कामदा एकादशी : वैसे तो हिन्दू धर्म मे हर एकादशी का अपना ही महत्व होता है किंतु हिंदू संवत्सर के पहले पक्ष में आने वाली चैत्र मास की एकादशी का विशेष फलदाई होती है, जिसे कामदा एकादशी कहा जाता है। कामना पूर्ण और मनोकूल फल देने वाली होने के कारण इसे फलदा ए्वं कामदा एकादशी भी कहा जाता है। इस व्रत को रखने से प्रेत योनि से भी मुक्ति मिल जाती है।
कामदा एकादशी की कहानी
प्राचीन काल में भोगीपुर नाम का एक राज्य था जहां पुंडरीक नामक राजा राज्य करता था। उसी राज्य में ललित और ललिता नाम के स्त्री- पुरुष अत्यंत प्रेम से रहा करते थे। एक बार राजा पुंडरीक की सभा में ललित गायन कर रहा था गायन करते करते अचानक वह ललिता के ख्यालों में खो गया और उसका गायन अशुद्ध हो गया।
क्रोधित राजा ने ललित को शाप दिया
नागराज ने इस बात की शिकायत राजा से की, क्रोधित राजा ने ललित को शाप दिया कि तू नरभक्षी दैत्य बनकर अपने कर्म का फल भोग। गंधर्व ललित श्राप के कारण एक भयंकर दैत्य के रूप में आ गया उसका शरीर आठ योजन का हो गया अपने पति का ऐसा हाल देख ललिता दुख से भर गई और पति के उद्धार के लिए विचार करने लगी ।
विधान से व्रत कर उसका पुण्य
पति के पीछे चलते चलते एक बार दोनों विद्य्यांचल पर्वत पर पहुंच गए जहां श्रृंगी मुनि का आश्रम था। मुनि को दंडवत प्रणाम कर ललिता ने मुनि से अपने पति ललित को राक्षस योनी से मुक्ति का उपाय पूछा उपाय में मुनिश्री ने कहा, हे पुत्री ‘ चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत करने से प्राणी की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं , तुम विधि – विधान से व्रत कर उसका पुण्य अपने पति को दे दो तो राजा का श्राप समाप्त हो जाएगा।
ललिता ने ऋषि के कहे अनुसार व्रत किया और उसका पति राक्षस योनि से मुक्त हो दिव्य स्वरुप को प्राप्त हुआ। इस अपने निंदित कर्म करने से कष्ट भोंगे एवं अंत में एकादशी व्रत के प्रभाव से श्रीहरि की कृपा प्राप्त हुई ।