Warning: Constant WP_MEMORY_LIMIT already defined in /www/wwwroot/sabguru/sabguru.com/18-22/wp-config.php on line 46
आशीष मिश्रा की जमानत रद्द, हाईकोर्ट 3 माह में नए सिरे से विचार करे: सुप्रीम कोर्ट - Sabguru News
होम Breaking आशीष मिश्रा की जमानत रद्द, हाईकोर्ट 3 माह में नए सिरे से विचार करे: सुप्रीम कोर्ट

आशीष मिश्रा की जमानत रद्द, हाईकोर्ट 3 माह में नए सिरे से विचार करे: सुप्रीम कोर्ट

0
आशीष मिश्रा की जमानत रद्द, हाईकोर्ट 3 माह में नए सिरे से विचार करे: सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा के पुत्र एवं लखीमपुर खीरी हिंसा मामले के मुख्य आरोपी आशीष मिश्रा को इलाहाबाद उच्च न्यायालय से मिली जमानत को सोमवार को रद्द करते हुए उसे एक सप्ताह के भीतर आत्मसमर्पण करने का आदेश दिया हैं।

मुख्य न्यायाधीश एनवी रमन, न्यायमूर्ति सूर्य कांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने आशीष की जमानत रद्द करने तथा उसे आत्मसमर्पण करने का आदेश देने के साथ ही इलाहाबाद उच्च न्यायालय से तीन महीने के भीतर आशीष को जमानत दी जानी चाहिए या नहीं इस पर नए सिरे से विचार करने को कहा हैं।

पीठ ने जमानत रद्द करने का आदेश पारित करते हुए कहा कि उच्च न्यायालय ने कई अप्रासंगिक तथ्यों पर विचार किया और जल्दबाजी में अपना फैसला लिया। पीड़ितों को प्रथम दृष्टया आरोपी की जमानत याचिका का विरोध करने के लिए पर्याप्त समय दिए बिना ही आदेश पारित कर दिया।

शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा कि उच्च न्यायालय ने कई ‘अप्रासंगिक कारकों’ पर विचार करते हुए ‘अदूरदर्शी दृष्टिकोण’ अपनाया, जमानत के मापदंडों पर न्यायिक मिसालों की अनदेखी की और जमानत के लिए आदेश पारित करने में जल्दबाजी।

शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय से कहा कि तीन महीने के भीतर ‘निष्पक्ष तरीके से’ इस मामले पर नए सिरे से विचार करें, ताकि अभियुक्तों की जमानत और पीड़ितों के प्रतिस्पर्धी अधिकारों तथा इसका विरोध करने के राज्य के अधिकार को संतुलित किया जा सके।

पीठ की ओर से फैसला सुनाने वाले न्यायमूर्ति कांत ने उच्च न्यायालय द्वारा जमानत के मामले को निपटाने तरीके पर निराशा व्यक्त की। पीठ ने कहा कि शीर्ष अदालत ने पहले भी कहा था कि प्राथमिकी को घटनाओं का ‘सब कुछ’ नहीं माना जा सकता है।

पीठ ने कहा कि प्राथमिकी में आरोप है कि आरोपी ने अपनी बन्दूक का इस्तेमाल किया और बाद में पोस्टमॉर्टम और चोट की रिपोर्ट (कोई गोली की चोट नहीं दिखा) का कुछ सीमित असर हो सकता है, उच्च न्यायालय द्वारा उसी को अनुचित महत्व देने की कोई कानूनी आवश्यकता नहीं थी। पीठ ने संबंधित पक्षों की दलीलें सुनने के बाद चार अप्रैल को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में तीन अक्टूबर को उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के एक कार्यक्रम का विरोध करने के दौरान हिंसक घटनाएं हुई थी। इस हिंसा में केंद्र के तत्कालीन तीन कृषि कानूनों (अब रद्द कर दिए गए) के खिलाफ लंबे समय से आंदोलन कर रहे चार किसानों समेत आठ लोगों की मौत हो गई थी। मामले के मुख्य आरोपी आशीष को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 10 फरवरी को जमानत दी थी। पुलिस ने आशीष को नौ अक्टूबर को गिरफ्तार किया था।

जमानत के खिलाफ मृतक किसानों के परिजनों एवं अन्य ने शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था। जमानत रद्द करने की मांग वाली उन याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान पीठ ने जमानत के ‘आधार’ पर कई सवाल खड़े किए थे।

