अजमेर। 17वीं लोकसभा के लिए राजस्थान के ऐतिहासिक अजमेर संसदीय लोकसभा सीट के लिए मतदाता इस बार अपना 19वां सांसद चुनेगी। इस बार अजमेर जिले की आठ विधानसभा क्षेत्रों के 18 लाख 62 हजार 158 मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग कर सकेंगे। इनमें नये एवं नवयुवा मतदाता भी शामिल हैं।
जिले की आठ विधानसभा क्षेत्रों अजमेर उत्तर, अजमेर दक्षिण, पुष्कर, केकड़ी, नसीराबाद, मसूदा, किशनगढ़ और दूदू में जिला निर्वाचन विभाग की ओर से मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए स्वीप कार्यक्रम के तहत तेजी से प्रयास किये जा रहे हैं। निर्वाचन विभाग के निर्देश पर ज्यादा से ज्यादा मतदाताओं के जरिए मतदान कराए जाने के प्रयास तेज किए गए हैं।
दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों भाजपा और कांग्रेस ने भी चुनावी तैयारियां तेज कर दी हैं। कांग्रेस ने अब तक अपना उम्मीदवार घोषित नहीं किया है, वहीं भाजपा ने जातीय समीकरण के तहत किशनगढ़ से दो बार विधायक रहे चुके भागीरथ चौधरी पर अपना दांव खेला है।
भाजपा को उम्मीद है कि भाजपा के विभिन्न जातियों के प्रतिबद्ध मतों के अलावा वह सजातीय मतदाताओं के जरिए फतह हासिल कर लेंगे। यही कारण है कि भाजपा ने बीते कल अजमेर संसदीय सीट के दूदू विधानसभा क्षेत्र में विजय संकल्प सभा कर चुनावी रणभेरी का बिगुल बजा दिया तो उम्मीदवार भागीरथ चौधरी ने सोमवार को तीर्थनगरी पुष्कर से पवित्र पुष्कर सरोवर की पूजा अर्चना कर तथा जगतपिता ब्रह्मा के दर्शन कर चुनाव प्रचार का आगाज कर दिया।
उधर, कांग्रेस को अभी अपना उम्मीदवार तय करना है, लेकिन भाजपा के उम्मीदवार घोषित कर दिए जाने के बाद कांग्रेस को आला नेताओं के नामों पर पुनर्विचार करना पड़ रहा है। जिले में जातिगत मतदाताओं का आंकलन करें तो करीब ढाई लाख जाट, दो लाख ब्राह्मण, पौने दो लाख लाख गुर्जर, सवा दो लाख मुसलमान, एक लाख वैश्य, एक लाख रावत, एक लाख सिंधी, एक लाख माली, सवा दो लाख अनुसूचित जाति जनजाति के अलावा अहीर, यादव, कुमावत, दर्जी, सिख, लोधी, रेवारी, चारण, नाई, सुनार, तेली, कलाल, लखेरा सहित अन्य जातियों की मतों में हिस्सेदारी है।
यदि कांग्रेस जातीय समीकरण बिठाती है तो अजमेर डेयरी के सदर रामचंद्र चौधरी का नाम सबसे ऊपर रहता है। यदि वह वैश्य समुदाय को भुनाने का सोचती हैं तो पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती तथा भीलवाड़ा के उद्योगपति रिजु झुंझूनूवाला के नाम तेजी से लिए जा रहे है। हालांकि फैसला आलाकमान को करना है। बावजूद इसके कांग्रेस हो अथवा भाजपा उनके प्रतिबद्ध वोट तो उन्हें ही मिलने हैं।
जिले में जहां तक जनता की समस्याओं का सवाल है सभी विधानसभा क्षेत्रों में कमोबेश आधारभूत समस्याएं हैं। जनसंख्या बढ़ने के साथ ही समस्याएं भी तेजी से बड़ रही हैं। बिजली, पानी, सड़क, यातायात, चिकित्सा एवं राशन जैसे मुद्दे प्रमुखता से हैं।
अजमेर शहर में स्मार्ट सिटी योजना का काम भी मूर्तरूप नहीं ले पा रहा है। अजमेर सदैव राजनीतिक दृष्टि से ‘ लावारिस ‘ रहा है जो अजमेर कभी स्वतंत्र राज्य के रूप में अवस्थित रहा लेकिन उसका विकास उस स्तर पर नहीं हो पाया जितना राजस्थान के अन्य जिलों में हुआ है। मतदाताओं की यह टीस हर चुनाव में उभरकर सामने आती है।
अजमेर के चुनावी इतिहास पर नजर डालें तो नौ अगस्त 2017 को अजमेर के सांसद प्रो. सांवरलाल जाट के निधन के बाद 29 जनवरी 2018 को उपचुनाव कराए गए जिसमें कांग्रेस के डॉ. रघु शर्मा 18वें सांसद के रूप में निर्वाचित हुए। उन्होंने भाजपा के रामस्वरूप लांबा को 84 हजार 414 मतों से शिकस्त दी थी। तब जिले में मतदान का प्रतिशत 65.59 दर्ज किया गया था।
अजमेर लोकसभा के 1952 में हुए प्रथम चुनाव में अजमेर शहर के उत्तर से ज्वालाप्रसाद तथा दक्षिण से मुकुट बिहारीलाल भार्गव निर्वाचित हुए। 1957 एवं 1962 में मुकुट बिहारीलाल भार्गव चुने गए। वर्ष 1967 एवं 1971 में विश्वेश्वरनाथ भार्गव चुनाव जीते और कांग्रेस का परचम लहराते रहे। लेकिन, 1977 में भारतीय लोक दल से श्रीकरण शारदा ने कांग्रेस को शिकस्त देकर सीट कब्जाली।
वर्ष 1980 में आचार्य भगवानदेव तथा 1984 में विष्णु मोदी ने कांग्रेस की प्रतिष्ठा बचाई। उसके बाद 1989, 1991 और 1996 में लगातार रासा सिंह रावत ने भाजपा को जीत दिलाई। वर्ष 1998 में डॉ. प्रभा ठाकुर ने कांग्रेस को फिर संसद में पहुंचाया। लेकिन 1999 और 2004 में रासा सिंह रावत ने भाजपा का एकबार फिर कब्जा करा दिया।
2009 में सचिन पायलट सांसद बने। 2014 में प्रो. सांवरलाल जाट भाजपा से चुने गए। उनके निधन के बाद 2098 में हुए उपचुनाव में कांग्रेस के डॉ. रघु शर्मा सांसद चुने गये1 इस बार फिर अजमेर के मतदाताओं को फिर से अपना नया सांसद चुनने का मौका मिलने जा रहा है।