जयपुर। राजस्थान में कांग्रेस का गढ़ रहे एवं मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के राजनीतिक दबदबे वाले मारवाड़ अंचल में आगामी सत्रहवीं लोकसभा के चुनाव में कांग्रेस के लिए जहां फिर से राजनीतिक प्रतिष्ठा कायम करने तथा भारतीय जनता पार्टी के लिए राजनीतक प्रभुत्व को बरकरार रखने की चुनौती रहेगी।
लोकसभा के पहले चुनाव से लेकर वर्ष 2014 के सोलहवीं लोकसभा के चुनाव तक मारवाड़ अंचल में आने वाले जोधपुर, नागौर, पाली, बाड़मेर-जैसलमेर तथा जालौर संसदीय क्षेत्र में गहलोत के अलावा पूर्व केन्द्रीय मंत्री नाथूराम मिर्धा, पूर्व केन्द्रीय गृह मंत्री बूटा सिंह तथा सांसद कर्नल सोनाराम का भी दबदबा रहा है। इनमें मिर्धा ने सर्वाधिक छह बार चुनाव जीता।
गहलोत अपने गृह जिले जोधपुर संसदीय क्षेत्र से वर्ष 1980 में कांग्रेस (आई) के उम्मीवार के रुप में चुनाव जीतकर पहली बार सांसद बने। इसके बाद उन्होंने इसके अगले आठवीं लोकसभा के चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी के रुप में जीता और अपना राजनीतिक दबदबा कायम किया। इसके बाद वर्ष 1991, 1996 एवं 1998 के लोकसभा चुनावों में लगातार जीत दर्ज की। इस दौरान वह केन्द्र सरकार में मंत्री भी बनाए गए।
गहलोत का जोधपुर ही नहीं पूरे मारवाड़ अंचल में राजनीतक दबदबा रहा। वह अपने राजनीतक प्रभुत्व के दबदबे के कारण पिछले विधानसभा चुनाव में तीसरी बार राजस्थान के मुख्यमंत्री बने। जोधपुर में इनके अलावा जसवंत राज मेहता ने वर्ष 1952 में निर्दलीय तथा इसके अगले चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी के रुप में चुनाव जीतकर अपनी प्रतिष्ठा कायम की जबकि भाजपा उम्मीदवार जसवंत सिंह विश्नोई ने भी वर्ष 1999 एवं 2004 के चुनाव जीता और अपना राजनीतक प्रभुत्व जमाया। इस बार जोधपुर से केन्द्रीय राज्य मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत के सामने अपनी राजनीतिक प्रतिष्ठा बचाने की चुनौती रहेगी वहीं कांग्रेस अपना फिर से दबदबा कायम करना चाहेगी।
इसी तरह मिर्धा वर्ष 1971 में पांचवीं लोकसभा के चुनाव में नागौर संसदीय क्षेत्र से कांग्रेस प्रत्याशी के रुप में चुनाव लड़कर पहली बार लोकसभा पहुंचे। इसके बाद उन्होंने इसके अगले छठी और सातवीं लोकसभा का चुनाव जीतकर अपना राजनीतिक दबदबा कायम किया। इस दौरान उन्होंने वर्ष 1980 का चुनाव कांग्रेस (यू) के उम्मीदवार के रुप में जीता।
इसके बाद उन्होंने आठवीं लोकसभा का चुनाव लोकदल के प्रत्याशी के रुप में लड़ा था लेकिन वह तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सहानुभूति लहर में कांग्रेस प्रत्याशी रामनिवास मिर्धा के सामने चुनाव हार गए। वर्ष 1989 के नौवीं लोकसभा चुनाव जनता दल की टिकट पर लड़ा और जीत हासिल कर अपना राजनीतिक प्रभुत्व फिर कायम किया।
इसके बाद वह कांग्रेस में लौट आए और वर्ष 1991 एवं 1996 के लोकसभा चुनाव में फिर जीत दर्ज अपनी राजनीतिक प्रतिष्ठा बरकरार रखी। उन्होंने छह बार लोकसभा का चुनाव नागौर से ही जीता। इस दौरान वह केन्द्र सरकार में मंत्री रहे। इससे पहले उन्होंने वर्ष 1952 में राजस्थान विधानसभा का चुनाव जीतकर पहली बार विधायक बने और इसके बाद राज्य सरकार में विभिन्न विभागों के मंत्री भी रहे।
नागौर से कांग्रेस के ही प्रत्याशी रामरघुनाथ चौधरी ने वर्ष 1998 एवं 1999 के दोनों चुनाव जीतकर अपना प्रभुत्व दिखाया था। नाथूराम मिर्धा की पोती ज्योति मिर्धा भी कांग्रेस के टिकट पर वर्ष 2009 में चुनाव जीत चुकी हैं लेकिन वह इससे अगला चुनाव हार गई थी। हालांकि इस बार सत्रहवीं लोकसभा में उन्हें फिर से कांग्रेस का उम्मीदवार बनाए जाने की चर्चा हैं और अगर उन्हें टिकट मिलता है तो उनके सामने फिर से अपना राजनीतिक प्रभुत्व कामय करने की चुनौती रहेगी।
