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कभी अलविदा ना कहना..
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कभी अलविदा ना कहना..

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कभी अलविदा ना कहना..
kishore kumar birth anniversary on 4 August 2018
kishore kumar birth anniversary on 4 August 2018
kishore kumar birth anniversary on 4 August 2018

बीच राह में दिलबर बिछड़ जाए कहीं हम अगर
और सूनी सी लगे तुम्हें जीवन की ये डगर
हम लौट आएंगे तुम यूंही बुलाते रहना
कभी अलविदा ना कहना…

मुंबई। जिंदगी के अनजाने सफर से बेहद प्यार करने वाले हिन्दी सिने जगत के महान पार्श्वगायक किशोर कुमार का नजरिया उनके गाए इन पंक्तियों में समाया हुआ है। मध्यप्रदेश के खंडवा में 4 अगस्त 1929 को मध्यवर्गीय बंगाली परिवार में अधिवक्ता कुंजी लाल गांगुली के घर जब सबसे छोटे बालक ने जन्म लिया तो कौन जानता था कि आगे चलकर यह बालक अपने देश और परिवार का नाम रौशन करेगा। भाई बहनो में सबसे छोटे नटखट आभास कुमार गांगुली उर्फ किशोर कुमार का रूझान बचपन से ही पिता के पेशे वकालत की तरफ न होकर संगीत की ओर था।

महान अभिनेता एवं गायक के.एल.सहगल के गानो से प्रभावित किशोर कुमार उनकी ही तरह के गायक बनना चाहते थे। सहगल से मिलने की चाह लिये किशोर कुमार 18 वर्ष की उम्र में मुंबई पहुंचे। लेकिन उनकी इच्छा पूरी नहीं हो पाई। उस समय तक उनके बड़े भाई अशोक कुमार बतौर अभिनेता अपनी पहचान बना चुके थे।

अशोक कुमार चाहते थे कि किशोर नायक के रूप मे अपनी पहचान बनाए लेकिन खुद किशोर कुमार को अदाकारी की बजाय पार्श्व गायक बनने की चाह थी जबकि उन्होंने संगीत की प्रारंभिक शिक्षा कभी किसी से नहीं ली थी। जबकि बालीवुड में अशोक कुमार की पहचान के कारण उन्हें बतौर अभिनेता काम मिल रहा था।

अपनी इच्छा के विपरीत किशोर कुमार ने अभिनय करना जारी रखा। जिन फिल्मों में वह बतौर कलाकार काम किया करते थे उन्हें उस फिल्म में गाने का भी मौका मिल जाया करता था। किशोर कुमार की आवाज सहगल से काफी हद तक मेल खाती थी।

बतौर गायक सबसे पहले उन्हें वर्ष 1948 में बाम्बे टाकीज की फिल्म जिद्दी में सहगल के अंदाज में ही अभिनेता देवानंद के लिए मरने की दुआएं क्यूं मांगू..गाने का मौका मिला। किशोर कुमार ने वर्ष 1951 में बतौर मुख्य अभिनेता फिल्म आन्दोलन से अपने करियर की शुरूआत की लेकिन इस फिल्म से दर्शकों के बीच वह अपनी पहचान नहीं बना सके।

वर्ष 1953 मे प्रदर्शित फिल्म लड़की बतौर अभिनेता उनके कैरियर की पहली हिट फिल्म थी। इसके बाद बतौर अभिनेता भी किशोर कुमार ने अपनी फिल्मों के जरिये दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया।

किशोर कुमार ने 1964 में फिल्म दूर गगन की छांव में के जरिये निर्देशन के क्षेत्र मे कदम रखने के बाद हम दो डाकू, दूर का राही, बढ़ती का नाम दाढ़ी, शाबास डैडी, दूर वादियों में कही, चलती का नाम जिंदगी और ममता की छांव में जैसी कई फिल्मों का निर्देशन भी किया। निर्देशन के अलावा उन्होंने कई फिल्मों में संगीत भी दिया जिनमें

झुमरू, दूर गगन की छांव में, दूर का राही, जमीन आसमान और ममता की छांव में जैसी फिल्में शामिल है। बतौर निर्माता किशोर कुमार ने दूर गगन की छांव में और दूर का राही जैसी फिल्में भी बनाईं।

