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कैलाश मानसरोवर यात्रा पर से अभी भी नहीं छंटे बादल
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कैलाश मानसरोवर यात्रा पर से अभी भी नहीं छंटे बादल

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कैलाश मानसरोवर यात्रा पर से अभी भी नहीं छंटे बादल

नैनीताल। उत्तराखंड के रास्ते संचालित होने वाली देश की ऐतिहासिक कैलाश मानसरोवर यात्रा पर से बादल अभी भी नहीं छटे है। लिपूलेख दर्रे से होने वाली इस वर्ष की यात्रा हेलीकाॅप्टर से होगी या फिर धारचूला के परंपरागत रास्ते से पैदल यात्रा संचालित होगी, यह अभी पूरी तरह से साफ नहीं हो पाई है।

विदेश मंत्रालय पिछले चार महीने में यात्रा की तैयारियों को लेकर कई बैठकें आयोजित कर चुका है लेकिन कैलाश यात्रा के अंतिम कार्यक्रम लेकर अभी सहमति नहीं बन पाई है। विदेश मंत्रालय, भारत और तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी), उत्तराखंड सरकार के साथ साथ कुमाऊं मंडल विकास निगम के सहयोग से हर साल देश की ऐतिहासिक कैलाश मानसरोवर यात्रा संचालित की जाती है।

भारत और चीन के बीच हर वर्ष 8 जून से लेकर 9 सितम्बर तक यात्रा संचालित की जाती है। हर वर्ष कम से कम 18 दल यात्रा में शामिल होते हैं और प्रत्येक दल में अधिकतम 60 यात्री कैलाश दर्शन को जाते हैं।

इस वर्ष की यात्रा को लेकर विदेश मंत्रालय और चीन के बीच अंतिम सहमति बन गयी है। यानी कैलाश यात्रा हर साल की भांति अपने तय कार्यक्रम से ही संचालित होगी। इसके लिए दिल्ली में आयोजित विदेश मंत्रालय की बैठक में इसे दोनों देशों की ओर हरी झंडी मिल गई है लेकिन भारतीय क्षेत्र में यात्रा को लेकर अभी भी संशय की स्थिति बनी हुई है।

विदेश मंत्रालय कैलाश यात्रा को लेकर कई बैठकें आयोजित कर चुका है लेकिन भारतीय सीमा में ऊंचाई वाले क्षेत्रों में यात्रा को लेकर अभी अंतिम सहमति नहीं बन पायी है। कल दिल्ली में विदेश मंत्रालय की ओर से आयोजित बैठक में भी यात्रा को लेकर अंतिम सहमति नहीं बन पाई।

दरअसल पिथौरागढ़ के धारचूला से होकर जाने वाली परंपरागत यात्रा पर इस बार पैदल रास्ते खराब होने के चलते संशय की स्थिति उत्पन्न हुई है। लखनपुर एवं मालपा के बीच सड़क मार्ग बनने तथा पिछले साल आई आपदा के चलते पैदल मार्ग की स्थिति है। इसलिए विदेश मंत्रालय के सामने इस बार पशोपेश की स्थिति बनी हुई है।

इन्हीं स्थितियों को लेकर सरकार ने पहले एलान किया कि इस वर्ष कैलाश यात्रा हेलीकऍप्टर से संचालित की जाएगी। वायुसेना के दो एमआई-17 हेलीकाप्टर कैलाश यात्रियों की सेवा में लगाए जाएंगे। यात्रियों को पिथौरागढ़ जिला मुख्यालय से सीधे गुंजी उतारा जाएगा। विदेश मंत्रालय ने कुमाऊं मंडल विकास निगम को इसी हिसाब से कार्यक्रम तय करने के निर्देश भी दिए थे।

दिल्ली में बुधवार को आयोजित उच्चस्तरीय बैठक में इस पर भी अंतिम मुहर नहीं लग पाई। अभी विदेश मंत्रालय ‘वेट एंड वाच’ की स्थिति में है। ऐसे में सरकार के सामने अब दो ही स्थिति शेष रह गई हैं। यदि पैदल मार्ग ठीक हो जाते हैं या फिर नजंग तक सड़क बन जाती है तो यात्रा को परंपरागत मार्ग धारचूला से संचालित की जा सकती है।

दूसरी स्थिति है कि यात्रियों को पिथौरागढ़ से सीधे गुंजी नौ सेना के एमआई-17 हेलीकाॅप्टर से उतारा जाए। इसमें भी एक पेंच फंस रहा है। यदि मौसम विपरीत रहा तो गुंजी और बूंदी पड़ावों से होकर जाने वाले छियालेख से नौ सेना का हेलीकाॅप्टर उड़ान नहीं भर सकता है। ऐसी स्थिति में यात्रियों को सीधे गुंजी पहुंचाना मुश्किल काम हो जाएगा। ऐसे में प्रशासन के सामने एकतरफ कुआं दूसरी तरफ खाई वाली चुनौती बनी हुई है।

ऐसी स्थिति में अंततः पूरा दारोमदार प्रदेश सरकार पर आ सकता है। प्रदेश सरकार को छोटे हेलीकाप्टर उपलब्ध कराने पड़ेंगे और अंततः तीर्थ यात्रियों को गुंजी के बजाय बूंदी में उतारना पड़ेगा। यहां से यात्री अगले दिन गुंजी के लिए रवाना हो सकेंगे।

कुमाऊं मंडल विकास निगम के प्रबंध निदेशक धीरज गर्ब्याल के अनुसार कैलाश यात्रा को लेकर अभी तक तीनों विकल्प खुले हैं। सरकार जो निर्देश देगी उसी अनुसार कदम उठाया जाएगा। यात्रियों को कोई दिक्कत नहीं आने दी जाएगी।