प्रयागराज | पवित्र सावन महीने में देवाधिदेव महादेव को प्रसन्न कर मनोवांछित फल पाने की कामना के लिए कई उपयों मे से एक ‘कांवड यात्रा” है। कंधे पर गंगाजल लेकर शिवालयों में ज्योर्तिलिंग पर चढाने की परंपरा ‘कांवड़ यात्रा” कहलाती है। कांवड़ों का मानना है कि यह यात्रा भक्त और भगवान के बीच सेतु का काम करती है।
माना जाता है कि कंधे पर कांवड़ रखकर बोल बम का नारा लगाते हुए अपने गन्तव्य को प्रस्थान करना पुण्यदायक माना जाता है। इसके हर कदम के साथ एक अश्वमेघ यज्ञ के बराबर फल मिलता है। कांवड लेकर चलने के अपने कुछ नियम भी होती हैं जिसे कांवरिया कावंड यात्रा के दौरान निष्ठा और भक्तिभाव से निभाते हैं।
दारागंज स्थित दशास्वमेध घाट पर स्नान कर वाराणसी के काशी विश्वनाथ पर कांवड लेकर जलाभिषेक को तैयार मामफाेर्डगंज निवासी श्रद्धालु कांवरिया गोपाल श्रीवास्तव ने बताया कि वह अपनी मित्र मण्डली के साथ पिछले दस वर्षों से कांवड लेकर जाते हैं। इनकी मण्डली में पांच लोग हैं। उन्होने बताया कि कांवड लेकर नंगे पैर चलना बहुत कष्टकारी होता है। पैरों में सूजन के साथ छाले पड जाते हैं। कदम बढ़ाना मुश्किल हो जाता है। केवल भोले नाथ और बोल बम से मिलने वााली ऊर्जा ही किसी भी श्रद्धालु को उसके गन्तव्य तक पहुंचाती हैै। उनका मानना है कि कांवड़ यात्रा भक्त और भगवान के बीच सेतु का काम करती है।
श्रद्धालुओं का कहना है कि बांस की लचकदार फट्टी को फूल, माला, घंटी और घुंघरू से सजा कर उसके दोनों किनारों पर प्लास्टिक के डिब्बों में गंगाजल लटका कर कंधे पर रखकर आराध्य आशुतोष का अभिषेक करने के लिए कांवरिया निकलता है। उन्होने बताया कि सभी कांवरिये बोल बम का नारा एवं मन में बाबा तेरा सहारा” का गन्तव्य तक जप चलता रहता है। यही उनके अन्दर ऊर्जा प्रदान करता है कठिन मार्ग को सहजता पूरा करता है।