जोधपुर। वायु सेना के लड़ाकू बेड़े की शान रहे ‘बहादुर’ मिग-27 विमानों ने आज यहां आकाश में आखिरी उडान भरी और गर्जन करते हुए विदा ली।
करीब चार दशक तक वायु सेना के विभिन्न अभियानों और विशेष रूप से कारगिल की लड़ाई में अचूक बमबारी से दुश्मन के छक्के छुड़ाने वाले मिग-27 लड़ाकू विमान शुक्रवार को वायु सेना से विदा हो गये। कारगिल की लड़ाई में दुश्मन के दांत खट्टे करने के लिए इस विमान को ‘बहादुर ’ नाम दिया गया था। मिग-27 विमानों के अंतिम स्कवाड्रन स्कोर्पियन 29 के सभी सात विमान अब कभी उडान नहीं भरेंगे। मिग-27 विमानों ने इस मौके पर तीर के आकार में उडान भरी और उनके दोनों ओर सम्मान में सुखोई -30 विमान भी उड रहे थे। आकाश गंगा टीम ने भी अपने हैरतअंगेज करतब दिखाये।
इन विमानों के दो स्कवाड्रनों को पहले ही वायु सेना से विदा किया जा चुका है। इस स्कवाड्रन को आगामी 31 मार्च को नम्बर प्लेट किया जायेगा जिसका मतलब है कि यह स्कवाड्रन सस्पेंड हो जायेगा।
वायु सेना की दक्षिणी कमान के प्रमुख एयर मार्शल एस के घोटिया तथा अनेक वरिष्ठ अधिकारी इस ऐतिहासिक क्षण के गवाह बनें। मिग विमानों के अन्य संस्करण मिग-23 बाइसन, और मिग-23 एमएफ और मिग-27 के पुराने संस्करण पहले ही वायु सेना से विदा हो चुके हैं। इस स्कवाड्रन के विमानों की विदायी के बाद वायु सेना के स्कवाड्रनों की संख्या 28 रह गयी है जबकि इनकी स्वीकृत संख्या 42 स्कवाड्रन है।
मिग-27 विमानों को अंतिम बार 2006 में अपग्रेड कर उन्नत बनाया गया था इसके बाद से ये विमान विभिन्न अभियानों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे थे। मिग विमानों ने शांति और युद्ध के समय भी देश की बढ चढ कर सेवा की है।
मिग-27 विमानों ने कारगिल की लड़ाई में दुश्मन के ठिकानों पर राकेटों और बमों से अचूक निशानेबाजी कर अपना लौहा मनवाया था। इन विमानों ने आपरेशन पराक्रम के समय भी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। मिग-27 के उन्नत संस्करण ने अनेक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय अभ्यासों में भी हिस्सा लिया था।
मिग 27 एक इंजन वाला और एक सीट का विमान है जो 1700 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से उडान भरने में सक्षम है। विमान 23 एमएम की 6 बैरल वाली तोप तथा 4 हजार किलोग्राम हथियार लेने जाने में सक्षम है। इन विमानों को 1982 में वायु सेना के बेड़े में शामिल किया गया था।