वहीं मौजूदा सांसद एवं केन्द्रीय राज्य मंत्री सीआर चौधरी अगर यहां से चुनाव लड़ते है। तो उनके लिए अपनी प्रतिष्ठा बरकरार रखने की चुनौती होगी। नागौर जिले में पूर्व केन्द्रीय मंत्री एवं पूर्व लोकसभा अध्यक्ष रामनिवास मिर्धा का भी काफी राजनीतिक प्रभुत्व रहा लेकिन उन्होंने अपने गृह जिले से केवल एक बार ही लोकसभा चुनाव जीता तथा एक बार वर्ष 1991 में बाड़मेर संसदीय क्षेत्र से चुनाव जीता जबकि चार बार राज्यसभा के लिए चुने गए।
कांग्रेस के बूटा सिंह वर्ष 1984 में जालोर संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़कर राजस्थान में अपना राजनीतिक प्रभुत्व जमाया। उन्होंने इसके बाद जालोर से 1991, 1998 एवं 1999 में लोकसभा चुनाव जीतकर अपना दबदबा कायम किया। हालांकि सिंह इसके बाद लगातार दो चुनाव हार भी गए। जालोर से भाजपा के देवजी एम पटैल पिछले दो लोकसभा चुनावों में लगातार जीतते आ रहे हैं और उन्होंने जिले में अपना राजनीतिक प्रभुत्व जमा लिया है लेकिन अगले चुनाव में इसे बरकरार रखने की उनके सामने चुनौती रहेगी।
इसी प्रकार सांसद कर्नल सोनाराम ने बाड़मेर-जैसलमेर संसदीय क्षेत्र से कांग्रेस में रहते वर्ष 1996, एवं 1998 एवं 1999 के चुनावों में लगातार तीन जीत दर्ज कर अपना राजनीतिक प्रभुत्व कायम किया। हालांकि बाद में वह भाजपा में आ गये और वर्ष 2014 के चुनाव में भाजपा उम्मीदवार के रुप में चौथी बार लोकसभा पहुंचे। सोनाराम ने दल बदलकर अपना राजनीतिक दबदबा फिर से कायम किया लेकिन इस बार उनके सामने इसे बरकरार रखने की चूनौती रहेगी।
बाड़मेर जिले में पूर्व विदेश मंत्री जसवंत सिंह का भी काफी राजनीतिक प्रभुत्व रहा लेकिन उन्होंने अपने गृह जिले से कभी लोकसभा चुनाव नहीं जीता। पिछले लोकसभा चुनाव में उन्हें टिकट नहीं मिलने पर बगावत कर निर्दलीय चुनाव लड़ा लेकिन हार का सामना करना पड़ा। बाद में भाजपा ने उन्हें पार्टी से निष्कासित भी किया।
उन्होंने एक बार जोधपुर तथा दो बार चित्तौड़गढ तथा एक बार पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग से लोकसभा चुनाव जीता जबकि पांच बार राज्यसभा के लिए चुने गए। बाड़मेर से उनके पुत्र मानवेन्द्र सिंह भी भाजपा उम्मीदवार के रुप में वर्ष 2004 में चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे। मानवेन्द्र सिंह अब कांग्रेस में शामिल हो गए।
अंचल के पाली संसदीय क्षेत्र में अब तक हुए सोलह चुनाव में आठ बार कांग्रेस ने जीत दर्ज कर अपना दबदबा दिखाया है लेकिन भाजपा के गुमानमल लोढा ने यहां से 1989, 1991 एवं 1996 में लगातार तीन बार जीतकर अपना राजनीतिक प्रभुत्व कायम किया था। इसी तरह भाजपा के पुष्प जैन ने वर्ष 1999 एवं 2004 का चुनाव जीता। वर्तमान में पाली से सांसद पीपी चौधरी मोदी सरकार में मंत्री है और उनके सामने अपनी राजनीतिक प्रतिष्ठा बनाए रखने की चुनौती होगी।
मारवाड़ अंचल के नागौर संसदीय क्षेत्र में अब तक हुए चुनावों में ग्यारह बार कांग्रेस एवं दो बार भाजपा, एक बार स्वतंत्र पार्टी एवं जनता दल तथा निर्दलीय ने चुनाव जीता। इसी तरह बाड़मेर से कांग्रेस नौ, भाजपा दो, निर्दलीय दो, एक बार राम राज्य परिषद, जनता पार्टी एवं जनता दल चुनाव जीतने में सफल रहा।
जोधपुर से कांग्रेस ने आठ, भाजपा चार, निर्दलीय तीन तथा एक बार जनता पार्टी ने चुनाव जीता। इस दौरान पाली से कांग्रेस ने आठ एवं भाजपा ने छह बार चुनाव जीता जबकि जनता पार्टी एवं निर्दलीय एक बार चुनाव जीतने में कामयाब रहे। इसी प्रकार जालोर से कांग्रेस ने नौ बार एवं भाजपा ने चार बार जबकि निर्दलीय, स्वतंत्र एवं जनता पार्टी ने एक बार चुनाव जीता।