शीर्ष अदालत द्वारा गठित विशेष जांच दल (एसआईटी) ने उत्तर प्रदेश सरकार को आशीष की जमानत के खिलाफ अपील करने की सिफारिश की थी, लेकिन सरकार ने उसे नजरअंदाज कर दिया था। एसआईटी ने 30 मार्च को उच्चतम न्यायालय को बताया कि उसने मुख्य आरोपी की जमानत के खिलाफ अपील दायर करने के संबंध में प्रदेश सरकार से सिफारिश की थी।

मुख्य आरोपी आशीष की जमानत का विरोध कर रहे याचिकाकर्ताओं ने गवाहों को धमकाने तथा सबूतों से छेड़छाड़ की आशंका के भी आरोप लगाए थे हालांकि, राज्य सरकार का पक्ष रख रहे वकील महेश जेठमलानी ने पीठ के समक्ष दलील देते हुए कहा था कि मामले से संबंधित गवाहों को पूरी सुरक्षा प्रदान की जा रही है। किसी को कोई खतरा नहीं है।

उन्होंने शीर्ष अदालत को बताया था कि एसआईटी ने गवाहों पर खतरे की आशंका के कारण आशीष की जमानत के खिलाफ अपील दायर करने की सिफारिश की थी, लेकिन राज्य सरकार ने सभी गवाहों को पुलिस सुरक्षा प्रदान करने का दावा करते हुए एसआईटी के विचार से अपनी असहमति व्यक्त की थी।

जमानत का विरोध कर रहे कुछ याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे ने गवाहों को धमकी दिए जाने के मुद्दे को जोरशोर से पीठ के समक्ष उठाया था। उन्होंने कहा कि एक गवाह को भारतीय जनता पार्टी के उत्तर प्रदेश में सत्ता में लौटने का जिक्र करते हुए धमकी दी गई थी। दवे ने पीठ के समक्ष उक्त गवाह की शिकायत पढ़ते हुए कहा था, अब बीजेपी सत्ता में है। देखना तेरा क्या हाल करता हूं। उन्होंने सवाल किया कि क्या इस तरह की धमकी गंभीर मामला नहीं है?

किसानों के परिजनों से कुछ दिन पहले अधिवक्ता सीएस पांडा और शिव कुमार त्रिपाठी ने भी जमानत के खिलाफ सर्वोच्च अदालत में विशेष अनुमति याचिका दायर की थी। इन वकीलों की याचिका पर ही शीर्ष न्यायालय ने मामले की जांच के लिए पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति राकेश कुमार जैन के नेतृत्व में एसआईटी गठित की थी।

कथित रूप से कार से कुचलकर चारा किसानों की मृत्यु होने के बाद भड़की हिंसा में दो भाजपा कार्यकर्ताओं के अलावा एक अन्य कार चालक एवं एक पत्रकार की मृत्यु हो गई थी।

किसानों की ओर से दायर याचिका में आरोप लगाये गये हैं कि उत्तर प्रदेश में उसी पार्टी की सरकार है, जिस पार्टी की सरकार में आरोपी आशीष के पिता केंद्र में राज्य मंत्री हैं। शायद इसी वजह से प्रदेश सरकार ने जमानत के खिलाफ शीर्ष अदालत में याचिका दायर नहीं की थी।

केंद्रीय राज्य मंत्री के पुत्र आशीष की जमानत को चुनौती देने वाली याचिकाओं के जवाब में उत्तर प्रदेश सरकार ने उच्चतम न्यायालय में हलफनामा दाखिल कर कहा था कि जमानत का प्रभावी ढंग से विरोध नहीं करने के उस पर लगाए गए आरोप पूरी तरह से गलत एवं असत्य हैं। सरकार ने कहा था कि उच्च न्यायालय द्वारा आशीष को जमानत देने के आदेश को चुनौती देने का निर्णय संबंधित अधिकारियों के समक्ष विचाराधीन है।

गवाहों को सुरक्षा प्रदान करने के शीर्ष अदालत के आदेश पर सरकार ने कहा था कि उसने घटना से संबंधित 98 गवाहों को सुरक्षा प्रदान की जा रही है। सभी की सुरक्षा का जायजा नियमित रूप से लिया जाता है। टेलीफोन के माध्यम से पुलिस ने उनसे बातचीत की थी। गवाहों ने 20 मार्च को अपनी सुरक्षा पर संतोष व्यक्त किया था।