उन्होंने कहा कि समाज के कुछ नियम हैं। इनको पालने की सबको बाध्यता है। लेकिन, ये नियम पुरुष-स्त्रि के लिए समान नहीं है। साहित्य ऐेसी संवेदनाओं को दर्शित करता है। उन्होंने कहा कि जो समाज ऊपर से एक समान दिखता है वो असल में मल्टीलेयर होता है। इसमें लिंग, जाति, संप्रदाय, धन आदि पर कई विभेद होते हैं। इसी के आधार पर शोषण और अन्याय को चित्रित करने का काम साहित्य करता है।
उन्होंने कहा कि प्रेमचंद और दिनकर हिन्दी जगत में इसलिए याद नहीं किए जाते कि उन्होंने अच्छा लिखा बल्कि इसलिए जाने जाते हैं कि उन्होंने तत्कालीन सत्ता के शोषण के शिकार लोगों के पक्ष में सत्ता की गलत नीतियों के खिलाफ लिखा है। साहित्य हमेशा सामाजिक कुरीति और अव्यवस्था की पोषण करने वाली सत्ता के खिलाफ खड़ा होता है। उन्होंने कई उदाहरणों के माध्यम से ये समझाने की कोशिश की कि साहित्य के माध्यम से समाज को तर्कशील बनाकर विकसित संस्कृति की विरासत पाई जा सकती है।
सिरोही विधायक संयम लोढ़ा ने कहा कि हम पर पर बहुत लोगों ने शासन किया। लेकिन, उस सारे दौर में भी लोग दीया बनकर जलते रहे। जब देश में मुगलों को शासन था तो ऐसा माहौल बनाया गया था कि कमजोर लोग धर्म परिवर्तन करें। लेकिन, उसी काल में तुलसीदास ने रामचरित्र मानस लिखी। कबीर दास जी ने मुगलों के काल में लिखा कि ‘कांकर पाथर जोडक़र मस्जिद लई बनाय…’ तो सिंधिया काल में लिखा कि ‘पत्थर पूजे हरि मिले…’। उस समय भी सहित्यकार सत्ता से बेखौफ होकर समाज में बदलाव करके बेहतर सांस्कृतिक विरासत देने का प्रयास करते रहे।
महाविद्यालय प्रार्चाय नवनीतकुमार अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि साहित्य की कालजयी रचनाओं की बात करते हैं तो प्रत्यक्ष उदाहरण रामायण और महाभारत हैं। भारतीय उपमहाद्वीप पर पैदा हुआ किसी भी जाति, धर्म और युग का व्यक्ति यह दावा नहीं कर सकता है इन दोनों साहित्यों ने उनके जीवन पर प्रभाव नहीं डाला है।
उन्होंने कहा कि प्रेमचंद ने साहित्य को मशाल कहा है। जो समाज का मार्गदर्शन करके सहअस्तित्व की संस्कृति को पोषित करती है। उन्होंने कहा कि अच्छा साहित्य समाज का मार्गदर्शक होता है। वह आपको समाज के उन पहलूओं की ओर ले जाता है जिन पर आपकी नजर नहीं जाती।
राजकीय महाविद्यालय आबूरोड के सह आचार्य डॉ दिनेश चारण ने पूर्व वक्ताओं के द्वारा साहित्य से ज्यादा टीवी मीडिया के समाज पर पडऩे वाले प्रभाव और उससे प्रदूषित होती संस्कृति पर विचार रखे। उन्होंने कहा कि बाजार हमारे समाज की दिनचर्या और जीवनशैली तय करने लगा है और जब बाजार आपकी जीवनशैली तय करता है तो ये मानकर चलना होगा कि हमारी संवेदनाएं खत्म हो चुकी हैं। उन्होंने इसलिए कहा कि यदि किसी को भारत को समझना है तो उसे मैला आंचल और प्रेमचंद को पढऩा होगा।