अयोध्या। पौराणिक त्रेतायुग में इक्ष्वाकु वंश की राजधानी रही अयोध्या में भगवान श्री रामचंद्र की जन्मभूमि पर अधिकार को लेकर करीब पांच शताब्दियों के कड़े संघर्ष के बाद आज शांतिपूर्ण ढंग से नए भव्य मंदिर का निर्माण औपचारिक रूप से आरंभ हो गया।
टेलीविजन के कैमरे के माध्यम से साक्षी बने देश-विदेश के करोड़ों लोगों की भावनाओं के ज्वार के बीच प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मंदिर की नींव में चांदी की आधारशिला रखी। मोदी देश के पहले प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने अयोध्या में रामलला के दर्शन किए। न केवल भारत बल्कि अनेक देशों में रहने वाले प्रवासी भारतीय समुदाय के लोगों ने मोबाइल स्क्रीन, टीवी एवं कम्प्यूटर स्क्रीन पर इस कार्यक्रम को देखा और अपने-अपने घरों में दीये जला कर श्रद्धा प्रकट की।
इस मौकेे पर प्रधानमंत्री ने कहा कि राम जन्मभूमि आज मुक्त हुई है और आज पूरा भारत राममय हो गया है। ये मंदिर आने वाली पीढ़ियों को आस्था, श्रद्धा, और संकल्प की प्रेरणा देता रहेगा। राम मंदिर तीर्थ क्षेत्र न्यास द्वारा आयोजित इस भूूमिपूजन कार्यक्रम में शामिल होने के लिए प्रधानमंत्री मोदी वायुसेना के विमान से लखनऊ पहुंचे और वहां से हेलीकॉप्टर द्वारा अयोध्या पहुंचे। राज्यपाल आनंदीबेन पटेल और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ एवं न्यास के पदाधिकारियों ने उनका स्वागत किया।
सुनहरे रंग के कुर्ते, भगवा अंगवस्त्र और सफेद धोती पहने बढ़ी हुई दाढ़ी एवं बालों में श्री मोदी राजनेता कम एक संत अधिक नजर आ रहे थे। वह सबसे पहले हनुमानगढ़ी पहुंचे और अयोध्या के सेनापति से भगवान के मंदिर के निर्माण की आज्ञा मांगी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ हनुमान जी के दर्शन-पूजन के बाद वहां के मुख्य पुजारी ने मोदी को आशीर्वाद स्वरूप चांदी का मुकुट पहनाया।
उसके बाद मोदी श्रीराम जन्मभूमि परिसर में पहुंचे और वहां उनका स्वागत न्यास के सदस्य एवं प्रधानमंत्री के पूर्व प्रधान सचिव नृपेन्द्र मिश्र ने की। प्रधानमंत्री सबसे पहले अस्थायी मंदिर में विराजित रामलला के दर्शन के लिए गए। वह दोनों हाथ ऊपर करके ज़मीन पर लेट गए और रामलला को साष्टांग प्रणाम किया। रामलला की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया और पूर्ण भक्तिभाव से आरती की। उसके बाद मोदी ने वहां भगवान विष्णु के प्रिय पारिजात वृक्ष की एक शाखा का रोपण किया।
मध्याह्न करीब 12 बज कर सात मिनट पर प्रधानमंत्री भूमिपूजन स्थल पहुंचे। श्री रामजन्म भूमि के गर्भगृह वाले स्थान पर करीब 40 मिनट तक चले अनुष्ठान के बाद मोदी ने 12 बजकर 44 मिनट 32 सेकेंड पर गर्भगृह में खोदे गए एक गड्ढे में रखी गई चांदी की मुख्य कूर्मशिला पर मंत्रोच्चार के बीच गंध, अक्षत एवं पुष्प अर्पण किए। करीब 22 किलोग्राम 600 ग्राम वजन की मुख्य शिला के साथ ही पत्थर की आठ उपशिलाएं भी नींव में रखीं गईं थी। इस मौके पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत, राज्यपाल श्रीमती पटेल, मुख्यमंत्री तथा अयोध्या के पूर्व राजा एवं न्यास के सदस्य डाॅ. अनिल मिश्रा सपत्नीक विराजमान थे।
भूमिपूजन के पश्चात अपने साथ लाए गए सोने का एक छोटा कलश भी प्रधानमंत्री ने नींव में अर्पित किया। डॉ भागवत और आनंदी पटेल ने भी नींव में अपने साथ लाए उपहार अर्पित किए। भूमिपूजन के अनुष्ठान में मोदी ने राष्ट्रवासियों के प्रतिनिधि के रूप में यजमान बन कर शिरकत की। न्यास के प्रमुख महंत नृत्यगोपाल दास, कोषाध्यक्ष गोविंददेव गिरि महाराज एवं महामंत्री चंपत राय भी मौजूद थे।
इस कार्यक्रम में कोरोना महामारी के कारण बहुत कम लोगों को निमंत्रित किया गया था। अधिक आयु एवं संक्रमण के खतरे के मद्देनज़र रामजन्मभूमि आंदोलन के नायक पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी, पूर्व भाजपा अध्यक्ष डॉ. मुरलीमनोहर जोशी, उच्चतम न्यायालय में श्रीराम जन्मभूमि का मुकदमा लड़ने वाले जाने माने वकील के परासरण से नहीं आने का आग्रह किया था।
