जयपुर। राजस्थान की प्रतिष्ठित लोकसभा सीट जयपुर ग्रामीण पर इस बार दो ओलम्पिक खिलाड़ियों के मैदान मे उतरने से दोनों के बीच रोचक मुकाबला होने की संभावना है।
सूचना एवं प्रसारण राज्य मंत्री कर्नल राज्यवर्धन सिंह का राजनीतिक सफर पिछले चुनाव से करीब एक वर्ष पहले शुरू हुआ। ओलम्पिक में रजत पदक जीतकर प्रसिद्ध हुए 49 वर्षीय राठौड़ ने वर्ष 2013 में सेना से स्वैच्छिक सेवानिवृति ले ली और वह भाजपा में शामिल हो गए। खेल जगत में उनकी प्रतिष्ठा और लोकप्रियता को भुनाने के लिए भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें जयपुर ग्रामीण संसदीय क्षेत्र से अपना उम्मीदवार बनाया और इसमें पार्टी को कामयाबी भी मिल गई।
वर्ष 2014 में अपने पहले ही लोकसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी डा सीपी जोशी को तीन लाख तीन लाख 32 हजार 896 मतों के बड़े अन्तर से हराया। इससे कर्नल राज्यवर्द्धन को मंत्रिमंडल में स्थान मिल गया। इससे पहले वर्ष 2009 में इस सीट पर कांग्रेस के लाल चंद कटारिया ने भाजपा प्रत्याशी राव राजेन्द्र सिंह को 52 हजार 237 मतों हराया था।
राठौड़ की साफ छवि और खेल जगत में उनकी प्रतिष्ठा को देखते हुए उन्हें टक्कर देने के लिए कांग्रेस ने भी अपनी विधायक ओलम्पियन कृष्णा पूनिया को उनके मुकाबले में चुनाव मैदान में उतारा है। इससे पहले विधानसभा में श्रीमती पूनिया कांग्रेस चूरु जिले के सादुलपुर विधानसभा से कांग्रेस के टिकट पर विधायक चुनी गई थीं।
इस संसदीय क्षेत्र में मौजूदा स्थिति के अनुसार कांग्रेस बढ़त में है। वर्ष 2018 में हुये विधानसभा चुनाव की बात करें तो इस लोकसभा क्षेत्र की आठ सीटों में से पांच सीटें झोटवाड़ा, बानसूर, विराटनगर, जमवारामगढ़ और कोटपूतली कांग्रेस के कब्जे में हैं, जबकि आमेर और फूलेरा पर भाजपा के विधायक चुने गए हैं और एक सीट शाहपुरा में कांग्रेस समर्थित उम्मीदवार जीता है।
वर्ष 2014 में हुए लाेकसभा चुनाव के दौरान स्थिति ठीक इसके उलट थी, जब यहां की पांच सीटों पर भाजपा और दो सीटों पर कांग्रेस कायम थी। राज्य की 25 लोकसभा सीटों में से 13 पर पहले चरण में चुनाव हो चुके हैं जबकि दूसरे चरण में छह मई को जयपुर ग्रामीण सहित 12 सीटों के लिए मतदान होगा।
जयपुर के आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में फैली 19.33 लाख मतदाताओं की आबादी में से अधिकांश मतदाता कृषि कार्यों से जुड़े हैं। इनमें नौ लाख 22 हजार महिला मतदाता हैं। जातीय समीकरण के हिसाब से यह क्षेत्र जाट बाहुल कहा जा सकता है। इसके बाद ब्रह्मण, यादव और अनुसूचित जनजाति के मतदाताओं का नम्बर आता है।
किसी तरह की सत्ता विरोधी लहर के अभाव और राठौड़ की लोकप्रियता को देखते हुए उनके लिए यह मुकाबला काफी आसान माना जा रहा था लेकिन कांग्रेस द्वारा उनके खिलाफ जाट समाज की कृष्णा पूनिया को मैदान में उतारने से मुकाबला कड़ा हो गया है। इसी को देखते हुए चुनाव प्रचार की शुरुआत सबका साथ सबका विकास के नारे से करने वाले राठौड़ ने जातीय समीकरणों के मद्देनजर कहना शुरु कर दिया है कि मै एक सिपाही हूं और सिपाही का कोई धर्म और जाति नहीं होती।
युवा मामलों के मंत्री राठौड़ खेल जगत और युवाओं में काफी लोकप्रिय हैं और वह फेस बुक और ट्विटर जैसे सोशल मीडिया प्लेटफार्म के माध्यम से अपनी बात सहज ढंग से रखते हैं। चुनाव प्रचार अभियान में मोदी सरकार की पांच साल उपलब्धियों में उपग्रह मार गिराने की क्षमता हासिल करना और नोटबंदी से काले धन पर रोक का जिक्र करते हैं।
उनका दावा है कि मोदी सरकार ने पांच साल में इतना काम किया जितना पचास साल में नहीं हुआ। उनका कहना है कि अपने क्षेत्र के लोगों से लगातार सम्पर्क में रहते हैं और सांसद निधि से आवंटित कोष का सारा पैसा पंचायतों और वार्डों के माध्यम से बिना किसी भेदभाव के विकास कार्यों पर खर्च कर रहे हैं।
सोशल मीडिया पर डाले गए वीडियो में उन्होंने कहा कि उनके प्रयासों के चलते अभिभावक अब अपने बच्चों को सेना शामिल करने और खेलकूद की गतिविधियों में भाग लेने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। इसके साथ ही वह जनसम्पर्क के दौरान केन्द्र सकरार की किसान सम्मान निधि योजना और आयुष्मान भारत योजना का उल्लेख कर रहे हैं।
इधर, पद्मश्री कृष्णा पूनिया भी वर्ष 2013 में ही कांग्रेस में शामिल हुई और चुनाव मैदान में उतरीं, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा। पूनिया ने वर्ष 2010 में दिल्ली में हुए राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक जीता और तीन बार ओलम्पिक खेलों में शिरकत की।
चुनाव अभियान में कृष्णा पूनिया इस बात को स्वीकार करती हैं कि यह मुकाबला दो खिलाड़ियाें के मध्य है, लेकिन साथ ही उनका कहना है कि यह विचारधाराओं का मुकाबला है। उन्होंने कहा कि पिछला चुनाव मोदी और उनके जुमलेबाजी को लेकर लड़ा गया।
वह कहती हैं कि मैं एक साधारण परिवार संबंध रखती हूं, लिहाजा जन साधारण के मुद्दे ही चुनाव में मेरे मुद्दे हैं। पूनिया कहती हैं कि यह चुनाव लोकतंत्र बचाने का चुनाव है, समाज का हर तबका भले ही वह महिला हो, युवा हो या फिर किसान हो विकास और उन्नति और रोजगार चाहता है न कि सिर्फ जुमलेबाजी। दोनों प्रमुख दलों के अलावा यहां से बहुजन समाजपार्टी (बसपा) के टिकट पर वीरेन्द्र सिंह बिधुड़ी और तीन निर्दलियों सहित कुल आठ उम्मीदवार अपना भाग्य आजमा रहे हैं।