वाराणसी। उत्तर प्रदेश में वाराणसी स्थित काशी विश्वनाथ सहित देश के मंदिरों में हरिजनों के प्रवेश को लेकर लगभग आठ दशक पहले वाराणसी में महात्मा गांधी के साथ एक विचित्र घटना हुई थी। एक रूढ़िवादी जमात काशी के कोतवाल कालभैरव का ‘वारंट’ लेकर उन्हें गिरफ्तार करने पहुंच गई थी।
घटना जुलाई 1934 की है, जब गांधीजी, मंदिरों के द्वार सभी के लिए खोलने की मुहिम चला रहे थे। महामना पंडित मदन मोहन मालवीय सहित सभी तत्कालीन नेता उनका समर्थन कर रहे थे। लेकिन काशी के कुछ सनातनी पंडित इसे शास्त्र विरुद्ध बता कर इसका पुरजोर विरोध कर रहे थे। काशी का एक पोंगापंथी पंडित लालनाथ इसमें सबसे सक्रिय था।
गांधीजी जहां जाते लालनाथ अपने समर्थकों के साथ वहां काला झंडा लेकर पहुंच जाता। गांधीजी कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में भाग लेने जब काशी आए तो लालनाथ फिर बापू के सामने हाजिर हो गया।
लालनाथ के एक समर्थक ने गांधीजी से कहा कि आप के खिलाफ काशी के कोतवाल कालभैरव का वारंट है। उनके सामने आपकी पेशी है। बापू ने पूछा वारंट किसने और क्यों जारी किया है जवाब मिला कि आपने सनातनी परंपरा में हस्तक्षेप किया है, इसलिए आप के खिलाफ काल भैरव की ओर से वारंट जारी किया गया है। इस वारंट के आधार पर हमें आपको गिरफ्तार करना है।
गांधीजी ने कहा यदि वास्तव में काल भैरव ने यह वारंट जारी किया है तो उन्हें भगवान से इस बात की प्रेरणा क्यों नहीं मिली कि वह इसका पालन करें। सनातनी ने कहा कि आप पापी है, इसीलिए आपको भगवान की ओर से कोई निर्देश नहीं मिला। आपने सनातनी परंपरा का उल्लंघन किया है, आप धर्म को कमजोर करना चाहते हैं।
मामूली वाद-विवाद के बाद लालनाथ ने कहा कि आप हमें अपनी फोटो दें। बापू ने कहा कि वह अपना फोटोग्राफ नहीं रखते। बाद में, लालनाथ ने कहीं से गांधी जी की तस्वीर हासिल की और सार्वजनिक रूप से उसे जलाया।
कुछ दिन बाद लालनाथ के साथ अजमेर में एक हादसा पेश आया जब गांधीजी के समर्थकों ने उसकी पिटाई कर दी। गांधीजी इस घटना से क्षुब्ध हो गए। उन्होंने इसे अहिंसा धर्म के खिलाफ बताया। बापू ने जनजागरण के लिए एक सप्ताह का अनशन किया।
काशी विश्वनाथ मंदिर में हरिजन प्रवेश वर्ष 1957 में संभव हो पाया। हालांकि पुजारियों का कहना था कि वे किसी दर्शनार्थी की जाति नहीं पूछते हैं। काशी के सनातनी धर्माचार्य स्वामी करपात्री ने मंदिर के द्वार सभी के लिए खोले जाने के खिलाफ अभियान चलाया। लेकिन स्वामी करपात्री को जल्द ही इस बात का भान हो गया कि वह अल्पमत में हैं। हिन्दू समाज, समानता में विश्वास रखता है तथा कुरीतियों को बनाए रखने के पक्ष में नहीं है।
बाद में स्वामी करपात्री ने ऐलान किया कि शास्त्रीय परंपरा का उल्लंघन होने के कारण काशी विश्वनाथ मंदिर में शिवत्व का लोप हो गया है। उन्होंने दावा किया कि वह शिवत्व को एक नए मंदिर में संरक्षित करेंगे। उन्होंने काशी विश्वनाथ मंदिर से कुछ दूर मीरघाट इलाके में ‘काशी विश्वनाथ मंदिर’ के ही नाम से एक और मंदिर स्थापित कर दिया।
स्वामी करपात्री की पुरातनपंथी सोच सामाजिक समानता और न्याय के दौर में टिक नहीं पाई। आज भी मीरघाट में स्थित स्वामी करपात्री का शिवालय प्रायः वीरान रहता है। वहीं, प्राचीन काशी विश्वनाथ मंदिर में भक्तों का तांता लगा रहता है। वाराणसी में इन दिनों नवनिर्मित काशी धाम की गूंज के बीच दशकों पहले के इस अप्रिय घटनाक्रम की चर्चा भी नहीं होती।