जयपुर। राजस्थान में लोकसभा की कई ऐसी सीटें है जिन पर कई दशक से कुछ परिवारों का बोलबाला रहा है। बीते कुछ दश्कों के चुनावी इतिहास पर नजर डालें तो कई ऐसी सीटें जिन पर कुछ परिवार के सदस्य लगातार चुनाव लड़ते आ रहे हैं।
इन सीटों में नागौर, झालावाड़, बाड़मेर, चूरु, सीकर, श्रीगंगानगर एवं अलवर शामिल हैं। सबसे खास नागौर संसदीय सीट है जहां से मारवाड़ का गांधी एवं नाथूबाबा के नाम से प्रसिद्ध रहे पूर्व केन्द्रीय मंत्री नाथूराम मिर्धा परिवार करीब पांच दशक से लोकसभा चुनाव लड़ रहा है।
मिर्धा 1971 में कांग्रेस प्रत्याशी के रुप में इस सीट से चुनाव लड़कर पहली बार लोकसभा पहुंचे और 1980 तक लगातार तीन लोकसभा चुनाव जीते। वर्ष 1984 में वह अपने परिवार के ही रामनिवास मिर्धा से चुनाव हार गए थे लेकिन इसके बाद 1989 से 1996 तक फिर लगातार तीन बार सांसद चुने गए। उन्होंने 1989 में जनता दल प्रत्याशी के रुप में चुनाव जीता। वह राज्य में रिकार्ड छह बार सांसद चुने गए।
सांसद रहते उनका निधन हो गया और 1997 में हुए उपचुनाव में उनके पुत्र भानू प्रकाश मिर्धा भाजपा उम्मीदवार के रुप में चुनाव लड़ा और लोकसभा पहुंचे। वर्ष 1998 में नाथूराम के भतीजे रिछपाल मिर्धा ने भाजपा उम्मीदवार के रुप में चुनाव लड़ा लेकिन कांग्रेस के रामरघुनाथ चौधरी से चुनाव हार गए। भानू प्रकाश मिर्धा ने 2004 में यहां से निर्दलीय प्रत्याशी के रुप में चुनाव लड़ा और उन्हें केवल 3620 मत ही मिले।
इसके अगले चुनाव 2009 में नाथू बाबा की पोती ज्योति मिर्धा चुनाव जीत कर लोकसभा पहुंची, लेकिन 2014 में वह भाजपा के सीआर चौधरी के सामने चुनाव हार गई। ज्योति मिर्धा इस बार फिर कांग्रेस प्रत्याशी के रुप में चुनाव लड़ रही है। इस तरह 1999 में हुए लोकसभा चुनाव को छोड़कर 1971 से आज तक मिर्धा परिवार का सदस्य नागौर से चुनाव लड़ता आ रहा है।
राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का परिवार भी पिछले तीन दशक से झालावाड़ सीट पर लगातार लोकसभा चुनाव लड़ रहा है। राजे ने 1989 से 1999 तक लगातार पांच बार भाजपा प्रत्याशी के रुप में लोकसभा चुनाव लड़ा और लोकसभा पहुंची। इसके बाद उनके पुत्र दुष्यंत कुमार ने 2004 में यहां से भाजपा के उम्मीदवार बने और लगातार तीन लोकसभा चुनाव जीते। अब वह चौथी बार चुनाव मैदान में हैं।
चूरु से कस्वां परिवार 1991 से लगातार लोकसभा चुनाव लड़ रहा है। पूर्व सांसद राम सिंह कस्वां 1991 में भाजपा प्रत्याशी के रुप में चुरु से चुनाव लड़कर पहली बार लोकसभा पहुंचे। उन्होंने 1996 एवं 1998 में भी चुनाव लड़ा लेकिन कांग्रेस के नरेन्द्र बुढानिया से चुनाव हार गए। उन्होंने 1999 में दूसरी बार चुनाव जीता और बुढ़ानिया को हराया।
इसके अगले चुनाव 2004 में उन्होंने कांग्रेस के दिग्गज नेता बलराम जाखड़ को हराया। वह 2009 में कांग्रेस के रफीक मंडेलिया को हराकर चौथी बार लोकसभा पहुंचे। उनके पुत्र राहुल कस्वां 2014 में भाजपा प्रत्याशी के रुप में चुनाव लड़कर लोकसभा पहुंचे। राहुल कस्वां इस बार भी भाजपा प्रत्याशी के रुप में चुनाव लड़ रहे हैं।
पूर्व केन्द्रीय मंत्री सुभाष महरिया 1996 से सीकर संसदीय सीट पर लगातार चुनाव लड़ रहे हैं। महरिया ने 1996 में भाजपा उम्मीदवार के रुप में पहला लोकसभा चुनाव लड़ा लेकिन कांग्रेस के हरी सिंह से चुनाव हार गए। उन्होंने 1998 में फिर चुनाव लड़ा और हरी सिंह को ढाई लाख से अधिक मतों से चुनाव हरा दिया।
