अजमेर। अजमेर स्थित विश्व प्रसिद्ध सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती के 807वें सालाना उर्स का झंडा तीन मार्च को चढ़ाया जाएगा।
झंडे की रस्म को निभाने वंशानुगत परंपरागत तरीके से भीलवाड़ा का गौरी परिवार एक मार्च की शाम अजमेर पहुंच जाएगा। भीलवाड़ा के गौरी परिवार के द्वारा झंडे की रस्म अदा की जाएगी। इस रस्म में दरगाह कमेटी, अंजुमन सैयद जादगान, अंजुमन शेख जादगान के साथ बड़ी संख्या में आशिकाना-ए-ख्वाजा शिरकत करेंगे।
तीन मार्च को झंडे का जुलूस अस्र की नमाज के बाद शाम पांच बजे गरीब नवाज गेस्ट हाउस से गाजे बाजे, कव्वालियों के साथ बड़ी शानौ शौकत के साथ निकलेगा और लंगरखाना गली के रास्ते होता हुआ दरगाह के मुख्य निजाम गेट से प्रवेश कर 85 फुट ऊंचे बुलंद दरवाजे पहुंचेगा।
इसी बुलंद दरवाजे पर ख्वाजा गरीब नवाज के 807वें सालाना उर्स का झंडा चढ़ाने की रस्म के बाद ही उर्स की अनौपचारिक शुरुआत हो जाएगी। इससे पहले दोपहर तीन बजे ख्वाजा साहब की खिदमत बंद कर दी जाएगी और रजब के चांद का इंतजार शुरू होगा।
रजब माह का चांद दिखने पर सात मार्च से विधिवत उर्स शुरू हो जाएगा जो बड़े कुल की रस्म के साथ 17 मार्च को संपन्न होगा। इस दौरान चांद की 29 तारीख को तड़के जन्नती दरवाजा भी खोला जाएगा।
ख्वाजा का उर्स महज छह दिनों का होता है लेकिन बड़े कुल की रस्म जो कि 17 मार्च को होने के चलते और आशिकाना-ए-ख्वाजा जायरीनों के आने के चलते उर्स बीस मार्च तक चलेगा जिसके मद्देनजर दरगाह बाजार मोतीकटला क्षेत्र में प्रशासनिक कैंप भी चलाया जाएगा।
रजब माह की छह तारीख को कुल की महफिल के साथ ही उर्स का समापन हो जाया करता है, लेकिन दरगाह शरीफ में हाजिरी लगाने वालों का सिलसिला बना रहता है।