अगली कतार में साध्वी ऋतंभरा और साध्वी उमा भारती चेहरे खुशी से दमक रहे थे। इन दोनों ने 1990 के दशक में अपने ओजस्वी भाषणों से आंदोलन को धार दी थी। आचार्य धर्मेन्द्र, स्वामी रामदेव, परमार्थ निकेतन के मुनि स्वामी चिदानंद सरस्वती, आचार्य परिषद के प्रमुख जूना अखाड़ा पीठाधीश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरी, स्वामी परमानंद जी महाराज, अखिल भारतीय संत समिति के महामंत्री स्वामी जितेन्द्रानंद सरस्वती आदि भी उपस्थित थे।
भूमिपूजन के पश्चात प्रधानमंत्री, राज्यपाल, मुख्यमंत्री, सरसंघचालक डॉ भागवत और न्यास के प्रमुख महंत नृत्यगोपाल दास जी मंच पर पहुंचे जहां मोदी ने राम मंदिर की प्रतिकृति पर आधारित पांच रुपए मूल्य का डाक टिकट जारी किया। मोदी ने राम मंदिर निर्माण के लिए आधारशिला की पट्टिका का अनावरण किया जबकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उन्हें कर्नाटक से भेजी गई लकड़ी से निर्मित कोदंड राम की एक प्रतिमा भेंट की।
मोदी ने अपने संबोधन में कहा कि वह खुद को सौभाग्यशाली समझते हैं कि श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने इतने बड़े कार्य और राम मंदिर के शुभ भूमि पूजन के लिए उन्हें चुना। करोड़ों लोगों को इस बात का विश्वास ही नहीं हो रहा होगा कि वे अपने जीते-जी इस कार्य को शुरू होते हुए देख रहे हैं। उन्होंने कहा कि राम जन्मभूमि आज मुक्त हुई है और आज पूरा भारत राममय हो गया है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि बरसों तक रामलला टेंट में रहे थे, लेकिन अब भव्य मंदिर बनेगा। उन्होंने कहा कि गुलामी के कालखंड में आजादी के लिए आंदोलन चला है, 15 अगस्त का दिन उस आंदोलन का और शहीदों की भावनाओं का प्रतीक है। ठीक उसी तरह राम मंदिर के लिए कई-कई सदियों तक पीढ़ियों ने प्रयास किया है, आज का ये दिन उसी तप-संकल्प का प्रतीक है। राम मंदिर के चले आंदोलन में अर्पण-तर्पण,संघर्ष-संकल्प था।
उन्होंने कहा कि श्रीराम का मंदिर हमारी संस्कृति का आधुनिक प्रतीक बनेगा, हमारी शाश्वत आस्था का प्रतीक बनेगा, हमारी राष्ट्रीय भावना का प्रतीक बनेगा और ये मंदिर करोड़ों-करोड़ लोगों की सामूहिक संकल्प शक्ति का भी प्रतीक बनेगा। ये मंदिर आने वाली पीढ़ियों को आस्था, श्रद्धा, और संकल्प की प्रेरणा देता रहेगा।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक ने कहा कि पूरे देश में आनंद की लहर है। सदियों की आस पूरी होने का आनंद है लेकिन सबसे बडा आनंद है, भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए जिस आत्मविश्वास और जिस आत्मभान की आवश्यकता थी, उसका सगुण-साकार अधिष्ठान बनने का शुभारंभ आज हो रहा है।
उन्होंने कहा कि प्रभु श्रीराम जिस धर्म के विग्रह माने जाते हैं, वह जोड़ने वाला, धारण करने वाला, ऊपर उठाने वाला, सबकी उन्नति करने वाला धर्म, सबको अपना मानने वाला धर्म, उसकी ध्वजा को अपने कंधे पर लेकर संपूर्ण विश्व को सुख-शांति देने वाला भारत हम खड़ा कर सकें, इसलिए हमको अपने मन की अयोध्या बनाना है। यहां पर जैसे-जैसे मंदिर बनेगा, हमारे मन में वह अयोध्या भी बनती चली जानी चाहिए और इस मंदिर के पूर्ण होने पहले हमारा मन मंदिर बनकर तैयार रहना चाहिए।
डॉ. भागवत ने कहा कि हमारा हृदय भी राम का बसेरा होना चाहिए इसलिए सभी दोषों, विकारों, द्वेषों, शत्रुता से मुक्त, दुनिया की माया कैसी भी हो उसमें सब प्रकार के व्यवहार करने के लिए समर्थ और हृदय से सब प्रकार के भेदों को तिलांजलि देकर, केवल अपने देशवासी ही नहीं बल्कि संपूर्ण जगत को अपनाने की क्षमता रखने वाले व्यक्ति एवं समाज को गढ़ने के काम का एक सगुण साकार प्रतीक होगा, जो सदैव प्रेरणा देता रहेगा।
