भारत में विभिन्न प्रकार के पर्व त्योहार मनाये जाते है लेकिन दशहरे का त्योहार पूरे भारत में बहुत ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है चुंकि सृष्टि के आरम्भ से ही धर्म जीवन का परिचायक रहा है अब भय कहें या आस्था ,जीवन के वास्तविक स्वरुप को दर्शाता है।
दशहरे को विजयादशमी भी कहा जाता है,यह सांकेतिक पर्व है यानि वर्षा ऋतु के अंत और शरद ऋतु के आरंभ में मनाया जाने वाला पर्व है यानि आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी को मनाया जाता है।
इस पर्व को मनाने के कई कारण हैं, पौराणिक कथाओं से यह ज्ञात होता है कि मां दुर्गा का अवतार कुछ दुष्टों का नाश करने के लिए हुआ था और मां दुर्गा ने महिषासुर,शुम्भ निशुम्भ का वध कर उनपर विजय प्राप्त किया था और मानव का जन कल्याण किया इसलिए इस शक्तिस्वरुपा की पूजा की जाती है।
यही कारण है मां दुर्गा ने जितने रुप बदले दुष्टों का संहार करने में उन सभी नौ रूपों की पूजा नवरात्र में कि जाती है लोग इस पर्व को बड़े ही हर्षोल्लास में मनाते हैं,मां दुर्गा की भव्य प्रतिमा बनाई जाती है कलश स्थापना की जाती है लोग उपवास रख अपनी श्रद्धा से मां दुर्गा की आराधना करते हैं और दसवें दिन कलश विर्सजन के साथ मां दुर्गा की प्रतिमा को जल में प्रवाहित किया जाता है।
एक किंवदंतियां यह भी है दशहरे मनाने का उद्देश्य विजय प्राप्त करना है,जब रावण ने सीता का अपहरण कर लिया था तो राम और रावण में युद्ध हुआ और राम ने कुविचारों का अंत कर रावण का वध किया था और अनुचित और कुदृष्टि रखने वालों का अंत कैसे होता है यह बतलाया और इस तरह राम ने रावण पर विजय हासिल कर सीता को वापस अपने पास लाया इस दिन , इसलिए दशहरा मनाया जाता है।
जगह जगह रामलीला का आयोजन किया जाता है और राम जन्म से लेकर रावण के वध तक की भूमिका कलाकारों द्वारा दिखाई जाती है इसका मतलब यह होता है कि समाज में अनैतिक विचार रखने वालों का संहार इसी प्रकार होता है और अंतिम दिन रावण के पुतले में राम के द्वारा आग लगा कर जला दिया जाता है इस हर्षोल्लास में आतिशबाजी की जाती है जिससे आकाश रौशनी से जगमगा उठता है,असत्य पर सत्य की विजय देखने हजारों की भीड़ देखने के लिए जुटी रहती है।
दशहरे का पर्व अपने आप में एक संस्कृति है जो हर वर्ष मानव के मूल्यों को पहचानने और सच्चे रास्ते पर चलने की प्रेरणा देती है,हर प्रदेशों में दशहरा मनाने की अलग अलग प्रचलन भी है हिमाचल में रधुनाथ मंदिर से राम भगवान की प्रतिमा निकाली जाती है और सभी देवताओं के साथ वहां कि पहाड़ी वाधों, नृत्य और गायन से पूरे वातावरण में हर्षोल्लास का माहौल रहता है लोग इस उत्सव को जीवन का परिचायक मानते हैं और सच्चे रास्ते पर चलने की प्रेरणा लेते हैं।
दशहरा मनाने का उद्देश्य सिर्फ समाज में फैली कुरितियों का अंत करना नहीं है बल्कि अपने भीतर के कुविचारों का अंत करना भी है जिससे नये समाज और नई संस्कृति का उदय हो सके।