ने न्याय के मूलभूत उद्देश्यों को पूरा करने में विधिज्ञ संघ यानी बार की भूमिका की प्रशंसा भी की। उन्होंने जोर देकर कहा कि अंतरराष्ट्रीय स्तर की न्याय व्यवस्था स्थापित करने की जिम्मेदारी कार्यपालिका और न्यायपालिका दोनों की है, जो समाज की कतार में खड़े आखिरी व्यक्ति को भी समय पर न्याय मिलने का भरोसा देगी।
मोदी ने कोरोना महामारी के मुश्किल दौर के दौरान न्यायपालिका की प्रतिबद्धता की सराहना की। उन्होंने कहा कि गुजरात उच्च न्यायालय ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए सुनवाई को जल्द से जल्द शुरू किया, एसएमएस कॉल-आउट, केस की ई-फाइलिंग और ‘ई-मेल माई केस स्टेटस’ जैसी पहलों को न सिर्फ अपनाया बल्कि परिवर्तन और टेक्नोलॉजी के स्वीकार की क्षमता को भी प्रदर्शित किया है।
कोर्ट ने यू-ट्यूब पर उसके डिस्प्ले बोर्ड का प्रसारण भी शुरू किया था तथा वेबसाइट पर अपने फैसलों और आदेशों को भी अपलोड किया था। गुजरात उच्च न्यायालय देश की पहली अदालत बनी थी, जिसने कोर्ट की कार्यवाही का स्ट्रीमिंग किया था।
प्रधानमंत्री ने इस बात पर संतोष जताया कि कानून मंत्रालय के ई-कोर्ट्स इंटीग्रेटेड मिशन मोड प्रोजेक्ट के जरिए डिजिटल आधारभूत सुविधाएं स्थापित हुई हैं। मोदी ने बताया कि अभी देश में 18 हजार से अधिक कोर्ट कंप्यूटराइज्ड हो चुके हैं और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा टेली-कॉन्फ्रेंसिंग तथा वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग को कानूनी मंजूरी मिलने के बाद कोर्ट में ई-कार्यवाही को नई गति मिली है।
उन्होंने कहा कि हमारा उच्चतम न्यायालय आज दुनिया में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए सबसे अधिक सुनवाई करने वाला सर्वोच्च न्यायालय बन गया है, जो हमारे लिए गर्व की बात है। प्रधानमंत्री ने कहा कि मामलों की ई-फाइलिंग, मामलों के लिए यूनिक आइडेंटिफिकेशन कोड और क्यूआर कोड के जरिए आसानी से न्याय प्राप्त करने की व्यवस्था को एक नया आयाम मिला था, जिसके चलते राष्ट्रीय न्यायिक डाटा ग्रिड की स्थापना हुई।
इस ग्रिड से वकीलों और वादियों को उनके मामलों के बारे में जानकारी प्राप्त करने में मदद मिलेगी। न्यायिक प्रक्रिया की यह सरलता जीवन की सरलता में बढ़ोतरी करने के साथ ही व्यापार-वाणिज्य की सरलता में भी वृद्धि हुई है, क्योंकि विदेशी निवेशकों को उनके न्यायिक अधिकारों के सुरक्षा के विषय में ज्यादा आश्वासन मिला है। विश्व बैंक ने भी राष्ट्रीय न्यायिक डाटा ग्रिड की प्रशंसा की है।
उन्होंने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय और एनआईसी की ई-कमेटी ने क्लाउड आधारित सुरक्षित ढांचागत व्यवस्था खड़ी की है। उन्होंने जानकारी दी कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के उपयोग की संभावनाओं को तलाशा जा रहा है जिससे व्यवस्था भविष्य के लिए तैयार होगी। उससे न्यायपालिका की दक्षता और काम करने की तेजी दोनों में बढ़ोतरी होगी।
मोदी ने कहा कि आत्मनिर्भर अभियान न्यायपालिका को आधुनिक स्वरूप देने के प्रयासों में बड़ी भूमिका निभाएगा। इस अभियान के अंतर्गत भारत अपने अनोखे वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग प्लेटफार्म को प्रोत्साहन दे रहा है। उच्च न्यायालयों और जिला अदालतों में ई-सेवा केंद्र डिजिटल असमानता को दूर करने में मददगार बन रहे हैं।
प्रधानमंत्री ने ई-लोक अदालतों के बारे में बात करते हुए जूनागढ़ में ई-लोक अदालत का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि आज ई-लोक अदालतें समय पर और सुविधाजनक ढंग से न्याय प्राप्त करने का स्रोत बन गई हैं, क्योंकि 24 राज्यों में लाखों मामले चल रहे हैं। वर्तमान न्यायिक व्यवस्था के लिए इस तेजी, विश्वास और सुविधा की तत्काल आवश्यकता है।
इस अवसर पर केंद्रीय कानून और दूरसंचार मंत्री प्रसाद ने कहा कि मुंबई से अलग होकर स्वतंत्र राज्य के रूप में गुजरात के अस्तित्व में आने से पहले भी महात्मा गांधी, सरदार वल्लभभाई पटेल और कन्हैयालाल मुंशी जैसे विद्वान व्यक्तियों ने वकालत और स्वतंत्रता संग्राम में योगदान के जरिए राज्य का गौरव बढ़ाया है।
गुजरात उच्च न्यायालय ने सदभाव का माहौल तथा न्यायपालिका की गरिमा को ध्यान में रखते हुए कई महत्वपूर्ण निर्णय दिए हैं। आपातकाल के दौर में देश के नागरिकों को उसके खिलाफ आवाज उठाने की हिम्मत देने के लिए गुजरात उच्च न्यायालय का स्मरण करते हुए प्रसाद ने गुजरात उच्च न्यायालय के इतिहास को और भी उज्ज्वल बनाने की शुभकामनाएं दी।
मुख्यमंत्री रूपाणी ने कहा कि विकास का आधार कानून व्यवस्था और न्यायपालिका पर है। गुजरात में न्यायपालिका द्वारा स्थापित सुदृढ़ व्यवस्थाओं ने राज्य के शांतिपूर्ण विकास में अहम भूमिका निभाई है।
इस अवसर पर उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति एमआर शाह, गुजरात उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति विक्रमनाथ, भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता तथा राज्य के महाधिवक्ता कमल त्रिवेदी ने भी अपने विचार व्यक्त किए।