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भगवान कल्कि का जन्म कब, कहाँ, क्यों और कौन होंगे माता-पिता - Sabguru News
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भगवान कल्कि का जन्म कब, कहाँ, क्यों और कौन होंगे माता-पिता

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भगवान कल्कि का जन्म कब, कहाँ, क्यों और कौन होंगे माता-पिता
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धार्मिक एवं पौराणिक मान्यता के अनुसार जब पृथ्वी पर पाप बहुत अधिक बढ़ जाएगा। तब दुष्टों के संहार के लिए विष्णु का यह अवतार यानी ‘कल्कि अवतार’ प्रकट होगा। कल्कि को विष्णु का भावी और अंतिम अवतार माना गया है। भगवान का यह अवतार निष्कलंक भगवान के नाम से भी जाना जायेगा। आपको ये जानकर आश्चर्य होगा की भगवान श्री कल्कि 64 कलाओं के पूर्ण निष्कलंक अवतार हैं। धर्म शास्त्रों के अनुसार जब कलियुग में अत्याचार अधिक बढ़ जायेगा, जब धर्म नष्ट हो जायेगा तब उस समय काल की प्रेरणा से भगवान विष्णु का कल्कि अवतार होगा।

यह अवतार दशावतार परम्परा में अन्तिम माना गया। शास्त्रों के अनुसार यह अवतार भविष्य में होने वाला है। कलियुग के अन्त में जब शासकों का अन्याय बढ़ जायेगा। चारों तरफ पाप बढ़ जायेंगे तथा अत्याचार का बोलबाला होगा तक इस जगत् का कल्याण करने के लिए भगवान् विष्णु कल्कि के रूप में अवतार लेंगे। कल्कि अवतार का वर्णन कई पुराणों में हुआ है परन्तु इसे सर्वाधिक विस्तार कल्कि उपपुराण मे मिला है, उसमें यह कथा उन्नीस अध्यायों में वर्णित है।

अभी तो कलयुग का प्रथम चरण है। कलि के पाँच सहस्र से कुछ अधिक समय बीता है। इस समय मानव जाति का मानसिक एवं नैतिक पतन हो गया है लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता जायेगा वैसे-वैसे धर्म की हानि होगी। सत्य, पवित्रता, क्षमा, दया, आयु, बल और स्मरण शक्ति सबका लोप होता जायेगा। अर्थहीन व्यक्ति असाधु माने जायेंगे। राजा दुष्ट, लोभी, निष्ठुर होंगे, उनमें व लुटेरों में कोई अन्तर नहीं होगा। प्रजा वनों व पर्वतों में छिपकर अपना जीवन बितायेगी। समय पर बारिश नहीं होगी, वृक्ष फल नहीं देंगे।

कलि के प्रभाव से प्राणियों के शरीर छोटे-छोटे, क्षीण और रोगग्रस्त होने लगेंगे। मनुष्यों का स्वभाव गधों जैसा दुस्सह, केवल गृहस्थी का भार ढोने वाला रह जायेगा। लोेग विषयी हो जायेंगे। धर्म-कर्म का लोप हो जायेगा। मनुष्य जपरहित नास्तिक व चोर हो जायेंगे।

पुत्रः पितृवधं कृत्वा पिता पुत्रवधं तथा।
निरुद्वेगो वृहद्वादी न निन्दामुपलप्स्यते।।
म्लेच्छीभूतं जगत सर्व भविष्यति न संशयः।
हस्तो हस्तं परिमुषेद् युगान्ते समुपस्थिते।।

पुत्र, पिता का और पिता पुत्र का वध करके भी उद्विग्न नहीं होंगे। अपनी प्रशंसा के लिए लोग बड़ी-बड़ी बातें बनायेंगे किन्तु समाज में उनकी निन्दा नहीं होगी।

उस समय सारा जगत् म्लेच्छ हो जायेगा-इसमें संशयम नहीं। एक हाथ दूसरे हाथ को लूटेगा। सगा भाई भी भाई के धन को हड़प लेगा। अधर्म फैल जायेगा, पत्नियाँ अपने पति की बात नहीं मानेंगी। मांगने पर भी पतियों को अन्न, जल नहीं मिलेगा। चारों तरफ पाप फैल जायेगा। उस समय सम्भल ग्राम में विष्णुयशा नामक एक अत्यन्त पवित्र, सदाचारी एवं श्रेष्ठ ब्राह्मण अत्यन्त अनुरागी भक्त होंगे।

वे सरल एवं उदार होंगे। उन्हीं अत्यन्त भाग्यशाली ब्राह्मण विष्णुयशा के यहाँ समस्त सद्गुणों के एकमात्र आश्रय निलिख सृष्टि के सजर्क, पालक एवं संहारक परब्रह्म परमेश्वर भगवान् कल्कि के रूप में अवतरित होंगे। वे महान् बुद्धि एवं पराक्रम से सम्पन्न महात्मा, सदाचारी तथा सम्पूर्ण प्रजा के शुभैषी होंगे।

मनसा तस्य सर्वाणिक वाहनान्यायुधानि च।।
उपस्थास्यन्ति योधाश्च शस्त्राणि कवचानि च।
स धर्मविजयीराजा चक्रवर्ती भविष्यति।।
स चेमं सकुलं लोकं प्रसादमुपनेश्यति।
उत्थितो ब्राह्मणों दीप्तःक्षयान्तकृतदुदारधीः।।