उन्होंने 1999 में कांग्रेस के दिग्गज नेता बलराम जाखड़ को तीन लाख से अधिक मतों से चुनाव में हराया। वह 2004 में कांग्रेस के नारायण सिंह को हराकर लगातार तीसरी बार लोकसभा चुनाव जीते । महरिया ने 2009 में फिर चुनाव लड़ा लेकिन वह कांग्रेस के महादेव सिंह खण्डेला से हार गए।
इसके बाद 2014 में भाजपा ने उन्हें अपना उम्मीदवार नहीं बनाया। इससे नाराज होकर उन्होंने सर्व समाज के बैनर तेल निर्दलीय चुनाव लड़ा लेकिन जीत नसीब नहीं हुई। वह इस बार कांग्रेस उम्मीदवार के रुप में सीकर से फिर चुनाव मैदान में ताल ठोक रहे है।
श्रीगंगानगर संसदीय सीट से भाजपा सांसद निहालचंद भी 1996 से लगातार लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं। उन्होंने 1996 में कांग्रेस के बीरबलराम को हराया लेकिन इसके अगले चुनाव 1998 में वह कांग्रेस उम्मीदवार शंकर पन्नू से चुनाव हार गए। इसके बाद 1999 में उन्होंने शंकर पन्नू को चुनाव में हरा दिया। उन्होंने 2004 में कांग्रेस के भरत मेघवाल को हराया लेकिन 2009 में भरत मेघवाल के सामने चुनाव हार गए। उन्होंने गत 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के भंवर लाल को हराया और इस बार फिर चुनाव मैदान में डटे हुए हैं।
पूर्व विदेश मंत्री जसवंत सिंह का परिवार भी बाड़मेर से एक दशक से चुनाव लड़ रहा है। जसवंत सिंह के पुत्र मानवेन्द्र सिंह 1999 में बाड़मेर से भाजपा उम्मीदवार के रुप में चुनाव लड़ा लेकिन कांग्रेस के कर्नल सोनाराम के सामने चुनाव हार गए। उन्हें 2004 में पुन: उम्मीदवार बनाया गया और उन्होंने चुनाव जीता।
इसके अगले चुनाव 2009 में मानवेन्द्र फिर भाजपा उम्मीदवार के रुप में चुनाव मैदान में उतरे लेकिन कांग्रेस उम्मीदवार हरीश चौधरी के सामने उन्हें जीत नसीब नहीं हुई। वर्ष 2014 में उनके पिता जसवंत सिंह भाजपा से टिकट नहीं मिलने पर बागी होकर निर्दलीय चुनाव लड़ा लेकिन चुनाव हार गए। इस बार मानवेन्द्र कांग्रेस प्रत्याशी के रुप में फिर से बाड़मेर में चुनाव मैदान में हैं।
इसी प्रकार अलवर संसदीय सीट पर पूर्व अलवर राजघराने के सदस्य 1991 से चुनाव लड़ रहे हैं। इनमें पूर्व महारानी महेंद्रा कुमारी ने 1991 में भाजपा प्रत्याशी के रुप में पहला लोकसभा चुनाव लड़ा और कांग्रेस के रामसिंह यादव को हराकर लोकसभा पहुंची। इसके बाद 1998 में उन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी के रुप में चुनाव लड़ा लेकिन चुनाव हार गई।
उन्होंने 1999 में कांग्रेस प्रत्याशी के रुप में लोकसभा चुनाव लड़ा लेकिन इस बार भी उन्हें जीत नसीब नहीं हुई। उनके पुत्र भंवर जितेन्द्र सिंह ने 2009 में अलवर से कांग्रेस उम्मीदवार के रुप में चुनाव लड़ा और चुनाव जीता। वह 2014 के चुनाव में भाजपा के चांदनाथ के सामने चुनाव हार गए। इस बार वह फिर कांग्रेस उम्मीदवार के रुप में चुनाव लड़ रहे है।
पूर्व केन्द्रीय मंत्री शीशराम ओला परिवार झुंझनू से 1996 से 2014 तक लगातार चुनाव लड़ा। इस बार कांग्रेस पार्टी से टिकट नहीं मिलने के कारण इस परिवार का कोई सदस्य चुनाव नहीं लड़ रहा है। ओला 1996 से 2009 तक लगातार पांच लोकसभा चुनाव जीते। वर्ष 2014 में उनकी बहू राजबाला ने कांग्रेस प्रत्याशी के रुप में चुनाव लड़ा लेकिन वह भाजपा की संतोष अहलावत से चुनाव हार गई।