कोटा। असत्य पर सत्य की विजय के प्रतीक विजयादशमी पर्व पर वैश्विक महामारी कोरोना गाइडलाइन के कारण इस बार भी मेला, बड़ा समारोह, आतिशबाजी भगवान लक्ष्मीनाथजी की सवारी आदि पारंपरिक आयोजनों के नहीं होने से रौनक फीकी रहेगी।
इस अवसर पर रियासतकाल से ही होते चले आ रहे कार्यक्रम समारोह, आतिशबाजी, भगवान लक्ष्मी नाथजी की सवारी जैसे पारंपरिक आयोजन प्रशासनिक रोक के चलते नहीं हो पायेंगे। पिछले साल की तरह इस बार भी कोटा में दशहरे का त्यौहार अत्यंत सादगी से मनाया जाएगा। इस बार भी दशहरे मेले का आयोजन नहीं होगा, मेला नहीं लगेगा तो न तो बाजार सजेंगे और ना ही पहले की तरह अपार लोगों की शिरकत होगी।
पिछले साल की तरह इस बार भी कोटा में दशहरा के अवसर पर प्रतीकात्मक रावण दहन की औपचारिकता निभाई जाएगी जिसमें चुनिंदा सरकारी अफसर और प्राचीन परंपरा के अनुसार पूर्व राजपरिवार के सदस्य शामिल होंगे। आम आदमी की भागीदारी नहीं होगी।
जिस ऐतिहासिक दशहरा मेला स्थल पर 72 फुट के रावण और उसके कुनबे के पुतलों का दहन होता रहा है, वहां इस बार 25 फुट के रावण के पुतले का दहन होगा। इसके अलावा नगर निगम की ओर से रेलवे कॉलोनी में सांकेतिक रूप से रावण दहन होगा और इस बार भी श्रीनाथपुरम, रंगबाड़ी और निजी औद्योगिक संस्थान डीसीएम में रावण दहन का आयोजन नहीं किया जाएगा।
कोटा के दशहरा मेला को एक ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक आयोजन के लिहाज से राजस्थान के सबसे बड़े उत्सवों में से एक माना जा सकता है क्योंकि यह मेला डेढ़ पखवाड़े से भी अधिक समय तक अनवरत चलता है।
इस दौरान कई लाख लोग मेला घूमने के लिए आते थे जिनमें स्थानीय शहरी लोगों के अलावा समूचे हाड़ोती संभाग के ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों सहित देश-विदेश से कुछ संख्या में पर्यटक भी आते रहे हैं लेकिन अब यह बीते दिनों की बात लगती है। रावण दहन के दिन करीब दो लाख लोग अलग-अलग स्थानों पर आयोजित होने वाले कार्यक्रमों में शामिल होने के लिए कोटा में जुटते थे।