कोटा। राजस्थान में कोटा की एक अदालत ने नाबालिग और मानसिक रुप से बीमार अपनी ही बेटी से दुष्कर्म करने के बाद उसकी हत्या के आरोपी पिता की फांसी की सजा बरकरार रखी है।
पोक्सो कोर्ट न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश अशोक चौधरी ने इसे विरलतम अपराध मानते हुए फैसले में लिखा कि हिंदू धर्म में पौराणिक मान्यता है कि जहां नारी की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं। ऐसे पिता का अपनी नाबालिग पुत्री से बलात्कार और बाद में उसकी हत्या करना घिनौना कृत्य है।
ऐसे में अपराधी के साथ किसी भी तरह की रियायत बरतना उचित नहीं है बल्कि ऐसा करने पर समाज में भी असुरक्षा और भय पैदा होगा। ऐसा राक्षसी प्रवृत्ति का व्यक्ति समाज की मुख्यधारा से जुड़ने योग्य नहीं है। ऐसे अपराधी को गर्दन में फांसी का फंदा लगाकर तब तक लटकाया जाए जब तक कि उसकी मौत नहीं हो जाती।
इससे पहले इस मामले में सुनवाई के बाद कोटा की पोक्सो अदालत ने ही आरोपी को पिछले वर्ष 20 जनवरी को फांसी की सजा सुनाई थी जिसके खिलाफ आरोपी ने राजस्थान उच्च न्यायालय की जयपुर खंडपीठ में याचिका दायर की थी।
उच्च न्यायालय ने याचिका की सुनवाई के बाद निचली अदालत को मृत किशोरी की मां से जिरह की अनुमति देते हुए दोबारा से सुनवाई के आदेश दिए थे। उच्च न्यायालय के इस आदेश के तहत पीड़िता की मां को अदालत के समक्ष पेश किया जहां बचाव पक्ष ने अपराधी पिता की बचाव के लिए तीन गवाह भी पेश किए।
इस मामले की दोबारा सुनवाई के बाद गत 17 जनवरी को सजा निर्धारण के लिए नई तिथि तय करते हुए कल अपना फैसला सुनाया। इसमें आरोपी पर आरोप सिद्ध माना गया और फांसी पर लटकाने की सजा सुनाई। आरोपी पर 20 हजार रूपए का जुर्माना भी लगाया गया है। न्यायालय के फैसले के बाद पुलिस आरोपी को कड़ी सुरक्षा के बीच कोटा केंद्रीय कारागार ले गई।
मामले के अनुसार इस कलयुगी पिता ने मई 2015 में अपनी 17 वर्षीय पुत्री की हत्या कर दी उस समय उसके पेट में चार महीने का गर्भ था जिसकी पोस्टमार्टम रिपोर्ट में पुष्टि हुई थी। उसके खिलाफ उसकी पत्नी ने ही गवाही दी थी।