सबगुरु न्यूज। कोकिला पंचमी व्रत खास तौर पर कुमारी कन्या सुयोग्य पति की कामना के लिए करती है। इस व्रत के प्रभाव से व्रती को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
कोकिला व्रत की कथा
पौराणिक कथानुसार जब देवो के राजा दक्ष की बेटी सती अपने पिता के अनुमति के खिलाफ भगवान शिव जी से विवाह कर लेती है। जिस कारण राजा दक्ष बेटी सती से नाराज हो जाते है। राजा दक्ष भगवान शिव जी के रहन-सहन से घृणा करते थे।
उनको भगवान शिवजी पसंद नहीं थे। इसी कारण राजा दक्ष बेटी सती से सभी सम्बन्ध तोड़ लेते हैं। एक बार राजा दक्ष ने बहुत बड़ा यज्ञ किया जिसमें सभी देव गण एवम देवियों को आमंत्रित किया लेकिन भगवान शिवजी और देवी सती को इस यज्ञ में आमंत्रित नहीं किया गया।
भगवान शिव जी माँ सती को बिना बुलाए ना जाने को कहते हैं किन्तु मां सती उस यज्ञ में शामिल होने अपने पिता के घर पर पहुंच जाती है। इस यज्ञ में मां सती तथा भगवान शिव जी को अपमानित किया जाता है। इस कारण मां सती क्रोध में आकर यज्ञ कुण्ड में अपने शरीर का त्याग कर देती है।
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भगवान शिव जी के मना करने के पश्चात यज्ञ में शामिल होने के कारण क्रोध में आकर मां भगवान शिव जी उन्हें कोकिला बनने का श्राप देते हैं। इस प्रकार मां सती कोकिला बन 10 हजार वर्षो तक भटकती रहती है। इसके पश्चात मां सती को श्राप से मुक्ति मिलती है। अगले जन्म में मां सती पार्वती का रूप लेकर पुन: अवतरित होती है।
इस जन्म में मां पार्वती कोकिला व्रत को करती है। व्रत के प्रभाव से मां पार्वती का विवाह भगवान शिव जी से होती है। अत: यह व्रत कुमारी कन्या के लिए अति फलदायी है।
कोकिला व्रत विधि
इस दिन सूर्योदय से पूर्व उठें, तथा सूर्योदय से पूर्व दैनिक कार्य से निवृत्त होकर स्नान कर लेना चाहिए। तत्पश्चात पीपल वृक्ष या आवला वृक्ष के सान्निध्य में भगवान शिव जी एवम मां पार्वती की प्रतिमा स्थापित कर पूजा करना चाहिए।
भगवान की पूजा जल, पुष्प, बेलपत्र, दूर्वा, धूप, दीप आदि से करें। इस दिन निराहार व्रत करना चाहिए। सूर्यास्त के पश्चात आरती-अर्चना करने के पश्चात फलाहार करना चाहिए। इस व्रत को विवाहित नारियां के साथ-साथ कुंवारी कन्याएं भी कर सकती है।