आज से 492 वर्ष पूर्व मुगल आक्रमणकारी बाबर के सेनापति मीर बकी ने अयोध्या पर हमला करके असंख्य मंदिरों के साथ ही श्रीरामजन्म भूमि पर निर्मित मंदिर को ध्वस्त कर दिया था और मंदिर के अवशेषों से मस्जिद का निर्माण किया था जिसे बाबरी मस्जिद कहा गया। तब से ही हिन्दुओं ने श्रीराम जन्मभूमि को मुक्त कराने के लिए संघर्ष आरंभ कर दिया था। मस्जिद बनाए जाने के बाद हिन्दू समाज ने अपना दावा नहीं छोड़ा और उस स्थान पर पूजा चलती रही।
विश्व हिन्दू परिषद के अनुसार इन पांच सदियों में लाखाें हिन्दुओं ने इसके लिए प्राणोत्सर्ग किया था। 19 वीं सदी में हिन्दू एवं मुस्लिम समुदाय के लोग परस्पर सहमति से इस विवाद को समाप्त करने के करीब पहुंच गये थे लेकिन अंग्रेज़ों ने इस विवाद को सुलझने नहीं दिया।
आजादी के बाद सांप्रदायिकता की राजनीति के कारण मामले का समाधान नहीं हो पाया। श्रद्धेय संत देवराहा बाबा की पहल पर 1983-84 में जब इस आंदोलन ने जोर पकड़ा तो 1986 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी एवं मुख्यमंत्री वीरबहादुर सिंह की पहल पर राम जन्मभूमि पर 1947 से लगा ताला खोला गया।
उस वक्त कांग्रेस के नेता दाऊदयाल खन्ना एवं अन्य कांग्रेस के नेता आगे रहे लेकिन बाद में भाजपा ने इसे खुला समर्थन देने का ऐलान किया और इसके बाद आंदोलन ने जोर पकड़ लिया। जनता के भारी दबाव में 10 नवंबर 1989 में मंदिर का शिलान्यास किया गया। भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने 1990 में सोमनाथ से अयोध्या तक रथयात्रा निकाली जिससे राममंदिर आंदोलन को बल मिला और भाजपा का राजनीतिक जनाधार भी बढ़ा।
राम मंदिर आंदोलन को सत्ता द्वारा दबाने के प्रयास किए गए। रामभक्तों पर गोलियां भी चलाई गईं जिससे हिन्दुओं में गुस्सा भर गया और उसी गुस्से एवं प्रतिशोध की भावना के कारण छह दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद का विवादित ढांचा गिरा दिया गया।
उक्त स्थान पर मंदिर होने का प्रमाण खोजने के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग से एक सर्वेक्षण भी कराया गया जिसमें भूगर्भ से मंदिर होने के अनेक प्रमाण सामने आए। मुस्लिम समाज के मस्जिद पर दावे के लिए बनी बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी ने उसे मानने से इन्कार कर दिया। बातचीत से रास्ता निकलने की संभावना नहीं बनने पर मामला अदालत में चला गया।
2010 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने मान लिया कि विवादित स्थान पर पहले एक मंदिर था तथा उस भूमि के तीन भाग करके दो भाग हिन्दुओं को और एक भाग मुसलमानों को संतुष्ट करने के लिए देने का आदेश दिया। इस निर्णय को हिन्दुओं ने उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी और अनेक वर्षों तक उच्चतम न्यायालय में इसकी सुनवाई नहीं हो सकी।
गत वर्ष अगस्त से उच्चतम न्यायालय में लगातार सुनवाई चली और नवंबर में फैसला आया जिसमें विवादित भूमि पर हिन्दुओं का अधिकार माना गया और मुस्लिम समाज को पंचकोशी परिक्रमा के बाहर अयोध्या में पांच एकड़ भूमि मस्जिद बनाने के लिए देने का आदेश दिया। न्यायालय ने केन्द्र सरकार को मंदिर निर्माण के लिए तीन माह के भीतर एक न्यास गठित करने का भी आदेश दिया था।
केन्द्र सरकार ने फरवरी में श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र न्यास का गठन किया और मणिराम छावनी के महंत नृत्यगोपाल दास को अध्यक्ष एवं विहिप के उपाध्यक्ष चंपत राय का महामंत्री नियुक्त किया। इसी के साथ केन्द्र सरकार ने न्यास को 1992 में अधिगृहीत की गई 67 एकड़ भूमि मंदिर निर्माण के लिए सौंप दी।
न्यास ने मंदिर निर्माण को गति देने के लिए रामलला को टेंट से निकाल कर एक अस्थायी मंदिर में प्रतिष्ठित किया और गर्भगृह सहित संपूर्ण भू-भाग पर मंदिर निर्माण की तैयारी शुरू कर दी। भूमिपूजन का कार्यक्रम प्रारंभ में 29 अप्रैल का तय हुआ था लेकिन कोरोना संक्रमण के कारण विलंब हुआ।