चिन्तन करते ही उनके पास इच्छानुसार वाहन, अस्त्र-शस्त्र, योद्धा और कवच उपस्थित जायेंगे। वह धर्मविजयी चक्रवर्ती राजा होगा। वह उदारबुद्धि, तेजस्वी ब्राह्मण दुःख से व्याप्त हुए इस जगत् को आनन्द प्रदान करेगा। कलियुग का अन्त करने के लिए उनका प्रादुर्भाव होगा। भगवान् शंकर स्वयं उनको शस्त्रास्त्र की शिक्षा देंगे और भगवान् परशुराम उनके वेदोपदेष्टा होंगे। वे देवदत्त नामक शीघ्रागमी अश्व पर आरुढ़ होकर राजा के वेश में छिपकर रहने वाले पृथ्वी पर सर्वत्र फैल हुए दस्युओं एवं नीच स्वभाव वाले सम्पूर्ण म्लेच्छों का संहार करेंगे।

कल्कि भगवान् के करकमलों सभी दस्युओं का नाश हो जायेगा फिर धर्म का उत्थान होगा। उनका यश तथा कर्म सभी परम पावन होंगे। वे ब्रह्मा जी की चलायी हुई मंगलमयी मर्यादाओं की स्थापना करके रमणीय वन में प्रवेश करेंगे। इस प्रकार सर्वभूतात्मा सर्वेश्वर भगवान् कल्कि के अवतरित होने पर पृथ्वी पर पुनः सत्ययुग प्रतिष्ठित होगा।

कहाँ होगा भगवान कल्कि का जन्म?

कल्कि भगवान उत्तर प्रदेश में गंगा और रामगंगा के बीच बसे मुरादाबाद के सम्भल ग्राम में जन्म लेंगे। भगवान के जन्म के समय चन्द्रमा धनिष्ठा नक्षत्रा और कुंभ राशि में होगा। सूर्य तुला राशि में स्वाति नक्षत्रा में गोचर करेगा। गुरु स्वराशि धनु में और शनि अपनी उच्च राशि तुला में विराजमान होगा। वह ब्राह्मण कुमार बहुत ही बलवान, बुद्धिमान और पराक्रमी होगा। मन में सोचते ही उनके पास वाहन, अस्त्र-शस्त्र, योद्धा और कवच उपस्थित हो जाएँंगे। वे सब दुष्टों का नाश करेंगे, तब सतयुग शुरू होगा। वे धर्म के अनुसार विजय पाकर चक्रवर्ती राजा बनेंगे।

कौन होंगे इनके माता-पिता?

अपने माता-पिता की पाँचवीं संतान होंगे। भगवान कल्कि के पिता का नाम विष्णुयश और माता का नाम सुमति होगा। पिता विष्णुयश का अर्थ हुआ, ऐसा व्यक्ति जो सर्वव्यापक परमात्मा की स्तुति करता लोकहितैषी है। सुमति का अर्थ है, अच्छे विचार रखने और वेद, पुराण और विद्याओं को जानने वाली महिला।

ऐसा होगा अंतिम अवतार कल्कि भगवान का स्वरूप!!!!!!!

कल्कि निष्कलंक अवतार हैं। भगवान का स्वरूप (सगुण रूप) परम दिव्य है। दिव्य अर्थात दैवीय गुणों से सम्पन्न। वे सफेद घोड़े पर सवार हैं। भगवान का रंग गोरा है, लेकिन गुस्से में काला भी हो जाता है। वे पीले वस्त्रा धारण किए हैं। प्रभु के हृदय पर श्रीवत्स का चिन्ह अंकित है। गले में कौस्तुभ मणि है। स्वंय उनका मुख पूर्व की ओर है तथा अश्व दक्षिण में देखता प्रतीत होता है। यह चित्राण कल्कि की सक्रियता और गति की ओर संकेत करता है।

युद्ध के समय उनके हाथों में दो तलवारें होती हैं। कल्कि को माना गया है। पृथ्वी पर पाप की सीमा पार होने लगेगी तब दुष्टों के संहार के लिए विष्णु का यह अवतार प्रकट होगा। भगवान का ये अवतार दिशा धारा में बदलाव का बहुत बड़ा प्रतीक होगा।

मनीषियों ने कल्कि के इस स्वरूप की विवेचना में कहा है कि कल्कि सफेद रंग के घोड़े पर सवार हो कर आततायियों पर प्रहार करते हैं। इसका अर्थ उनके आक्रमण में शांति (श्वेत रंग), शक्ति (अश्व) और परिष्कार (युद्ध) लगे हुए हैं। तलवार और धनुष को हथियारों के रूप में उपयोग करने का अर्थ है कि आसपास की और दूरगामी दोनों तरह की दुष्ट प्रवृत्तियों का निवारण करेगें अर्थात भगवान धरती पर से सारे पापों का नाश करेगें।

श्रीमद्भागवत के अभिन्न अंग भगवान श्री कल्कि क्यों?

शुकदेव जी (वैशम्पायन, व्यास जी के पुत्र) पाण्डवों के एकमात्र वंशज अभिमन्यु पुत्र परीक्षित (विष्णुपुराण) को, जो उपदेश (कथा) सुना रहे थे वह अठारह (18) हजार श्लोकों का समावेश था। महाराज परीक्षित का सात-दिन में निधन हो जाने से उन सारे श्लोकों का उपदेश न हो पाया था।

अतः बाद में मार्कण्डेय ऋशि के आग्रह पर शुकदेव जी ने पुण्याश्रम में उसे पूरा किया था। सूत जी (व्यास जी के शिष्य हर्षण सूत के नाम से प्रसिद्ध हुए, जिनकी धारणा शक्ति से संहितायें दे दी) का कहना है कि वे भी वहाँ उपस्थित थे और पुण्यप्रद कथाओं को सुना था। सूत जी ने उन ऋषियों को, जो कथा सुनाई वही श्री कल्कि पुराण के नाम से प्रसिद्ध है।