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प्रकृति व जीवों के संरक्षक भोले नाथ
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प्रकृति व जीवों के संरक्षक भोले नाथ

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प्रकृति व जीवों के संरक्षक भोले नाथ
lord shiva is protector of nature and creatures
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lord shiva is protector of nature and creatures

सबगुरु न्यूज। रचना करने में जो प्रखर हो वह शक्ति प्रकृति कहलाती है। प्रकृति की यह शक्ति कौन थी, इसे अब तक कोई जान नहीं सका। विज्ञान और शास्त्र केवल अपनी-अपनी मान्यताओं तथा शोध के आधार पर इस प्रकृति शक्ति का बखान करते हैं और इसकी रचना का काल निर्धारित करते हैं।

अपनी रचना को प्रकृति स्वयं संतुलित रखती है। इस संतुलन में सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही मार्ग देखने को मिलते हैं तथा अपने इन मार्गों से प्रकृति मानव को यह संदेश देती है कि हे मानव तू मेरे गुण धर्म व मेरे सिद्धांतों के अनुसार ही व्यवहार कर ताकि तू सुखी और समृद्ध रह सके।

प्रकृति की इस शक्ति ओर रहस्यो को जिस जिस ने पूर्ण रूप से जान लिया समझ लिया वह सब आगे चलकर समाज के धर्म की परिभाषा में देव और विज्ञान की परिभाषा में यह अनुसंधानकर्ता कहलाए। धर्म ने इन्हें आस्था, विश्वास, श्रद्धा, मान्यता आदि के रूप में माना तो विज्ञान ने तर्क और सिद्धांत के रूप में इन्हें स्थापित किया। धर्म और विज्ञान के रास्ते अलग-अलग थे पर दोनों का उदेश्य प्रकृति ओर जीवों का संरक्षण ही रहा।

प्रकृति की रचना का अदृश्यकर्ता और सृष्टा जानकर इसके अनिश्चित प्रकृति रूप को पूजने लगा तो समाज में धर्म का वर्चसव क़ायम हो गया तथा जिन आदि देवों ने प्रकृति के गुणों को आत्मसात कर लिया वे सब प्रकृति व जीवों के संरक्षण के लिए अपने अपने गुणों से कार्य कर भगवान के रूप मे स्थापित हो प्रकृति पर लीला कर जीव व जगत का कल्याण करने लग गए।यह सब आदि देव वही थे जिन्हें प्रकृति ने उत्पन्न किया और मानव ने जन्म नहीं दिया। जैसे धरती, आकाश, चांद, तारे, जल, हवा, अग्नि, वनस्पति।

इन्हीं मान्यताओं में जीव व जगत के कल्याणकर्ता शिव का प्रमुख स्थान समाज और धर्म ने स्वीकारा यही कारण है कि आज भी विश्व में सर्वत्र हर हर महादेव के जयकारे लगते हैं और जिनके नाम लेने से प्राणी अपने को सुखी और समृद्ध रखता है। प्रकृति ओर जीवों का संरक्षण करते हैं महादेव और मानव को संदेश देते हैं कि प्रकृति को उजाडों मत, जीवों को सुरक्षित व संरक्षित करने के लिए सर्वत्र मदद करो। शिव पशुपतिनाथ बन कर इसलिए ही पूजे जाते हैं।

संत जन कहते हैं कि हे मानव शिव का रूप यही बखान करता है कि इस जगत में हर बैमेल में संतुलन बनाए रखो ताकि वह आपस में संघर्ष ना करे और प्रकृति संतुलित तथा जीव भी सुरक्षित रहे। शिव के ललाट पर अग्नि नेत्र के ऊपर गंगा की जलधारा है तो मस्तक पर अमृत रुपी चन्द्रमा को नियंत्रित करने के लिए गले में विष रूपी नागों की माला है।

शिव ने अपना वाहन बैल रखा तो अपनी पत्नी का वाहन सिंह रखा और रहने के लिए ठंडा ज्ञान का स्थान कैलाश को अपनाया। रक्षा करने के लिए वे महाकाल बने। उन्होंने अपने पास कुछ भी नहीं रखा और दुनिया को सब कुछ दे दिया।

इसलिए हे मानव तू श्रावण मास में शिव की पूजा उपासना में लग जा ताकि तेरे शरीर में ज्ञान कर्म और भक्ति का प्रकाश बढे तथा प्रकृति व जीवों का संरक्षण हो सके। अगर संभव नहीं है तो शिव के गुणों की तरह तू प्रकृति का जर्जर विध्वंस मत कर ओर जीवों का संरक्षण कर तो भी तेरी शिव पूजा पूर्ण हो जाएंगी।

सौजन्य : भंवरलाल