नई दिल्ली। बिलकिस बानो पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई कर रहे सुप्रीमकोर्ट की न्यायाधीश न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने ने मंगलवार को याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया क्योंकि याचिका में दोषियों को राहत देने के गुजरात सरकार के फैसले को चुनौती दी गई थी। इसके बाद बिलकिस की याचिका पर सुनवाई स्थगित हो गई।
शीर्ष न्यायालय की पीठ में दूसरे न्यायाधीश न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी हैं, जो बिलकिस बानो द्वारा दायर पुनर्विचार याचिका की सुनवाई कर रहे थे। न्यायालय के न्यायाधीशों के कक्ष में एक आरपी की सुनवाई होती है और उन्हीं न्यायाधीशों ने पहले इस मामले में आदेश/निर्णय पारित किया था।
गौरतलब है कि 11 दोषियों ने बिलकिस बानो के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया था और 2002 के भयानक और क्रूर गोधरा दंगों के दौरान उसके परिवार के कई (सात) सदस्यों की हत्या कर दी थी। बिलकिस बानो ने मई 2022 के अपने आरपी की खुली अदालत में सुनवाई की मांग करते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया था, जिसमें गुजरात सरकार को दोषियों में से एक की जल्द रिहाई के आवेदन पर विचार करने का निर्देश दिया था। न्यायालय ने मई 2022 के अपने आदेश में गुजरात सरकार को 1992 की छूट नीति के संदर्भ में एक दोषी की रिहाई पर फैसला करने का निर्देश दिया था।
गुजरात सरकार ने शीर्ष अदालत के इसी मई के आदेश के तहत इस साल 15 अगस्त को बिलकिस के 11 दोषियों को रिहा करने का आदेश दिया था। गत 15 अगस्त को बिलकिस के 11 दोषियों की समय से पहले रिहाई ने बड़े पैमाने पर देशव्यापी आक्रोश और विरोध को जन्म दिया, जिसके बाद शीर्ष अदालत के समक्ष कई याचिकाएं दायर की गईं, जिनमें खुद बिलकिस, कई सामाजिक कार्यकर्ता, नागरिक समाज के सदस्य और अन्य लोग शामिल हैं।उल्लेखनीय है कि वर्ष 2002 के गुजरात दंगों के दौरान 11 लोगों को उसके (बिलकिस के) साथ बलात्कार करने और उसकी बेटी सहित परिवार के सात सदस्यों की हत्या करने के लिए 2008 में दोषी ठहराया गया था।
बिलकिस ने 30 नवंबर को शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था और 2002 में भयानक तथा क्रूर गुजरात दंगों के मामलों के दौरान बलात्कार एवं उसके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के लिए उम्रकैद की सजा पाए 11 दोषियों की समय से पहले रिहाई के खिलाफ आरपी दायर की थी।
शीर्ष अदालत के समक्ष दायर बिलकिस के आरपी में कहा गया कि बिलकिस बानो सबसे भीषण और अमानवीय सांप्रदायिक घृणा अपराधों में से एक का शिकार है, जिसे भारत ने शायद कभी देखा है। वह साहस जुटाती है और 17 साल की लंबी खींची हुई कानूनी लड़ाई से उबरने के बाद एक बार फिर से लड़ने के लिए खुद को फिर से खड़ा कर लेती है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि उसके दोषियों को उनके द्वारा किए गए जघन्य अपराध के लिए दंडित किया जाए।
शीर्ष अदालत के समक्ष अपनी पूरी याचिका में दोषियों ने पूरी तरह से चुप्पी साधे रखी और अपराध की गंभीर प्रकृति का खुलासा नहीं किया और पूरी तरह से छुपाया, जिसके लिए उन्हें निचली अदालत, उच्च न्यायालय और शीर्ष अदालत ने दोषी ठहराया था। वरिष्ठ वकील शोभा गुप्ता की ओर से शीर्ष अदालत के समक्ष दायर बिलकिस के आरपी में कहा गया कि तथ्यों को छिपाना और न्यायालय को गुमराह कर एक अनुकूल आदेश प्राप्त करना इस न्यायालय के साथ जानबूझकर धोखाधड़ी करने से कम नहीं है।
गुप्ता ने कहा कि बिलकिस के बहुचर्चित मामले में दोषियों की समय से पहले रिहाई ने समाज की अंतरात्मा को झकझोर कर रख दिया है और इसके परिणामस्वरूप देश भर में कई आंदोलन हुए हैं। शीर्ष न्यायालय ने पहले ही घोषित कर दिया है कि सामूहिक छूट की अनुमति नहीं है और यह छूट नहीं दी जा सकती है।
आरपी में कहा गया कि सभी दोषियों की समय से पहले रिहाई न केवल याचिकाकर्ता, उसकी बड़ी हो चुकी बेटियों, उसके परिवार के लिए, बल्कि पूरे समाज के लिए, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक झटके के रूप में सामने आई। इस मामले में 11 दोषियों जैसे अपराधियों को रिहा करके गुजरात सरकार द्वारा दिखाई गई दया के प्रति सभी वर्गों के समाज ने अपना अविश्वास, गुस्सा, निराशा और विरोध दिखाया था। आरपी में कहा गया कि देश के प्रत्येक शहर में वस्तुतः आंदोलन और सार्वजनिक विरोध प्रदर्शन किए गए और समय से पहले रिहाई के आदेश की सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म तथा समाचारों पर बहुत आलोचना की गई।
आरपी में यहां तक कहा गया कि मीडिया के अनुसार इस तरह की खबरें आ रही हैं कि इलाके के मुसलमान इन 11 दोषियों की रिहाई के डर से रहीमाबाद से भागना शुरू कर दिया है। सबसे बुरी बात यह थी कि अपराध की शिकार बिलकिस को भी इस मामले के सभी दोषियों को समय से पहले रिहा करने के फैसले के रूप में शुरू की गई समय से पहले रिहाई की ऐसी किसी प्रक्रिया के बारे में कोई आभास नहीं था।
शीर्ष अदालत के 13 मई, 2022 के एक आदेश के तहत समय से पहले रिहाई के लिए सभी दोषियों के मामले पर गुजरात सरकार ने विचार किया था, जिसमें से एक दोषी राधेश्याम ने दायर किया था, जिसमें इस अदालत ने याचिका की अनुमति देते हुए गुजरात सरकार को फैसला करने का निर्देश दिया था। अदालत ने वर्ष 1992 की गुजरात सरकार की छूट नीति के तहत 2 महीने की अवधि के भीतर राधेश्याम के आवेदन पर विचार करने का आदेश दिया था।
बिलकिस, उनके बच्चे, खासकर उनकी बड़ी हो चुकी बेटियां और पति, सभी मामले में अचानक हुए इस घटनाक्रम से सदमे में हैं। आरपी में कहा गया कि उनकी तत्काल चिंतायें संभावित प्रतिक्रिया उनके बच्चों, स्वयं और पति की सुरक्षा की थी।
याचिकाकर्ता का कहना है कि अभियोजन एजेंसी केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) है और सीबीआई की विशेष अदालत, मुंबई ने रिट याचिकाकर्ता, राधेश्याम और अन्य सह-दोषियों को समय से पहले रिहाई देने से इनकार कर दिया था, यह देखते हुए कि अपराध जघन्य व भीषण था। बिलकिस का दावा है कि यह तथ्य पूरी तरह से शीर्ष अदालत से दबा दिया गया था।