सिरसा। हरियाणा के सिरसा स्थित डेरा सच्चा सौदा की लोकसभा चुनाव को लेकर चुप्पी साध लेने से उम्मीदवारों की चिंता बढ़ गई है। डेरा से कोई खुला फरमान जारी न होने से उम्मीदवार पसोपेश में पड़ गए हैं तथा पसीने छूट रहे हैं।
डेरा सच्चा सौदा का हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, राजस्थान तथा दिल्ली में अच्छा खासा वोट बैंक माना जाता है। डेरा सच्चा सौदा वर्ष 2007 से लोकसभा तथा विधानसभा चुनाव में मुखर होकर हिस्सेदारी ले रहा है। पिछले विधानसभा चुनाव में हरियाणा में भाजपा को खुलकर समर्थन दिया था। तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वयं सिरसा रैली में डेरा की प्रशंसा की थी।
वहीं डेरे से जुडें कुछ सूत्रों का मानना है कि डेरा मुखर होने की बजाय अंदरखाते मतदान की राय अपने अनुयायिओं तक पहुंचाएगा। डेरे की भितरघाती किसी भी प्रत्याशी की जीत हार के निर्णय को प्रभावित करेगा।
साध्वी यौन शौषण मामले में डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम के जेल चले जाने के बाद यह पहला चुनाव है जिसमें डेरा मतदान को लेकर पसोपेश की स्थिति में है।
डेरा प्रमुख के खिलाफ अभी डेरा के पूर्व साधु रणजीत कोलियां मर्डर मामले की भी सीबीआई की विशेष अदालत में विचाराधीन है वहीं डेरा प्रमुख को साध्वी यौन शौषण मामले में सजा सुनाए जाने के समय पंचकुला, सिरसा सहित विभिन्न स्थलों पर भड़की हिंसा के बाद डेरा प्रबंधक मंडल के पदाधिकारियों के खिलाफ पंचकुला व सिरसा के थानों में दर्ज हुए मामलों की सुनवाई भी अब अदालतों में शुरू हो गई है। ऐसे में डेरा सच्चा सौदा सत्तारूढ़ दल से सीधे तौर पर कोई पंगा लेने के मूड में नहीं है।
वहीं दूसरी ओर पिछली 29 अप्रेल को डेरा के स्थापना दिवस पर डेरा ने सिरसा में एक बड़ी भीड़ जुटाकर अपने अनुयायिओं की नब्ज टटोलने का काम किया। काफी डेरा अनुयायिओं ने अपनी राय में डेरा प्रमुख को जेल भेजने में भूमिका अदा करने वाले दलों के साथ-साथ अन्य समय पर डेरा के लिए दिक्कत खड़ी करने वाले दलों से दूरी बनाने की बात कही।
मंच के माध्यम से रायशुमारी बाबत बताया भी गया। अबकी बार डेरा में उम्मीदवारों का जमावड़ा भी नहीं लगा, सिरसा से कांग्रेस प्रत्याशी अशोक तंवर व पटियाला से एक आजाद उम्मीदवार ने ही शिरकत की थी। जबकि दूसरे सियासी दलों ने डेरा से दूरी बनाए रखी।