सबगुरु न्यूज। ज्योतिराव गोविंदराव फुले 19वीं सदी के एक महान भारतीय विचारक, समाज सेवी, लेखक, दार्शनिक तथा क्रान्तिकारी कार्यकर्ता थे। उनको महात्मा फुले एवं ज्योतिबा फुले के नाम से जाना जाता है। आज ही के दिन यानी 28 नवंबर, 1890 को 63 साल की उम्र में उनका निधन हो गया था।
फुले ने दलितों के उत्थान और महिला सुधार के लिए अपना पूरा जीवन लगा दिया। वे जाति पर आधारित विभाजन और भेदभाव के सख्त विरोधी थे। ज्योतिराव की पुण्यतिथि के मौके पर जानिए उनके जीवन से जुड़ी प्रमुख बातें।
1. ज्योतिबा फुले का जन्म 11 अप्रेल 1827 को पुणे में हुआ था। उनका परिवार फूलों के गजरे बनाने का काम करते थे। यही वजह थी कि उनके परिवार को फुले के नाम से जाना जाता था। जब ज्योतिबा सिर्फ एक साल के थे तभी उनकी मां का देहांत हो गया।
2. ज्योतिबा फुले ने कुछ समय तक मराठी में पढ़ाई की, लेकिन लोग उनके पिता से यह कहने लगे कि अगर आपका बेट स्कूल जाएगा तो किसी काम का नहीं रह जाएगा। फिर क्या लोगों की बातों में आकर पिता गोविंद ने उनका स्कूल छुड़ा दिया। बाद में कुछ लोगों ने उन्हें समझया कि ज्योतिबा तेज दिमाग हैं उन्हें पढ़ाना चाहिए। तब कहीं जाकर उन्होंने 21 साल की उम्र में अंग्रेजी की सातवीं क्लास की पढ़ाई पूरी की। साल 1840 में वे सावित्री बाई के साथ शादी के बंधन में बंध गए।
3. ज्योतिबा फुले को एहसास हो गया था कि ईश्वर के सामने स्त्री-पुरुष दोनों का अस्तित्व बराबर है, फिर दोनों में भेद-भाव करने का कोई मतलब नहीं। ऐसे में स्त्रियों की दशा सुधारने और समाज में उन्हें पहचान दिलाने के लिए उन्होंने 1854 में एक स्कूल खोला। यह देश का पहला ऐसा स्कूल था जिसे लड़कियों के लिए खोला गया था। स्कूल में पढ़ाने का जिम्मा उन्होंने पत्नी सवित्री को सौंप दिया। समाज के ठेकेदारों को यह बात पसंद नहीं आई और उन्होंने ज्योतिबा के पिता पर दबाव बनाकर पत्नी समेत उन्हें घर से बाहर निकलवा दिया। इन सबके बावजूद ज्योतिबा का हौसला डगमगाया नहीं और उन्होंने लड़कियों के तीन-तीन स्कूल खोल दिए।
4. ज्यातिबा फुले दलित उत्थान के हिमायती थे। उन्होंने न सिर्फ विचारों से दलितों को सम्मान दिलाने की बात कही बल्कि अपने कर्मों से भी ऐसा करके दिखाया। उन्होंने दलितों के बच्चों को अपने घर में पाला और उनके लिए पानी की टंकी भी खोल दी। नतीजतन उन्हें जाति से बहिष्कृत कर दिया गया।
5. समाज के निम्न तबकों, पिछड़ों और दलितों को न्याय दिलाने के लिए ज्योतिबा फुले ने ‘सत्यशोधक समाज’ की स्थापना की। उनकी समाज सेवा से प्रभावित होकर 1888 में मुंबई की एक सभा में उन्हें ‘महात्मा’ की उपाधि से नवाजा गया।
6. ज्योतिबा फुले ने ब्राह्मण के बिना ही विवाह आरंभ कराया। कुछ समय बाद बॉम्बे हाईकोर्ट ने इसे मान्यता भी दी। यही नहीं उन्होंने विधवा विवाह का समर्थन और बाल विवाह का जमकर विरोध किया।
7. साल 1873 में ज्योतिबा फुले की किताब ‘गुलामगिरी’ प्रकाशित हुई। भले ही यह किताब बेहद कम पन्नों की थी लेकिन इसमें बताए गए विचारों के आधार पर दक्षिण भारत में कई सारे आंदोलन चले।
8. ज्योतिबा फुले ने ‘गुलामगिरी’ के अलावा ‘तृतीय रत्न’, ‘छत्रपति शिवाजी’, ‘राजा भोसले का पखड़ा’, ‘किसान का कोड़ा’ और ‘अछूतों की कैफियत’ जैसी कई किताबें लिखीं।
9. ज्योतिा फुले और उनके संगठन सत्यशोधक समाज के संघर्ष की बदौलत सरकार ने एग्रीकल्चर एक्ट पास किया।
10. महात्मा ज्योतिबा फुले ने 63 साल की उम्र में 28 नवंबर 1890 को पुणे में अपने प्राण त्याग दिए।