किशोर कुमार को अपने कैरियर में वह दौर भी देखना पड़ा जब उन्हें फिल्मों में काम ही नहीं मिलता था। तब वह स्टेज पर कार्यक्रम पेश करके अपना जीवन यापन करने को मजबूर थे। बंबई में आयोजित एक ऐसे ही एक स्टेज

कार्यक्रम के दौरान संगीतकार ओपी नैय्यर ने जब उनका गाना सुना तो वह भावविह्ल होकर कहा, महान प्रतिभाएं तो अक्सर जन्म लेती रहती हैं लेकिन किशोर कुमार जैसा पार्श्वगायक हजार वर्ष में केवल एक ही बार जन्म लेता है। उनके इस कथन का उनके साथ बैठी पार्श्वगायिका आशा भोंसले ने भी सर्मथन किया।

वर्ष 1969 मे निर्माता निर्देशक शक्ति सामंत की फिल्म आराधना के जरिये किशोर कुमार गायकी के दुनिया के बेताज बादशाह बने लेकिन दिलचस्प बात यह है कि फिल्म के आरंभ के समय संगीतकार सचिन देव वर्मन चाहते थे सभी गाने किसी एक गायक से न गवाकर दो गायकों से गवाएं जाएं।

बाद में सचिन देव वर्मन की बीमारी के कारण फिल्म आराधना में उनके पुत्र आरडी बर्मन ने संगीत दिया। मेरे सपनों की रानी कब आएगी तू.. और रूप तेरा मस्ताना.. गाना किशोर कुमार ने गाया जो बेहद पसंद किया गया। रूप तेरा मस्ताना गाने के लिए किशोर कुमार को बतौर गायक पहला फिल्म फेयर पुरस्कार मिला। इसके साथ ही फिल्म आराधना के जरिये वह उन ऊंचाइयों पर पहुंच गए जिसके लिए वह सपनों के शहर मुंबई आए थे।

हरदिल अजीज कलाकार किशोर कुमार कई बार विवादों का भी शिकार हुए। सन 1975 में देश में लगाये गये आपातकाल के दौरान दिल्ली में एक सांस्कृतिक आयोजन में उन्हें गाने का न्यौता मिला। किशोर कुमार ने पारिश्रमिक मांगा तो आकाशवाणी और दूरदर्शन पर उनके गायन को प्रतिबंधित कर दिया गया। आपातकाल हटने के बाद पांच जनवरी 1977 को उनका पहला गाना बजा दुखी मन मेरा सुनो मेरा कहना, जहां नहीं चैना वहां नहीं रहना..।

किशोर कुमार को उनके गाए गीतों के लिए आठ बार फिल्म फेयर पुरस्कार मिला। किशोर कुमार ने अपने सम्पूर्ण फिल्मी कैरियर मे 600 से भी अधिक हिन्दी फिल्मों के लिए अपना स्वर दिया। उन्होंने बंगला, मराठी, आसामी, गुजराती, कन्नड, भोजपुरी और उड़िया फिल्मों में भी अपनी दिलकश आवाज के जरिये श्रोताओं को भाव विभोर किया।

किशोर कुमार ने कई अभिनेताओ को अपनी आवाज दी लेकिन कुछ मौकों पर मोहम्मद रफी ने उनके लिये गीत गाये थे। इन गीतों में हमें कोई गम है तुम्हें कोई गम है मोहब्बत कर जरा नहीं डर, चले हो कहां कर के जी बेकरार, भागमभाग, मन बाबरा निस दिन जाए, रागिनी है दास्तां तेरी ये जिंदगी, शरारत, और आदत हैं सबको सलाम करना, प्यार दीवाना 1972 शामिल है। दिलचस्प बात यह है कि मोहम्मद रफी किशोर कुमार के लिए गाए गीतों के लिए महज एक रुपया पारिश्रमिक लिया करते थे।

वर्ष 1987 में किशोर कुमार ने निर्णय लिया कि वह फिल्मों से संन्यास लेने के बाद वापस अपने गांव खंडवा लौट जाएंगे। वह अक्सर कहा करते थे कि दूध जलेबी खाएंगे खंडवा में बस जाएंगे..लेकिन उनका यह सपना अधूरा ही रह गया। 13 अक्टूबर 1987 को किशोर कुमार को दिल का दौरा पड़ा और वह इस दुनिया से विदा हो गए।