नई दिल्ली। सुप्रीमकोर्ट के दूसरे सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश अर्जन कुमार सिकरी ने कॉमनवेल्थ सेक्रेटेरिएट आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल का सदस्य नियुक्त किये जाने के केंद्र सरकार के प्रस्ताव को ठुकरा दिया है।
न्यायमूर्ति सिकरी से जुड़े सूत्रों ने रविवार को यहां बताया कि उच्चतम न्यायालय के दूसरे वरिष्ठतम न्यायाधीश ने लंदन स्थित सीसैट में अध्यक्ष/सदस्य के रूप में नामित करने के लिए सरकार को दी गई अपने नाम की मंजूरी वापस ले ली।
ऐसा समझा जाता है कि सरकार ने गत वर्ष के अंत में न्यायमूर्ति सिकरी के नाम की अनुशंसा की थी, लेकिन केंद्रीय जांच ब्यूरो के तत्कालीन निदेशक आलोक वर्मा को हटाने से संबंधित एपिसोड के बाद उनकी ईमानदारी पर सवाल उठाए जाने के बाद उन्होंने यह कदम उठाया है।
गौरतलब है कि न्यायमूर्ति सिकरी, वर्मा को सीबीआई के निदेशक पद से हटाने से जुड़ी चयन समिति में शामिल थे, जिसने दो-एक के बहुमत से उन्हें (वर्मा को) पद से हटाने का फ़ैसला किया था।
इस फ़ैसले के बाद मीडिया के कुछ हिस्सों में यह बात कही गई कि वर्मा के ख़िलाफ़ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ खड़े होने की वजह से न्यायमूर्ति सिकरी को फ़ायदा मिला है और सरकार ने उनके एक अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण का हिस्सा बनने के लिए सहमति दे दी है।
सूत्रों के मुताबिक न्यायमूर्ति सिकरी इन ख़बरों से काफ़ी परेशान हैं। उन्होंने विधि सचिव को एक पत्र में लिखा है कि वह हाल की कुछ घटनाओं से काफ़ी दुखी हैं। उन्होंने लिखा है कि मैंने दिसंबर में कॉमनवेल्थ सेक्रेटेरिएट आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल के लिए अपनी सहमति दे दी थी और उसके बाद से कोई सुनवाई नहीं की।
उन्होंने लिखा है कि मुझे बताया गया कि इस काम में प्रशासनिक विवादों का निपटारा करना होता है और उसके लिए कोई नियमित वेतन नहीं है, लेकिन हाल में जिस तरह के विवाद को हवा दी गई और जो घटनाएं हुईं उन्होंने मुझे काफ़ी दुखी कर दिया है। मैं इस ट्रिब्यूनल में जाने के लिए दी गई अपनी सहमति वापस लेता हूं। कृपया इस प्रस्ताव को आगे न बढ़ाएं।