प्रयागराज। अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रहे महंत नरेंद्र गिरि के वकील ऋषि शंकर द्विवेदी ने दावा किया है कि दिवंगत महंत ने अपने मठ की अंतिम वसीयत बलवीर गिरि के नाम लिखी थी।
द्विवेदी ने बताया कि महंत नरेंद्र गिरि की तरफ से तीन वसीयतें लिखी गई थीं। आखिरी वसीयत 4 जून, 2020 को बलवीर गिरि के नाम लिखी गई थी और वही मान्य है।
उन्होंने बताया कि महंत नरेंद्र गिरि ने सबसे पहले 7 जनवरी 2010 को बलवीर गिरि के नाम वसीयत की थी जिसे बाद में निरस्त कर दिया था। इसके बाद महंत जी ने 29 अगस्त 2011 को आनंद गिरि के नाम वसीयत की। आनंद गिरि भी जब स्वछंदता से काम करने लगे, मठ के हित के खिलाफ काम करने लगे तो महंत जी ने 4 जून 2020 को अपनी अंतिम वसीयत की जिसमें उन्होंने बलवीर गिरि को अपना एकमात्र उत्तराधिकारी बनाया।
उत्तराधिकारी के निर्णय में अखाड़ा की भूमिका पर उन्होंने कहा कि बाघंबरी गद्दी का इतिहास और मठ के संविधान के मुताबिक, वसीयत से बनने वाला उत्तराधिकारी ही मान्य होगा। महंत जी के पास मूल कागजात थे और बाकी मेरे पास जो हैं, उसे मैं उपलब्ध करा सकता हूं।
उन्होंने बताया कि इस मठ में जो व्यक्ति उत्तराधिकारी होता है, उसे स्वामित्व का अधिकार होता है। उसे जमीन सहित अन्य चीजें खरीदने बेचने का अधिकार होता है।
गौरतलब है कि गत सोमवार को अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि अपने श्रीमठ बाघंबरी गद्दी में अपने कमरे में मृत पाए गए थे। पुलिस के मुताबिक उन्होंने कथित तौर पर फांसी लगाई थी। घटनास्थल पर मिले कथित सुसाइड नोट में बलवीर गिरि को मठ का उत्तराधिकारी घोषित किया गया है।